राहुल की यह जाति आसक्ति उन्हे ले डुबेगी!

अंग्रेजी का एक शब्द है ‘ऑब्सेशन’, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘आसक्ति’ होता है। लेकिन शाब्दिक अर्थ से ज्यादा लोग इसके अभिप्राय को समझते हैं। इन दिनों राहुल गांधी जाति के प्रति ऐसी ही आसक्ति का भाव लिए घूम रहे हैं। पिछले साल अप्रैल या मई में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनसे मिले थे और उन्होंने जाति गणना, सामाजिक न्याय और आबादी के अनुपात में आरक्षण का गुरुमंत्र उनके कान में फूंका था। वह दिन है और आज का दिन है, राहुल उस गुरुमंत्र की कंठी बना कर घूम रहे हैं। उन्होंने मान लिया कि यह गुरुमंत्र कांग्रेस को पुनर्जीवित कर सकता है और देश व समाज की सारी समस्याओं का समाधान भी कर सकता है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली सफलता ने इस गुरुमंत्र के प्रति उनकी आसक्ति को और बढ़ा दिया है।

जाति, सामाजिक न्याय और आरक्षण के प्रति अपनी आसक्ति में राहुल गांधी इतने मदहोश हो गए हैं कि उनको समझ नहीं आ रहा है कि वे जो कह रहे हैं उसका क्या मतलब है। आसक्ति में अक्सर ऐसा होता है। आदमी बेसिरपैर की बातें करने लगता है। राहुल भी ऐसे ही कर रहे हैं। ताजा मामला प्रयागराज में संविधान सम्मान सम्मेलन का है, जहां राहुल ने कहा कि उन्होंने ‘मिस इंडिया’ की सूची उठा कर देखी उसमें कोई ओबीसी, दलित या आदिवासी नहीं है। इतना ही नहीं देश के शीर्ष मीडिया एंकर्स में भी कोई इन समुदायों का नहीं है। इससे पहले राहुल गांधी ने एआईसीसी के कार्यालय में पत्रकारों से हाथ उठवाया था कि इनमें कितने ओबीसी, दलित या आदिवासी हैं। एक दिन तो एक राजनीतिक रैली में उन्होंने एक पत्रकार से जाति पूछ दी और वह पिछड़ी जाति का निकला तो उससे पूछने लगे कि तुम्हारे मालिक की क्या जाति है।

उनका यह भी कहना है कि भारत सरकार के सचिव देश चलाते हैं और 90 सचिवों में सिर्फ तीन ओबीसी हैं। उन्होंने समझा ही नहीं कि सचिव देश चलाते हैं ऐसा कह कर वे पूरी राजनीतिक बिरादरी का अपमान कर रहे हैं। अगर उनकी बात को सही मानें तो इसका मतलब होगा कि 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह ने नहीं, बल्कि सचिवों ने देश चलाया था। पी चिदंबरम, प्रणब मुखर्जी, कपिल सिब्बल, नटवर सिंह, एसएम कृष्णा, सलमान खुर्शीद, वीरप्पा मोईली आदि जो वरिष्ठ मंत्री थे वे कुछ नहीं करते थे! अगर यह बात कोई पत्रकार उनके संज्ञान में ले आए तो वे तत्काल उस पत्रकार को भाजपा का आदमी ठहरा देंगे। इसके बाद अगर कोई पत्रकार उनसे पूछ दे कि उनकी सरकार के समय कितने ओबीसी, दलित या आदिवासी सचिव थे तो हो सकता है कि उनका इकोसिस्टम उसको देशद्रोही ठहरा दे। वैसे यह खोजना दिलचस्प रहेगा कि इस सदी में कांग्रेस के 10 साल के राज में कितने सचिव दलित, पिछड़े या आदिवासी थे। तथ्य यह है कि यूपीए की पहली सरकार बनी थी तब मनमोहन सिंह के प्रधान सचिव टीकेए नायर थे, निजी सचिव बीवीआर सुब्रह्मण्यम थे, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेएन दीक्षित थे, आंतरिक सुरक्षा एमके नारायणन के पास थी और मीडिया प्रभारी संजय बारू थे। यानी पांचों ब्राह्मण थे।

इससे भी दिलचस्प यह है कि शनिवार, 24 अगस्त को जब राहुल गांधी प्रयागराज में संविधान सम्मान सम्मेलन में पहुंचे, जहां उन्होंने दलित, ओबीसी और आदिवासी ‘मिस इंडिया’ और शीर्ष एंकर्स की पड़ताल की, वहां पांच लोगों ने उनका स्वागत किया, जिनमें चार ब्राह्मण और एक भूमिहार थे। इंडियन नेशनल कांग्रेस उत्तर प्रदेश के एक्स हैंडल से जारी की गई फोटो में कहा गया है कि, ‘संविधान सम्मान सम्मेलन को संबोधित करने प्रयागराज पहुंचे जननायक राहुल गांधी जी का श्री अविनाश पांडे (कांग्रेस महासचिव/प्रभारी उत्तर प्रदेश कांग्रेस), श्री अजय राय (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश कांग्रेस), श्री प्रमोद तिवारी (उपनेता राज्यसभा), श्रीमति अनुराधा मिश्रा (कांग्रेस विधायक दल की नेता) और श्री राजेश मिश्रा (राष्ट्रीय सचिव) ने पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया’। राहुल गांधी ने एक बार खुद को कौल ब्राह्मण बताया था। सो, एक कौल ब्राह्मण का स्वागत चार अन्य ब्राह्मणों और एक भूमिहार ने किया। वहां राहुल गांधी ने कहा कि कोई ‘मिस इंडिया’ ओबीसी, दलित या आदिवासी नहीं हुई। हालांकि रिसर्च में कोई कमी रह गई होगी क्योंकि कम से कम एक ओबीसी ‘मिस इंडिया’ को तो पूरी दुनिया जानती है, जिनका नाम ऐश्वर्या राय है।

