महिला आरक्षण का मुद्दा ठंडे बस्ते में!

केंद्र सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुला कर महिला आरक्षण का बिल पास कराया था। नए संसद भवन में पहला विधायी काम यही हुआ था कि नारी शक्ति वंदन अधिनियम यानी महिला आरक्षण बिल पेश हुआ था। आनन-फानन में उसे दोनों सदनों से पास कराया गया और उसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी से यह कानून भी बन गया। विशेष सत्र खत्म होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले दौर में जिन चुनावी राज्यों में गए वहां उन्होंने अपनी जनसभाओं में इस कानून का जिक्र किया। इसका श्रेय लिया कि दशकों से जो काम लंबित था और कोई पार्टी नहीं कर पा रही थी वह उन्होंने कर दिया। उन्होंने दावा किया कि अब महिलाओं को सशक्त होने से कोई नहीं रोक सकता है।

लेकिन उसके बाद से इसकी चर्चा बंद है। प्रधानमंत्री मोदी ने आखिरी बार पांच अक्टूबर को मध्य प्रदेश और राजस्थान में जनसभा की थी। उससे पहले वे तेलंगाना और छत्तीसगढ़ गए थे। लेकिन अक्टूबर महीने में हुई अपनी कोई पांच या छह जनसभाओं में महिला आरक्षण का जिक्र नहीं किया और न इसका श्रेय लिया। सवाल है कि जिस कानून के बारे में माना जा रहा था कि यह गेमचेंजर हो सकता है उसके बारे में चर्चा क्यों नहीं हो रही है? भाजपा के नेता जनता के बीच इस मुद्दे पर वोट क्यों नहीं मांग रहे हैं?

असल में भाजपा ने दो कारणों से इस पर चर्चा बंद की है या चुनाव के मुख्य मुद्दों में इसे नहीं रखा है। पहला कारण है जातीय गणना और आरक्षण की सीमा बढ़ाने का विपक्ष का दांव। बिहार में जब से जाति गणना के आंकड़े आए हैं तब से महिला आरक्षण की चर्चा बंद हुई है। बिहार के आंकड़ों से पता चला है कि पिछड़ी आबादी 63 फीसदी है, जिसमें 36 फीसदी अति पिछड़ी जातियां हैं। बिहार के तुरंत बाद ओडिशा की सरकार ने भी जाति गणना के आंकड़े जारी किए और पता चला कि आदिवासी बहुलता वाले उस राज्य में भी 39 फीसदी से ज्यादा पिछड़ी जातियों की आबादी है। ध्यान रहे महिला आरक्षण के भीतर एससी और एसटी के आरक्षण का प्रावधान तो है लेकिन ओबीसी जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है।

चूंकि अब जातीय गणना के बाद बिहार, ओडिशा सहित देश के दूसरे कई राज्यों में पिछड़ी जातियों के अंदर नए सिरे से एक चेतना जगी है। उससे भाजपा को लग रहा है कि अगर महिला आरक्षण कानून पर फोकस बना तो उसके साथ ही ओबीसी आरक्षण की मांग भी उठेगी और तब जवाब देना मुश्किल होगा। इसलिए महिला आरक्षण का मुद्दा ठंडे बस्ते में गया है। दूसरा कारण यह है कि महिला आरक्षण का कानून एक पोस्ट डेटेड चेक है। वह अभी नहीं लागू हो रहा है। उसे अगली जनगणना और परिसीमन के साथ जोड़ा गया है। सो, एक तो महिला आरक्षण कानून अभी लागू नहीं हो रहा है और बिल पास कराने वाली भाजपा महिलाओं को नाममात्र की टिकट दे रही है। तभी महिला आरक्षण की जितनी ज्यादा चर्चा होगी, उतना ही ज्यादा यह मुद्दा उठेगा कि भाजपा कितनी महिलाओं को टिकट दे रही है। इस वजह से इसे चर्चा से हटा दिया गया है।

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