सरकार क्या नकदी को नियंत्रित कर पाएगी?

भारतीय मुद्रा यानी रुपए पर लक्ष्मी और गणेश की तस्वीर लगाने की बहस और नोटबंदी के छह साल पूरे होने के बीच रुपए को लेकर दो खबरें आई हैं। पहली खबर तो यह है कि भारत में डिजिटल मुद्रा या डिजिटल रुपए की शुरुआत हो गई है। इसे एक नवंबर को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया। फिलहाल यह थोक कारोबार के लिए है और सिर्फ नौ बैंकों को इसकी इजाजत दी गई है। दूसरी खबर यह है कि भारत में लोगों के हाथ में नकदी की मात्रा बढ़ कर 30.88 लाख करोड़ रुपए हो गई है। नोटबंदी के समय भारत के लोगों के हाथ में करीब 18 लाख करोड़ रुपए की नकदी थी, जो छह साल में बढ़ कर 31 लाख करोड़ रुपए के करीब पहुंच गई है। यानी इसमें 13 लाख करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हुई है। एक तरफ डिजिटल लेन-देन बढ़ रहा है और सरकार डिजिटल करेंसी का प्रयोग कर रही है और दूसरी ओर लोगों के हाथ में नकदी बढ़ रही है। ये दोनों एक दूसरे की विपरीत स्थितियां हैं। तभी सवाल है कि क्या नोटबंदी के जरिए कैशलेस इकोनॉमी बनाने की जो पहल हुई थी उसकी विफलता के बाद दूसरे प्रयास के तौर पर डिजिटल करेंसी लाई जा रही है?

पहले भारत में हो रहे डिजिटल करेंसी के प्रयोग को देखें। इसकी घोषणा पिछले बजट में की गई थी और बजट घोषणा के आठ महीने बाद इसे लांच कर दिया गया। अभी थोक कारोबार के लिए इसका पायलट प्रोजेक्ट शुरू हुआ है और अगले एक महीने में खुदरा कारोबार के लिए भी इसका परीक्षण शुरू हो जाएगा। डिजिटल करेंसी एक तरह से कागजी नोट ही है। जैसे कागजी नोट आपके हाथ में होता है वैसे डिजिटल करेंसी आपके हाथ में भौतिक रूप में होने की बजाय सूक्ष्म यानी डिजिटल रूप में होगी। सोने से होने वाला लेन-देन समाप्त करके जब इंगलैंड ने कागज के नोट जारी किए थे तब उसे फ्लाइंग कैश कहा गया था। उसी तरह कागज के नोट की जगह जो डिजिटल नोट जारी हो रहा है वह इनबिजिबल कैश यानी अदृश्य नकदी होगी। आपके डेबिट कार्ड से यह करेंसी इस लिहाज से भिन्न होगी कि यह मुद्रा आपके बैंक खाते में नहीं होगी, बल्कि आपके बटुए में होगी। इससे आप कांटैक्टलेस लेन-देन कर सकेंगे। इसके बड़े फायदे बताए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि इससे लेन-देन आसान हो जाएगा। लेन-देन में लगने वाले शुल्क कम हो जाएंगे और रुपए की छपाई पर होने वाला खर्च भी समाप्त हो जाएगा।

लेकिन यह इतना आसान मामला नहीं है। जिस तरह नोटबंदी का वास्तविक मकसद समझने में बहुत समय लग गया और हर दिन सरकार गोलपोस्ट बदलती रही उसी तरह डिजिटल करेंसी जारी करने के वास्तविक मकसद को समझना आसान नहीं है। याद करें नोटबंदी किस मकसद से हुई थी? कहा गया था कि इससे काला धन समाप्त हो जाएगा और जाली नोट खत्म हो जाएंगे। शुरुआती मकसद यही बताया गया था। उसके बाद कहा गया कि इससे देश कैशलेस सोसायटी की तरफ बढ़ेगा। ये दोनों मकसद पूरे नहीं हुए हैं। न काला धन समाप्त हुआ और न जाली नोट खत्म हुए हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के एक आंकड़े के मुताबिक देश में जारी करेंसी में से नौ लाख 21 हजार करोड़ रुपए की नकदी बाजार से गायब है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 2016 से लेकर अभी तक पांच सौ और दो हजार रुपए के कुल 6,849 करोड़ कागजी नोट छापे। इनमें से 1,680 करोड़ नोट सरकुलेशन से गायब हो गए हैं। इन गायब नोटों में ज्यादातर दो हजार के नोट हैं और इनकी कीमत 9.21 लाख करोड़ रुपए है।

