ओवैसी मुसलमानों के सबसे बड़े दुश्मन!

ट्रोल कौन से भयानक होते हैं? ब्राह्मणों के लिए ब्राह्मण, दलितों के लिए दलित और मुसलमानों के लिए मुसलमान! असदुद्दीन ओवैसी पर जब भी लिखते हैं तो उनके भक्त टूट कर आ पड़ते हैं। वे नौजवान और जज्बाती मुसलमानों के नए आइकान हैं। मुसलमानों का वे कितना नुकसान कर रहे हैं, यह भावुक लोगों को कभी समझ में नहीं आएगा। उन्हें खाली इतना पता है कि जो ओवैसी की राजनीति पर सवाल उठाए उसके खिलाफ आरोपों की झड़ी लगाते हुए गाली गलौज शुरू कर दो।

हिमाचल में तो मुसलमान था नहीं इसलिए वह ओवैसी की एन्ट्री से बचा रहा। था नहीं का मतलब गिनती योग्य नहीं था। बहुत कम है और उनके बीच जाने से ओवैसी को कोई फायदा नहीं होता। इसलिए ओवैसी ने वहां चुनाव में नहीं दिखे। मगर अब गुजरात में और दिल्ली में वे अपनी पूरी छटा बिखेरेंगे। उनका अधिकतर प्रचार तो न्यूज चैनलों के माध्यम से होता है। चैनलों के एंकर और रिपोर्टर उनके भक्त हैं। क्यों हैं? यह ओवैसी के भक्त नहीं सोचते! दरअसल भक्त किसी के हों वे सोचते ही नहीं हैं। उनके सोचने समझने का एप दिमाग से डिलिट कर दिया जाता है।

टीवी चैनल विपक्ष के बाकी किसी नेता को नहीं दिखाते। केवल ओवैसी को ही दिखाते हैं। और ऐसा वैसा नहीं खूब! भरपूर! प्राइम टाइम में! पूरा समय देते हुए। भाजपा की धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए वैसे ही हिन्दु मुसलमान विषयों पर बोलने के लिए।

तो हिमाचल में ओवैसी थे नहीं। आप टूट गई थी। तो वहां सीधा मुकाबला हो गया। और कांग्रेस खूब लड़ गई। नतीजा तो जब दिसंबर में गुजरात के साथ आएगा तब पता चलेगा। मगर वोट डालने के बाद जो एक्जिट पोल हुए और दिखाए नहीं जा सके उनके बारे में कहा जा रहा है कि कांग्रेस अच्छा कर गई।

लेकिन गुजरात और दिल्ली में सारे खिलाड़ी मौजूद हैं। ध्यान रहे कि हम विधानसभा चुनावों के साथ दिल्ली नगरनिगम के चुनावों को भी जोड़ रहे हैं। क्योंकि एमसीडी के चुनाव किसी विधानसभा से कम नहीं हैं। यहां भाजपा की सत्ता है। और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल उसे कड़ी चुनौती दे रहे हैं। पिछली बार भाजपा ने यहां की जीत का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को दिया था। इस बार तो वह लड़ेगी ही मोदी के नाम पर। क्योंकि एमसीडी में उसके पास अपना कोई काम बताने के लिए नहीं है। मोदी सरकार ने उसकी मुश्किलें आसान करने के लिए तीनों नगर निगमों का फिर से एक कर दिया है। चुनाव लेट भी किए गए। और अब मदद के लिए ओवैसी को भी बुला लिया गया है। ओवैसी की मजलिस यहां दलित नेता चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलकर लड़ रही है। दिल्ली में करीब 15 प्रतिशत मुसलमान वोट और 16 प्रतिशत दलितों के वोट हैं। दोनों मिलाकर 31 प्रतिशत होते हैं। जो किसी को जिता सकें या नहीं हरा जरूर सकते हैं। दोनों मिलकर 100 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। इनके लड़ने से किसे फायदा होगा यह समझने के लिए कोई बहुत ज्यादा विश्लेषण की

जरूरत नहीं है। मीडिया इन्हें कितना महत्व दे रहा है इससे समझा जा सकता है। मीडिया किसी भी ऐसा नेता को जगह नहीं दे सकता जिससे मोदी जी को खतरा हो। और ऐसे हर नेता को खूब चमकाएगा जिससे भाजपा विरोधी वोट बंटें।

