राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 तक भाजपा के अध्यक्ष बने रहेंगे सतीश पूनिया?
जयपुर। सतीश पूनिया के कार्यकाल को तीन साल पूरे होने जा रहे हैं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पूनिया ने 14 सितंबर 2019 को कुर्सी संभाली थी। शुरू में यही कहा जा रहा था कि गुटबाजी से घिरी भाजपा को पूनिया नहीं संभाल पाएंगे। मगर दिन रात कड़ी मेहनत,लगातार दौरों और कार्यकर्ताओं के बीच प्रदेश के हर कोने में अपनी मौजूदगी से पूनिया हर बाधा पार करते चले गये। अगले साल चुनाव होने हैं,ऐसे में अटकलें हैं कि पूनिया क्या अध्यक्ष पद पर बनें रहेंगे। बीजेपी के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह इस बारे में हाल ही में कह चुके हैं कि पूनिया चुनाव तक अध्यक्ष बनें रहेंगे। उसके बाद पूनिया के चेहरे पर मुस्कान है। तो उनके समर्थकों में भी खुशी की लहर दिखती है। हालांकि पूनिया कह रहे हैं कि पद मायने नहीं रखता, पार्टी जैसा दायित्व देगी मैं काम करता रहूंगा।
भले ही हालात प्रतिकूल थे, मगर पूनिया हर मोर्चे पर कांग्रेस सरकार को घेरते रहे। श्रीगंगानगर से लेकर बांसवाड़ा तक और भरतपुर से लेकर बाड़मेर तक, सरकार विरोधी आंदोलनों की उन्होंने हर जगह अगुवाई की। किसान सम्मेलनों को संबोधित किया और पार्टी के मोर्चों की प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में बैठकें कराईं। राष्ट्रीय पदाधिकारियों की सफल बैठक जयपुर में आयोजित कराकर अपनी नेतृत्व क्षमता की चमक भी बिखेरी।
जे पी नडडा और अमित शाह के प्रदेश में कई सफल दौरे कराए और पार्टी के कार्यकर्ताओं की उम्मीदों पर खरे भी उतरे। विरोध करने वाले विरोध करते रहे, मगर पूनिया ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कदम दर कदम आगे बढ़ाते रहे। जब भी मौका लगा, जनविरोधी नीतियों पर सदन से लेकर सड़क तक सरकार को ललकारते रहे. वक्त-वक्त पर वरिष्ठों का साथ मिलता रहा। इसलिए मुश्किलें आसान होती चलीं गईं।
अध्यक्ष पद पर बने रहने की संभावना
ऐसे दौर में जब राजस्थान की भाजपा का दिल्ली में जबरदस्त दबदबा है, पूनिया के कार्यकाल का आगे बढ़ना कोई आसान काम भी नहीं है। गजेंद्र सिंह शेखावत,अर्जुन मेघवाल,कै
लाश चौधरी,भूपेंद्र यादव,ओम माथुर,अश्विनी वैष्णव,ओम बिरला से लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ तक राजस्थान भाजपा से निकले नेता देश की राजनीति के केंद्र बिंदु में हैं। मगर पूनिया का लो प्रोफाइल होना फिलहाल उनके पक्ष में है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो माना यही जा रहा है कि पूनिया विधानसभा चु़नाव तक पद पर बने रहेंगे। पार्टी अब नये अध्यक्ष को लाकर उसकी चुनौतियों में इजाफा शायद ही कर पाने की सोचे।