वर्ष 2024 का राजनीतिक सूत्र क्या है?
दुनिया भर में अंग्रेजी शब्दकोष के लिए वर्ष के शब्द चुने जाते हैं। जैसे ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने ‘ब्रेन रॉट’ को वर्ष का शब्द चुना है। जब से इसे वर्ष का शब्द चुना गया है, इसके बारे में जानने के लिए करोड़ों लोगों ने इसे सर्च किया। भले ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने इसे वर्ष 2024 का शब्द चुना लेकिन असल में यह शब्द समकालीन समय की वास्तविकताओं का प्रतीक शब्द है। जिस तरह से सोशल मीडिया का कंटेंट देखने पर अरबों घंटे बरबाद हो रहे हैं उससे औसत दिमाग सड़ जाने की स्थिति में ही पहुंच गया है। ‘ब्रेन रॉट’ यानी दिमागी सड़ांध ही वह कारण है, जिसकी वजह से निहित स्वार्थों द्वारा मिसइन्फॉर्मेशन और डिसइन्फॉर्मनेशन कैम्पेन चला कर लोगों के दिमाग को आसानी से प्रभावित किया जा रहा है।
मरियम वेबस्टर डिक्शनरी ने वर्ष 2024 के लिए ‘पोलराइजेशन’ को वर्ष का शब्द चुना है। उसने वैसे तो अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव में नस्ल के आधार पर हुए ध्रुवीकरण की वजह से इसे वर्ष का शब्द चुना है लेकिन कहने की जरुरत नहीं है कि भारत के चुनाव और रोजमर्रा की राजनीति के लिहाज से भी यह बहुत उपयुक्त शब्द है। कह सकते हैं कि मरियम वेबस्टर डिक्शनरी का इस वर्ष का शब्द भारत की पिछले कई वर्षों की राजनीतिक हकीकत को प्रकट करने वाला है। ऐसे ही कैम्ब्रिज डिक्शनरी ने ‘मैनिफेस्ट’ को वर्ष का शब्द चुना है। यह भारत की वास्तविकताओं के लिए यह थोड़ा अनजाना शब्द है क्योंकि यहां कुछ भी मैनिफेस्टेड नहीं होता है यानी बहुत योजनाबद्ध तरीके से सब कुछ तय करके कुछ नहीं किया जाता है। यहां ज्यादातर चीजें भगवान भरोसे होती हैं। इस सनातन मान्यता को तुलसीदास ने ‘होइहे सोई जो राम रचि राखा’ के दोहे से प्रतीकित किया है। कह सकते हैं कि यहां लोगों का जीवन और कामकाज नियति की ‘मैनिफेस्ट’ करती है।
दुनिया में वर्ष के शब्दों की तलाश के बारे में पढ़ते हुए मन में यह सवाल उठा कि इस वर्ष भारत में कौन सा शब्द या कौन सी बात ऐसी है, जिसे वर्ष की बात कह सकते है? तीन शब्दों से बना यह जुमला कि ‘बंटोंगे तो कटोगे’, वर्ष 2024 की भारत की बात है। यह जुमला एक खास संदर्भ में कहा गया है। इसके जरिए देश के हिंदुओं से आह्वान किया गया है कि उन्हें एकजुट रहना है ताकि उनके चिन्हित ‘दुश्मन’ यानी मुसलमान उनको काट नहीं सकें। इस शाब्दिक अर्थ से अलग इसका भावार्थ यह है कि, ‘भाजपा को वोट दें’। परंतु इस शब्दार्थ और भावार्थ से अलग यह जुमला कई और अर्थ प्रतीकित करने वाला है। इसका इस्तेमाल मजाक में ही सही लेकिन बहुत सारी चीजों के लिए होने लगा है। यहां तक कि दोस्तों के बीच सहज भाव से यह जुमला बोला जा रहा है तो परिवारों में भी एकजुटता की जरुरत बताने के लिए इस जुमले का इस्तेमाल हो रहा है। कह सकते हैं कि अर्थ और अभिप्राय दोनों दृष्टि से यह जुमला निर्धारित सीमाओं को तोड़ कर आगे बढ़ गया है।
इस जुमले का एक राजनीतिक पाठ तो वह है, जिसे भावार्थ के रूप में ऊपर बताया गया है लेकिन उससे अलग इसका दूसरा पाठ देश की विपक्षी पार्टियों के लिए खास संदेश के रूप में है। वर्ष 2024 में विपक्ष की राजनीति व्यापक एकजुटता के साथ शुरू हुई थी। उस समय तक यह जुमला बोला नहीं गया था। लेकिन विपक्ष ने समझ लिया था कि ‘एक रहेंगे तभी सेफ रहेंगे’। दस साल के नरेंद्र मोदी के शासन और भाजपा की राजनीति ने उन्हें यह सीख दी थी कि वे एक हो जाएं और मिल कर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ें। अगर अवधारणा के स्तर पर देखें तो इसमें नयापन नहीं था। आखिर 1977 में भी विपक्ष ने एकजुट होकर इंदिरा गांधी को हराया था या 1989 में भी एकजुट विपक्ष ने राजीव गांधी को सत्ता से बाहर किया था। परंतु ऐसा लग रहा है कि विपक्ष इस राजनीतिक सबक को भूल चुका था। 2014 के बाद 10 सालों में जिस तरह की राजनीति हुई और उसके जो परिणाम आए उसने विपक्षी पार्टियों को फिर से एकजुट किया। इस एकजुटता को परिभाषित करने लिए साल के जाते जाते तक सूत्र वाक्य भी मिल गया कि ‘बंटोंगे तो कटोगे’!