आप ओवैसी का खेल देखिए! एक बार नहीं दूसरी बार उन्होंने फिर कहा देश में एक दिन हिजाबी प्रधानमंत्री बनेगी। कहां राजनीतिक नेताओं में सबसे ज्यादा वरिष्ठ नेता और थोड़ा ज्यादा भी बोलने वाले फारूख अब्दुल्ला बहुत पहले शायद 1996 में जब वे 1987 के बाद वापस मुख्यमंत्री बन रहे थे तब बोले थे कि हिन्दुस्तान में कोई मुसलमान प्रधानमंत्री नहीं बन सकता है। कोई बहुत नेगेटिव अंदाज में नहीं बोले थे। बल्कि कश्मीर में मुस्लिम मुख्यमंत्री बनने के किसी संदर्भ में उन्होंने हमें इंटरव्यू देते हुए कहा था कि पाकिस्तान को कश्मीर का जवाब देने के लिए, साथ ही द्वीराष्ट्रवाद के सिद्धांत का जवाब देने के लिए, अन्तरराष्ट्रीय जगत को मैसेज देने के लिए यहां मुस्लिम मुख्यमंत्री एक परंपरा है। इसी रौ में उन्होंने कहा था देश में न जरूरत है और न ही उपयुक्त कि वहां मुसलमान प्रधानमंत्री बने। राष्ट्रपति हुए हैं। मुख्य न्यायधीश हुए हैं। बाकी सभी उच्च पदों पर रहे हैं। प्रधानमंत्री का पद इस बहस में नहीं घसीटा जाना चाहिए। शायद उस समय

दिल्ली में भी नरसिंहाराव सरकार चली गई थी और कुछ नए प्रधानमंत्री के लिए बयानों, बहसों का सिलसिला चल रहा था। खैर उसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि हर विवाद में कूद जाने वाले फारुख भी इस संवेदनशील मुद्दे पर बहुत ही गंभीर और संतुलित रवैया दिखा रहे थे। अभी भी उनका शायद यही स्टेंड है। और देश के बाकी उन नेताओं का भी जो मुस्लिम हैं।

मगर ओवैसी भावनाएं भड़काने के लिए न केवल मुसलमान की बात कर रहे हैं। बल्कि हिजाब पहनने वाली लड़की के प्रधानमंत्री बनाने की। पहली बार उन्होंने यह बात तब कही थी जब कर्नाटक में हिजाब को लेकर मुद्दा बनाया जा रहा था। और दूसरी बार अभी तब जब ब्रिटेन में भारतीय मूल के ऋषि सुनक प्रधानमंत्री बन रहे थे।

मुसलमानों में महिला शिक्षा कैसे बड़े मुख्य मुद्दा यह है। हिजाब के विवाद से लड़कियों की शिक्षा पर विपरित असर न पड़े चिन्ता यह होना चाहिए। न कि यह कि हिजाबी लड़की प्रधानमंत्री बने। यह शिक्षा के मुद्दे को भटकाने से भी आगे जाकर मुसलमानों को धार्मिक ध्रुविकरण की आग में ईंधन की तरह उपयोग करने की बात है।

मुसलमान प्रधानमंत्री और वह भी हिजाब वाली लड़की को टीवी ने खूब हवा दी। क्यों? क्योंकि इससे दूसरी तरफ भावनाओं को भड़काने में बहुत मदद मिलती है। सोचिए ऐसे टाइम में जहां नौकरी के लिए टीवी चैनल दिखाता हो आईएएस जिहाद! जहां देश की सरकार में एक भी मुसलमान मंत्री तो छोड़िए कोई सांसद तक न हो। वहां हिजाबी प्रधानमंत्री का शिगूफा छोड़ने का क्या मतलब है?

भाजपा हर तरफ से सिर्फ मुसलमानों से जुड़े मुद्दों को उठा रही है। हर राज्य में चुनावी वादा करती है कि समान नागरिक संहिता बनाएगी। जैसे यह कानून बनाने का अधिकार राज्यों को हो! मदरसों को विवाद में लाने के लिए उनके सर्वेक्षण की खबरें, नमाज कहां पढ़ ली इसको लेकर वीडियो, एफआईआर। खुले आम सांसद द्वारा मुसलमानों के बहिष्कार की बातें, यहां तक कि प्रवचन में उर्दू शब्द आने पर आपत्ति। और ऐसे में महा काल्पनिक हिजाबी प्रधानमंत्री की बात!

यह भाजपा और आरएसएस के ध्रुवीकरण को और गति देने के अलावा कुछ नहीं हैं। अभी दिल्ली के नगर निगम के चुनाव और गुजरत के विधानसभा चुनावों में भाजपा अपना सबसे ज्यादा आजमाया हुआ हिन्दु मुसलमान कार्ड ही खेलेगी। उसके पास काम दिखाने के लिए कुछ नहीं है। ऐसे में उसे ओवैसी, मायावती, चन्द्रशेखर आजाद और इसी तरह की दूसरी विभाजन में मदद करने वाली शक्तियों की बहुत जरूरत पड़ेगी।

समझना जनता को होगा। नहीं समझेगी भुगतेगी। हम जैसे लोग बोलेंगे। गालियां खाएंगे। और अब एक नई विधा आ गई है। प्रधानमंत्री जी ने बताई है कि गालियां खाकर उन्हें न्यूट्रिशन में कैसे बदलना है। तो उसीके मुताबिक गालियां खाने की ताकत बढ़ाई जाएगी। ओवेसी के भक्त चाहें तो चीजों को समझकर अपने नेता पर दबाव बना सकते हैं कि वे भाजपा की मदद करना बंद करें। और नहीं समझना चाहें तो मोदी जी के फार्मूले के मुताबिक हम लोगों को भी गालियों में से पोषक तत्व ढुंढना शुरू करना पड़ेगा।

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