राहुल तो निर्भय पर कांग्रेसी कितने टिकेंगे?
अगर मोदी सरकार ने इसे पेशेंस का खेल बना दिया तो कांग्रेसी जल्दी हार जाएंगे। हालांकि राहुल लड़ेंगे, आखिरी तक। उनमें हिम्मत बहुत है। मगर कांग्रेसी क्या भाग नहीं लेंगे? अभी भी कितने बड़े कांग्रेसी नेता आए? दो दर्जन, तीन दर्जन। बस!
कांग्रेस ने अपने चिंतन शिविर में कितने लोगों को बुलाया था। करीब 500। कांग्रेस के सारे बड़े नेता। महत्वपूर्ण नेता! कई नेताओं को तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने खुद फोन करके बुलाया था। कितने लोग आए उनमें से राहुल का सड़क पर साथ देने? क्या मुसीबत के समय भी वे किसी न्यौते का इंतजार कर रहे थे? संकट में तो दोस्त, साथी, हमदर्द क्या अनजान लोग भी दौड़ कर आते हैं।
सोनिया ने इन सबकी मदद की थी। आज वे अस्पताल में हैं। कोविड के बाद होने वाली समस्याओं को लेकर। वैसे भी उनकी तबीयत अब ज्यादा साथ नहीं देती है। मगर फिर भी वे इन कांग्रेसियों के लिए बराबर काम करती हैं। उनके मना करने पर, बार बार अनुरोध करके उन्हें तीन साल पहले दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनाया था। उन्होंने, राहुल, प्रियंका ने साफ कह दिया था कि परिवार के बाहर से कोई अध्यक्ष बनाओ। बहुत सारे कांग्रेस तैयार भी हो गए थे। मगर आपस में लड़ पड़े। पर्चियों पर नाम लिखाकर गोपनीय मतदान हुआ। मगर मालूम
पड़ा कि अधिकांश लोगों ने अपना ही नाम लिख दिया है। बहुत बड़ी बड़ी अक्लें लगीं थीं। मगर कोई सहमति बनना तो दूर की बात सिर फुटव्वल की नौबत आ गई थी। मीटिंग छोड़कर सोनिया को मनाने पहुंचे। तमाम वास्ते दिए तब मजबूर होकर उन्होंने फिर कांटों का ताज अपने सिर पर रखा।
वह पहली बार नहीं था जब सोनिया ने अपने मन कि विरुद्ध कांग्रेसियों की बात मानी। पहली बार 1998 में ये कांग्रेसी उन्हें इसी तरह राजनीति के कांटों भरे रास्ते पर खींच लाए थे।
आइये यहां पर आपको एक कहानी सुनाते हैं। कहानी है। सच-झूठ का फैसला आप खुद करें। मगर हां, हम शायद यह दावे से कह सकते हैं कि पहली बार इस कहानी को सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं।
तो साहब 1997 – 98 के समय कांग्रेस सत्ता से बाहर थी। वाजपेयी, एनडीए मोर्चे के प्रधानमंत्री बन गिर रहे थे। कांग्रेसी बैचेन थे। सत्ता से दूर। गैर नेहरू -गांधी परिवार का नेतृत्व था। जो आज भी वे चाह रहे हैं। लेकिन उस समय भी उस नेतृत्व में सत्ता में वापसी की कोई संभावना नहीं दिख रही थी। आपको पता है कि कांग्रेसी बिना सत्ता के नहीं रह सकता। बिना पानी की मछली की तरह तड़पने लगता है। देखा नहीं कि पिछले दिनों कितने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए। और कितने जाने की लाइन में लगे हैं। मगर मोदीजी ग्रीन सिग्नल नहीं दे रहे हैं। इंतजार में हैं। इसीलिए सीआर न बिगड़े घर बैठे हैं। राहुल के साथ सड़क पर नहीं आ रहे हैं।
खैर वादा कहानी का था। मगर जैसा कि हमारे यहां होता है मूल कहानी के साथ अन्तरकथाएं भी चलती रहती हैं। वे भी आ जाती हैं। और कहानी भी चलती रहती है।
तो कहानी यह थी कि कांग्रेसियों के पास सत्ता नहीं और दूर दूर तक उसकी प्राप्ति की कोई उम्मीद नहीं। क्या करें? कांग्रेसियों के पास अपने मतलब की अकल की तो कोई कमी है नहीं। कुछ सिर जुड़े। समझ में यही आया कि बिना परिवार के कुछ नहीं हो सकता। मगर है कौन? राजीव गांधी को खो चुके। बच्चे छोटे हैं।
तय पाया कि जब तक बच्चे बड़े नहीं होते सोनिया जी को ही लाना पड़ेगा। मगर वे मानती नहीं। लेकिन वे कांग्रेसी क्या जो हार मान लें। कहा चलो कहा जाएगा। कुछ बड़े नेता गए। मुलाकात हुई। फिर सुन लीजिए। कहानी है। किसी के वास्तविक चरित्र से मेल खा जाए तो संयोग ही मानिए।
तो साहब सोनिया से कहा कि मैडम देश खतरे में है। सोनिया ने कहा कि वह तो