सवाल है कि क्या विपक्ष इस सूत्र वाक्य के मुताबिक काम करने को तैयार है या अपनी आत्मघाती आस्था में बंट कर बिखरने और कटने के लिए तैयार है? यह सवाल इसलिए है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी तो इस जुमले के हिसाब से काम करने को तैयार है। हर राज्य में किसी न किसी रूप में यह जुमला बोला जा रहा है। यहां तक कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने भी इस जुमले के साथ होने वाली राजनीति पर सैद्धांतिक मुहर लगा दी है। भाजपा की सहयोगी पार्टिंयों में भी एकाध अपवाद को छोड़ कर सबने कमोबेश इसे स्वीकार कर लिया है। ‘बंटोंगे तो कटोगे’ जुमले का अर्थ वेबस्टर डिक्शनरी के ‘ध्रुवीकरण’ शब्द से ज्यादा व्यापक है। ध्रुवीकरण वक्ती होता है। वह थोड़े समय के लिए होता है। किसी व्यापक और ऐतिहासिक खतरे से बचने के लिए एकजुट होने का आह्वान उससे आगे की चीज है। यह कुछ कुछ कंसोलिडेशन यानी समेकन की तरह है। यह धार्मिक, सांस्कृतिक और सभ्यतागत मूल्यों के आधार पर एकजुटता का आह्वान है, जिसका दायरा बहुत व्यापक है। ‘बंटोंगे तो कटोगे’ भले सुनने में बहुत वैचारिक गांभीर्य वाला जुमला नहीं लग रहा हो लेकिन इसका अर्थ और अभिप्राय गहरा है और इसके आधार पर होने वाली राजनीति ज्यादा गंभीर है।
विपक्षी पार्टियों को भी इस जुमले के अर्थ और अभिप्राय को समझने की जरुरत है। उनके लिए एकजुटता का अर्थ चुनावी जीत तक सीमित है। उसका कोई सांस्कृतिक, सामाजिक या धार्मिक आयाम नहीं है। इसलिए जैसे ही चुनाव खत्म हुआ है उनकी एकता टूटने लगी है। वे जीत या हार के चुनावी नतीजे को अपने और अपनी पार्टी के राजनीतिक हित के हिसाब से देखते हैं और फिर इस आधार पर व्याख्या करते हैं कि एकजुटता से उनको कितना फायदा हुआ और दूसरे लोगों ने कितना लाभ उठाया। तभी लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस व उसकी सहयोगी पार्टियों में यह घमासान छिड़ गया कि साथ होने से किसको ज्यादा और किसको कम फायदा हुआ है।
सब पार्टियां श्रेय लेने लगीं कि विपक्ष उसकी वजह से जीता है। तभी लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद विपक्षी गठबंधन में दरार दिखने लगी, जो राज्यों के चुनाव और संसद का शीतकालीन सत्र समाप्त होने तक चौड़ी खाई में तब्दील हो चुकी है। अगर विपक्षी पार्टियां ‘बंटोंगे तो कटोगे’ जैसे वर्ष 2024 के सूत्र को अर्थ और अभिप्राय यानी ‘लेटर एंड स्पिरिट’ में नहीं लेंगी तो उनके लिए आगे की राजनीति मुश्किल होती जाएगी। उनको समझना होगा कि आने वाले अनेक वर्षों तक भाजपा की राजनीति इस सूत्र वाक्य के आधार पर चलेगी। भाजपा को बहुसंख्यक हिंदुओं को इतिहास याद दिला कर यह संदेश स्थापित करना है कि ‘बंटोंगे तो कटोगे’। विपक्ष को इस संदेश और इससे बनने वाले नैरेटिव के बरक्स अपना एक विमर्श स्थापित करने की चुनौती है और इस चुनौती का मुकाबला करने की प्राथमिक शर्त एकजुटता है। यानी विपक्ष को भी इस सूत्र वाक्य की गांठ बांधनी होगी कि ‘बंटोंगे तो कटोगे’।