मोदी को वोट के मूड का आधार क्या?
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने के मौके पर कई तरह के सर्वेक्षण हुए, जिनसे मोदी सरकार की लोकप्रियता बरकरार रहने का निष्कर्ष जाहिर हुआ। यह भी बताया गया कि प्रधानमंत्री के लिए मोदी सबसे ज्यादा लोगों की पसंद हैं और अगर आज चुनाव हो तो उनको पिछली बार से कुछ ज्यादा वोट मिलेंगे। ध्यान रहे मोदी का लगातार दूसरा कार्यकाल पूरा होने वाला है। उससे पहले यदि देश में यह राय है तो यह सरकार की बड़ी सफलता है। हालांकि इन सर्वेक्षणों की गुणवत्ता और वस्तुनिष्ठता को लेकर उठने वाले सवाल अपनी जगह हैं। यह भी सही है कि इससे देश के 90 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं की पसंद जाहिर नहीं होती है इसके बावजूद इनसे देश के लोगों के मूड और उनके रूझान का पता चलता है।
निजी तौर पर मोदी की और उनकी सरकार की लोकप्रियता का डंका बजाने वाले इन सर्वेक्षणों से कुछ और बातें जाहिर हुई हैं। जैसे जनता महंगाई से त्रस्त है। बेरोजगारी की चिंता में है। गरीबी बढ़ने से परेशान है। भ्रष्टाचार को एक बड़ी समस्या मानती है। स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर मुश्किल में है। देश की सबसे भरोसेमंद एजेंसियों में से एक सीएसडीएस के सर्वेक्षण के मुताबिक 57 फीसदी लोग महंगाई से परेशान हैं। सर्वेक्षण में शामिल 45 फीसदी लोगों ने माना की भ्रष्टाचार रोकने के मामले में सरकार ने बुरा काम किया है। इसके अलावा आठ फीसदी ने माना की इस मामले में सरकार का काम औसत है। इसका मतलब है कि भ्रष्टाचार पर 53 फीसदी लोग सरकार के काम से संतुष्ट नहीं हैं। किसानों के लिए 39 फीसदी ने सरकार के कामकाज को अच्छा माना है और 46 फीसदी ने खराब माना है। जब यह सवाल पूछा गया कि देश के सामने सबसे बड़ी समस्या क्या है तो 29 फीसदी के सबसे बड़े समूह ने बेरोजगारी को सबसे बड़ी समस्या बताया।
तभी सवाल है कि जब महंगाई, भ्रष्टाचार और गरीबी देश की बड़ी समस्या बनी हुई है तो इन्हें खत्म करने के नाम पर बनी सरकार को फिर से वोट डालने का आधार क्या है? किस आधार पर पहले से दो फीसदी ज्यादा लोगों ने उसी सरकार को वोट करने का रूझान जाहिर किया, जिसने सबसे कोर मुद्दों पर लोगों को निराश किया है? जिस सरकार में लोग महंगाई कम होने, भ्रष्टाचार समाप्त होने, गरीबी दूर होने और अच्छे दिन आने की उम्मीद लगाए हुए थे उस सरकार में अगर महंगाई, गरीबी और भ्रष्टाचार बढ़ा है तो लोगों को इस मुद्दे पर सरकार को सजा देनी चाहिए या समर्थन करना चाहिए? हैरानी की बात है कि सभी अहम मसलों पर सफल नहीं होने के बावजूद कोई राजनीतिक कीमत भाजपा की मौजूदा सरकार को नहीं चुकानी पड़ी है। और कम से कम सर्वेक्षणों में जो दिख रहा है उससे लग रहा है कि आगे भी इसकी कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी। हां, राज्यों में जरूर भाजपा कुछ जगह हारी है लेकिन उसके कारण अलग अलग रहे हैं और लगभग पूरी तरह से स्थानीय हैं। कहीं से ऐसा जाहिर नहीं हुआ है कि लोग भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से नाराज हैं। उलटे नरेंद्र मोदी का चेहरा प्रदेशों के चुनाव में भी भाजपा का वोट सुरक्षित रखने में मदद करता है या उसे बढ़ाता है।
ऐसा होने के कई कारण हैं, जिनमें से एक कारण हाल में हुए सर्वेक्षणों से भी जाहिर हुआ है। तमाम अहम मसलों पर केंद्र सरकार की विफलता या आंशिक सफलता की राय जाहिर करने वाली जनता भी यह मान रही है कि देश में विकास हुआ है। इस पर बहस हो सकती है लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि यह धारणा देश में बनी है। तटस्थता का दावा करने वाले कई स्तंभकारों ने भी सरकार के नौ साल पूरे होने के मौके पर जो लिखा उसमें कहा कि उन्होंने अपने जीवन में बुनियादी ढांचे का इतना तेज विकास नहीं देखा। प्रचार, भाषण और लेखों के जरिए विकास होने का नैरेटिव बनाया गया है। सीएसडीएस के सर्वेक्षण में भी दिखा कि 47 फीसदी लोगों ने माना की बहुत अच्छा विकास हुआ है और आठ फीसदी ने औसत विकास होने की बात कही। यानी 55 फीसदी लोग विकास के मामले में संतुष्ट हैं। विकास का नैरेटिव बनाने के साथ ही दो और चीजें इससे जोड़ी गई हैं। पहली कि अब तक आजादी के बाद कोई विकास नहीं हुआ था। दूसरी कि भारत के विकास से दुनिया भर में जो भारत के दुश्मन हैं वे परेशान हैं और भारत के खिलाफ माहौल बना रहे हैं और विपक्ष उनके साथ जुड़ा हुआ है। सो, पहला कारण तो यह है कि विकास की धारणा और उसके साथ जुड़ा नैरेटिव बाकी कमियों को ढक देता है।
