विपक्ष में भाजपा भी प्रभावी नहीं

इस बात को लेकर अक्सर चर्चा सुनने को मिलती है कि विपक्ष बहुत कमजोर है या कांग्रेस विपक्षी पार्टी के रूप में बहुत खराब काम कर रही है, वह महंगाई-बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर भी आंदोलन नहीं खड़ा कर पा रही है और न संसद में सरकार को जवाबदेह ठहरा पा रही है। ये आरोप कुछ हद तक सही भी हैं। लेकिन कमोबेश यहीं स्थिति उन राज्यों में भाजपा की भी है, जहां वह विपक्ष में है। राज्यों में विपक्षी पार्टी के रूप में भाजपा कुछ नहीं कर पा रही है। उसकी कुल राजनीति यह है कि राज्य सरकार भाजपा नेताओं के खिलाफ कोई कदम उठाती है तो भाजपा के नेता दिल्ली शिकायत करने पहुंच जाते हैं।

विपक्ष के नाते भाजपा की राजनीति राज्य सरकार को घेरने या उसकी नीतियों के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने की होनी चाहिए लेकिन लगभग हर राज्य में भाजपा इस काम में विफल है। ऐसा लग रहा है कि प्रदेश भाजपा नेताओं का एकमात्र सहारा केंद्रीय नेतृत्व और केंद्र सरकार है। जैसे महाराष्ट्र में भाजपा के पूर्व सांसद किरीट सोमैया की गाड़ी पर शनिवार को कथित तौर पर हमला हुआ। भाजपा ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री के इशारे पर हमला हुआ है। लेकिन पार्टी इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बना पाई। पार्टी के नेताओं ने कहा कि वे दिल्ली जाकर इसकी शिकायत करेंगे।

पश्चिम बंगाल का मामला तो बात-बात में दिल्ली पहुंचता है। भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर आए सुवेंदु अधिकारी को विधायक दल का नेता बनाया है। लेकिन वे प्रभावी साबित नहीं हो रहे हैं। उनके खिलाफ राज्य की पुलिस ने एक मामला दर्ज किया, जिसमें हालांकि उनको राहत मिल गई है लेकिन ऐसा लग रहा है कि वे लड़ने से घबरा रहे हैं। इसलिए एक तरह से उन्होंने ममता बनर्जी की पार्टी को वाकओवर दिया हुआ है। राज्य सरकार थोड़ा बहुत बैकफुट पर आती भी है तो वह राज्यपाल के सवालों या बयानों की वजह से।

ऐसे ही झारखंड में जेएमएम सरकार के खिलाफ अनेक शिकायतें हैं। मुख्यमंत्री से लेकर कई मंत्री और मुख्यमंत्री के परिवार के सदस्य मुकदमों में फंसे हैं। लेकिन भाजपा इसे मुद्दा नहीं बना पा रही है। उलटे केंद्रीय एजेंसियां और अदालतों की कार्रवाई से सरकार और सत्तारूढ़ दल बैकफुट हैं। भाजपा इसका भी फायदा नहीं उठा पा रही है। दिल्ली में भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी है लेकिन पार्टी के नेता राज्य सरकार के खिलाफ कोई आंदोलन नहीं खड़ा कर पाए हैं। दिल्ली में भी केंद्र सरकार को पहल करके ऐसा फैसला करना पड़ा, जिससे दिल्ली नगर निगम के चुनाव टले। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर भाजपा प्रभावी भूमिका नहीं निभा पा रही है। दोनों राज्यों में पार्टी के नेताओं के बीच आपसी खींचतान चल रही है, जिसकी वजह से पार्टी कई खेमों में बंटी है।

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