गायब हुए 9.21 लाख करोड़ रुपए में वो नोट शामिल नहीं हैं, जो बैंक में हैं या खराब होने के बाद बैंक नष्ट कर देते हैं। ये नोट लोगों के पास हैं, उनके घरों में दबे हैं, चलन से बाहर हो गए हैं। हैरानी की बात है कि बिहार और झारखंड जैसे पिछड़े राज्य में करीब 90 हजार करोड़ रुपए के दो हजार के नोट बाजार से गायब हो गए हैं। अब आप अंदाजा लगाते रहें कि नोट क्यों गायब हुए। लोगों ने कोरोना महामारी के बाद अपनी सुरक्षा के लिए नकदी घर में दबा ली या दो हजार के नोट काले धन में तब्दील हो गए! जो भी हो काला धन खत्म करने का लक्ष्य हासिल नहीं हुआ। जहां तक जाली नोट का मामला है तो पिछले दिनों गुजरात की एक एंबुलेस से 25 करोड़ के जाली नोट मिले थे और उसके साथ पकड़े गए लोगों से पूछताछ हुई तो तीन सौ करोड़ रुपए के और जाली नोट मिले। सो, जाली नोट खत्म करने का मकसद भी पूरा नहीं हुआ। भारत को कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाने का मकसद भी अधूरा है। यह सही है कि डिजिटल लेन देन में बढ़ोतरी हुई है। वॉल्यूम और वैल्यू दोनों लिहाज से डिजिटल लेन देन बढ़ा है लेकिन उसी अनुपात में नकदी भी बढ़ती गई है। डिजिटल लेन देने का एक फायदा यह बताया गया था कि इससे लूटमार कम होगी। लेकिन असल में इसका उलटा हुआ है। बैंकिंग फ्रॉड से हर साल हजारों करोड़ रुपए की लूट हो रही है।

बहरहाल, भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया है कि भारत के लोगों के हाथ में 21 अक्टूबर 2022 को 30.88 लाख करोड़ रुपए की नकदी थी। ठीक छह साल पहले छह नवंबर 2016 को जब पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट चार घंटे की नोटिस पर बंद कर दिए गए थे तब भारत के लोगों के पास 17.97 लाख करोड़ रुपए की नकदी थी। पिछले छह साल में इसमें 12.91 लाख करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हुई है। आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक नोटबंदी के के तुरंत बाद लोगों के हाथ में 7.8 लाख करोड़ की नकदी बची थी, जो करीब तीन हफ्ते बाद यानी 25 नवंबर 2016 को 9.11 लाख करोड़ रुपए पहुंच गई थी। उसके बाद से इसमें 239 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। हर साल औसतन 2.39 लाख करोड़ रुपए की नकदी बढ़ी है। जनता के हाथ में नकदी का मतलब है सरकुलेशन में कुल जितनी नकदी है उसमें से बैंक में जमा नकदी को हटा कर जो रकम बचती है। भारत की जीडीपी में नकदी का अनुपात 2016-17 में 10 से 12 फीसदी था, जो 2020-21 में 14.4 फीसदी हो गया। जाहिर है कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाने का प्रयास अधूरा रह गया।

तो क्या अब माना जाए कि काला धन व जाली नोट रोकने और नकदी का चलन कम करने के तीनों लक्ष्य एक साथ डिजिटल मुद्रा से पूरे किए जाएंगे? या इस डिजिटल करेंसी का वास्तविक मकसद कुछ और है? असल में डिजिटल करेंसी आम लोगों के जीवन और उनके अर्थ व्यवहार को पूरी तरह से नियंत्रित करने का एक उपाय है। नई विश्व व्यवस्था के तहत प्रत्यक्ष तानाशाही बहाल किए बिना नागरिकों के जीवन के हर पहलू को नियंत्रित करने का प्रयास हो रहा है। डिजिटल करेंसी उसी प्रयास का एक हिस्सा है। ध्यान रहे नकदी आम आदमी की सबसे बड़ी ताकत होती है। वह वास्तविक अर्थों में उसकी स्वतंत्रता और स्वायत्तता का प्रतीक है। किसी भी रूप में डिजिटल करेंसी वह स्वायत्तता नहीं देती है, जो नकदी से मिलती है। नकदी को सरकार नियंत्रित नहीं कर सकती है, लेकिन डिजिटल करेंसी 10 तरह से नियंत्रित की जा सकती है। कभी आपका ऐप काम नहीं करेगा, कभी नेट कनेक्ट नहीं होगा, कभी वेंडर के पास डिजिटल की सुविधा नहीं होगी, कभी आपके बैंकिंग सिस्टम में खराबी आ जाएगी और इन सबका खामियाजा आपको भुगतना होगा। सोचें, कितने बारीक तरीके से इस काम को अंजाम दिया जा रहा है। देश भर में बैंकों का विलय हो रहा है, उनकी शाखाएं कम हो रही हैं, नकद लेन-देन को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से हतोत्साहित किया जा रहा है, देश के ग्रामीण इलाकों में अक्सर बैंकों का सर्वर और नेटवर्क डाउन मिलेगा या नकदी नहीं होगी और साथ ही अघोषित रूप से नकदी निकालने की सीमा तय की जा रही है। असल में समूची डिजिटल अर्थव्यवस्था देश के एक छोटे समूह को फायदा पहुंचाने के लिए है, जिसका सारा काम बैंकिंग और मौद्रिक व्यवस्था से चलता है। इससे उस छोटे समूह की संपत्ति बढ़ेगी और सरकार की नागरिकों को नियंत्रित करने की क्षमता बढ़ेगी।

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