भाजपा क्षत्रपों को अब क्यों पूछेंगे मोदी?
क्या अब यह माना जाए कि हिंदी पट्टी के चुनाव वाले तीन राज्यों में भाजपा के पुराने क्षत्रपों का सूरज अस्त हो गया? मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में 2003 में तीन क्षत्रप उभरे थे। उसके थोड़े दिन पहले ही गुजरात में एक मजबूत क्षत्रप नेता के तौर पर नरेंद्र मोदी स्थापित हुए थे। उसके थोड़े दिन बाद मध्य प्रदेश में उमा भारती व शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान में वसुंधरा राजे और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह नेता बने थे। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इन राज्यों का पहला चुनाव 2018 में हुआ था और भाजपा इन क्षत्रपो के नाम, काम और चेहरे पर चुनाव लड़ी थी। उस समय तीनों राज्यों में भाजपा हार गई थी। तभी इस बार तीनों क्षत्रपों को किनारे करके नरेंद्र मोदी के नाम पर पार्टी ने चुनाव लड़ा और ऐतिहासिक जीत हासिल की।
तभी अब सवाल है कि मोदी इन राज्यों में पुराने क्षत्रपों को क्यों पूछेंगे? तर्क के लिए कहा जा सकता है कि छह महीने के बाद लोकसभा के चुनाव हैं और इसलिए मोदी कोई जोखिम नहीं लेना चाहेंगे। इसलिए वे पुराने क्षत्रपों को ही मौका देंगे और अगर बदलाव करना होगा तो लोकसभा चुनाव के बाद करेंगे। पक्के तौर पर कोई नहीं बता सकता है कि मोदी के मन में क्या है और वे किसी मुख्यमंत्री बनाएंगे लेकिन इतना तय हो गया कि जीत उनकी है, उनके नाम की है, उनके प्रचार की है। प्रादेशिक क्षत्रपों की भूमिका बहुत सीमित रही है। संभव था कि पार्टी उनके नाम पर चुनाव लड़ती तो ऐसे नतीजे नहीं आते। तभी मोदी ने अपनी साख दांव पर लगाई। इसलिए वे जिसे चाहें उसे मुख्यमंत्री बनाएंगे। कोई दावा नहीं कर सकता है और न फैसले पर कोई सवाल उठा सकता है।