ठीक है। मगर आप लोगों को देश से क्या मतलब? नमस्कार। वापस आ गए। फिर इकट्ठा हुए। क्या करें। कहा फिर चलो सोनिया के पास। कहा भगा तो दिया। अब क्या कहोगे? कहने लगे चलो। देखते हैं। कांग्रेस में कुछ लोगों के पास हमेशा चाणक्य बुद्धि होती है। यह अलग बात है कि वह सिर्फ और सिर्फ अपने हित में काम करती है। किसी और के लिए नहीं। तो उन चाणक्य बुद्धियों पर भरोसा करके फिर पहुंचे। सोनिया ने कहा कि कहिए! कहने लगे कांग्रेस खतरे में हैं। सोनिया ने कहा वह तो ठीक है। मगर आपको कांग्रेस से क्या मतलब?नमस्कार।
फिर बैरंग वापस। फिर जुड़े। कहा भाई बहुत अपमान हो गया। अब और नहीं। मगर समझाया गया कि राजनीति में यह सब कुछ नहीं होता है। केवल अपना काम होता है। कहा चलो यह भी माना। मगर सब तो कह लिया अब कहेंगे क्या? कहा चलो वहीं बताएंगे। फिर पहुंचे। सोनिया जी कहा जी फरमाइए। कहा मैडम बाल बच्चों की चिन्ता होती है। उनका क्या होगा? करेंगे क्या? सोनिया जी ने कहा अब कही सच्ची बात। चलो मैं आती हूं।
और सोनिया गांधी ने पूरे हिन्दुस्तान की सड़कें नाप दीं। गांव गांव तक पहुंची। और 2004 में केन्द्र की सरकार लाकर इन कांग्रेसियों की गोद में रख दी। खुश कांग्रेसी बोले थैक्यूं मैडम। बस अब हम चला लेंगे। बाकी की कहानी आप सबको मालूम है। दस साल खूब चलाई। 2014 में ही जब कांग्रेस हारी तो पार्टी का खजाना खाली था। मगर कांग्रेसियों के पास इतना पैसा था कि जिन बाल बच्चों के नाम पर वे सोनिया को राजनीति में लाए थे उनकी कई पीढ़ियों का इंतजाम वे कर चुके थे।
यहां एक दो और कहानी सुना दें ताकि कोई कांग्रेसी इसे पढ़कर ज्यादा भड़भड़ाए तो उसे पता चल जाए कि छेड़ोगे तो फिर और ज्यादा नाजुक कहानियां सामने आ जाएंगी। तो कांग्रेस का खजाना खाली। 2014 से पहले ही था। 2014 के चुनाव आने वाले थे। सोनिया से कहा। सोनिया ने एक दो बड़े मंत्रियों के नाम बताए कि उनके पास चले जाओ। बड़े वाले मंत्री जी सुनकर चिल्लाने लगे। व्हाट? एम आई थीफ. . . एम आई थीफ? ? ( क्या मैं चोर हूं? चोर हूं?) सुनकर सोनिया का मैसेज लेकर गए नेता जी, जो खुद भी बड़े नेता थे घबरा कर भागे।
और सुनाएं एक! ये भी 2014 से पहले की। क्योंकि अगर अभी की बताएंगे तो कहेंगे कि अब हारे में क्या रखा है। तो एक राज्य के विधानसभा चुनाव थे। वहां के दो बड़े नेता आए। कहा चुनाव के लिए कुछ पैसा दे दो। उनसे कहा गया कि आपकी तो सरकार रही है। आपको उल्टा हमें देना था। आप मांग रहे हो। गर्मागर्मी हो गई। पोलें खुलने लगीं। तो कहा गया। चुप रहो। जिसके पास जो है रखे रहो।
ऐसी कांग्रेस में राहुल गांधी फंसे हुए हैं। इसके लिए लड़ रहे हैं। सोनिया ने अपनी पूरी जिंदगी दे दी। नतीजा क्या निकला कि उन पर ही आरोप लग रहे हैं। दो साल पहले जब पिछली बार अस्पताल में थीं। तो 23 कांग्रेसियों ने एक लेटर बम वहां भेज दिया।
कांग्रेस आज बड़े असमंजस में है। राहुल जैसा मजबूत नेतृत्व वह चाहती नहीं है। बिना उनके सत्ता में वापसी दिखती नहीं है। सोनिया लिहाजी हैं। हमेशा से इनकी बातों में आती रहीं हैं। शब्द ज्यादा सख्त हो जाएगा। मगर कभी कभी लिखना पड़ता है कि इनके हाथों बेवकूफ बनती रही हैं। कभी बच्चों का डर दिखाकर, कभी भारतीय नहीं हैं कहकर दबाव में लाकर, कभी अपनी वफादरी की झूठी कसमें खाकर कांग्रेसी सोनिया को ब्लैकमेल करते रहे। राहुल सब जानते हैं। वे दबाव में आने के लिए तैयार नहीं हैं। कांग्रेसी इसीलिए उनका साथ कब तक देंगे, कहना मुश्किल है। खुद उनके साथ जो लोग लगे हैं वे और ज्यादा कलाकार हैं। किसी को राहुल के नजदीक नहीं आने देते।
यह राहुल की त्रासदी है। लेकिन दूसरी तरफ अकेले लड़ने का गजब का साहस भी है। अभी लड़ रहे हैं। सब देख रहे हैं। मगर किसी को उनकी आंख में जरा सा भी खौफ नहीं दिख रहा है। यहीं उनकी ताकत है। अवसरवादी, निहित स्वार्थी कांग्रेसी नेता नहीं। हां, आखिर में ध्यान रहे कि इनमें कार्यकर्ता शामिल नहीं हैं। राहुल को उनमें और उन्हें राहुल में पूरा यकीन है। इसलिए कांग्रेस रहेगी, उसकी विचारधारा रहेगी।