लोग भ्रष्टाचार, गरीबी और बेरोजगारी से चिंतित हैं लेकिन यह उनके वोट डालने का आधार नहीं है तो उसका एक कारण राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रवाद और नरेंद्र मोदी का मजबूत नेतृत्व है। पिछले नौ साल में अलग अलग तरीकों के इस्तेमाल से मोदी की छवि मजबूत और निर्णायक नेता की बनी है। उनके 56 इंची छाती के जुमले का चाहे जितना मजाक उड़ाएं, लेकिन लोगों के मन में यह बात बैठी है कि वे एक मजबूत नेता हैं और देशहित में फैसले करते हैं। अनुच्छेद 370 समाप्त करना इसकी सबसे बड़ी मिसाल है। अपनी सरकार के नौ साल पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री ने अपने भाषण से भी इस धारणा को मजबूत किया। उन्होंने कहा कि नौ साल के अपने कार्यकाल में उनका एक एक फैसला देश और इसके नागरिकों के हित में हुआ है। इसके आगे उन्होंने कहा नहीं लेकिन कहने का आशय यह था कि हो सकता है कि कुछ फैसले गलत हुए हों लेकिन उनकी मंशा गलत नहीं थी। यही कारण है कि कई मामलों में सरकार की विफलता मोदी के नेतृत्व के ऊपर नहीं चिपकती है और लोग उनको सजा देने के बारे में नहीं सोचते हैं।
मजबूत नेतृत्व के साथ साथ अपने नेतृत्व और व्यक्तित्व को उन्होंने देश की पहचान से जोड़ दिया है। प्रचार, भाषणों और एक खास समूह के विद्वानों के लेखों के सहारे काफी हद तक यह स्थापित करने की सफल कोशिश हुई है कि मोदी ही देश हैं। उनकी आलोचना करने का मतलब है देश की आलोचना करना। पिछले दिनों लंदन में राहुल गांधी के दिए एक भाषण का हवाला देते हुए भाजपा के कई नेताओं ने कहा कि राहुल ने लंदन में मोदी का अपमान करके देश का अपमान किया है। इसी आधार पर राहुल के खिलाफ मुकदमा भी हुआ है। समझदार आदमी के लिए इस तरह की बातें हास्यास्पद हो सकती हैं लेकिन देश के करोड़ों लोग इस नैरेटिव पर यकीन करते हैं और मानते हैं कि मोदी विरोधी विपक्ष देश विरोधी हो गया है। करोड़ों लोगों के बीच यह धारणा बनी है कि मोदी देश के लिए काम कर रहे हैं और विपक्ष मोदी के विरोध में।
राष्ट्रवाद और मजबूत नेतृत्व के अलावा जो तीसरा महत्वपूर्ण मुद्दा है वह धर्म का है। हालांकि इसमें भी मोदी सरकार ने नया कुछ नहीं किया है, हिंदू और मुसलमान के बीच की सदियों से बनी जो फॉल्टलाइन है उसको बड़ा कर दिया है। यह काम बहुत बारीकी से किया गया है। पहले यह काम बहुत आक्रामक और हिंसक तरीके से होता था। खुद नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते गुजरात में जो दंगे हुए थे वह इसकी मिसाल हैं। लेकिन ऐसा लग रहा है कि उन्होंने और भाजपा व दूसरी हिंदुवादी ताकतों ने भी उससे सबक लिया है। पिछले नौ साल से केंद्र में भाजपा की सरकार है और कहीं भी कोई बड़ा सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ है। हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि हिंदू और मुस्लिम में सद्भाव बढ़ा है। इसका उलटा हुआ है। दंगा नहीं होने के बावजूद पूरा देश अंदर अंदर उबलता रहा है, जैसे कढ़ाही में कोई चीज कम आंच पर धीरे धीरे पक रही हो। इस निरंतर प्रक्रिया का असर यह हुआ कि बहुसंख्यक हिंदू समाज धीरे धीरे कंसोलिडेट होता गया। वह कह भले नहीं रहा हो लेकिन मान रहा है कि सदियों की गलतियां यह सरकार सुधार रही है। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और देश के दूसरे धर्मस्थलों का पुनर्निर्माण और सौंदर्यीकरण कंसोलिडेशन की प्रक्रिया में मददगार हैं।