बहरहाल, क्या राहुल गांधी इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं कि कोई ‘मिस इंडिया’, कोई शीर्ष एंकर या खेल और फिल्मों में शीर्ष लोग ओबीसी, दलित या आदिवासी समुदाय के नहीं हैं? ‘मिस इंडिया’ कंपीटिशन आजादी के तुरंत बाद पांचवी सदी से शुरू हो गया था, जब पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे। सवाल है कि उनके दिमाग में यह बात क्यों नहीं आई कि ऐसी समाज व्यवस्था बनाई जाए, जिसमें दलित, ओबीसी या आदिवासी समुदाय के लोग ‘मिस इंडिया’ बन सकें? वे चाहते तो इस प्रतिस्पर्धा में आरक्षण की व्यवस्था भी कर सकते थे। लेकिन उन्होंने नहीं किया और बाद में लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिंह राव और मनमोहन सिंह को भी नहीं सूझा कि ऐसी कोई व्यवस्था की जाए। आश्चर्य जो राहुल गांधी को भी 2004 से 2014 के बीच यह नहीं सूझा। वे कांग्रेस के सभी नेताओं के बेटे, बेटियों को केंद्र में मंत्री बनवाने में लगे थे। लेकिन ‘मिस इंडिया’ प्रतिस्पर्धा में या इंडियन क्रिकेट टीम में या ओलंपिक टीम में या चैनलों में एंकर्स की बहाली में आरक्षण लागू नहीं करवा पाए! उस समय सोनिया गांधी ने भारत सरकार से बड़ी एक संविधानेत्तर व्यवस्था बनाई थी, जिसका नाम था राष्ट्रीय सलाहकार परिषद यानी एनएसी थी। इसमें अलग अलग समय में 19 लोग जुड़े। इनमें से रामदयाल मुंडा, नरेंद्र जाधव और आशीष मोंडल को छोड़ कर बाकी 14 लोग- सोनिया गांधी, मिहिर सेन, प्रमोद टंडन, दिलीप जोशी, एनसी सक्सेना, अनु आगा, एके शिव कुमार, मिराई चटर्जी, अरुणा रॉय, एमएस स्वामीनाथन, हर्ष मंदर, माधव गाडगिल और जयप्रकाश नारायण अगड़ी जातियों के थे और फराह नकवी मुस्लिम व ज्यां द्रेज ईसाई थे।

राहुल गांधी 2009 में दूसरी बार सांसद बने थे और तब 2011 की जनगणना हुई थी। उसमें वे चाहते तो जातियों की गिनती करा सकते थे और ‘जितनी आबादी, उतना हक’ का सिद्धांत लागू करा सकते थे। आखिर उस समय उनकी इतनी हैसियत थी कि उन्होंने सजायाफ्ता लोगों को चुनाव लड़ने की इजाजत देने वाले मनमोहन सरकार के अध्यादेश को फाड़ कर फेंक देने की बात कही तो सरकार ने अध्यादेश वापस ले लिया था। इतनी ताकत होने के बावजूद वे ढेर सारे ओबीसी, दलित और आदिवासी सचिव नहीं बनवा सके। खेल, फिल्म और मीडिया में आरक्षण नहीं लागू करा सके। कारोबार में भी आरक्षण की व्यवस्था नहीं करा सके और न संपत्ति का जाति के अनुपात में बंटवारा करा सके।

राहुल गांधी ने प्रयागराज में संविधान सम्मान सम्मेलन में यह भी कहा कि अगर मोची तैयार करने हैं तो देश के मोचियों को बोल दें या नाई तैयार करने हैं तो देश के नाइयों को बोल दें वे लाखों मोची और नाई तैयार कर देंगे। सवाल है कि अभी मोची और नाई कैसे तैयार होते हैं? अब भी तो ऐसे ही तैयार होते हैं। अभी कौन सा संस्थान खुला है, जहां बढ़ई, नाई और मोची तैयार किए जाते हैं? अभी भी इस तरह के कौशल के काम लोग दुकानों पर काम करके ही सीखते हैं। लेकिन लगता है कि ऑक्सफोर्ड और हार्वर्ड से पढ़ कर आए राहुल गांधी के सलाहकारों को इस बारे में पता नहीं है। वैसे राहुल और प्रियंका के सलाहकारों में इकलौते ओबीसी कौशल विद्यार्थी हैं, जो ऑक्सफोर्ड से पढ़ कर आए हैं। यानी उनको पिछड़ा सलाहकार चाहिए तो वह भी कम से कम ऑक्सफोर्ड से पढ़ा हो। बाकी निजी सलाहकार कनिष्क सिंह, सचिन राव, अलंकार सवाई, संदीप सिंह आदि अगड़ी जातियों के ही हैं।

सोचें, 20 साल तक सक्रिय राजनीति में रहने और कांग्रेस जैसी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने के बावजूद राहुल गांधी इस तरह की बातें करते रहेंगे तो क्या उम्मीद जगाएंगे? वे 2019 के चुनाव में ‘चौकीदार चोर है’ से आसक्त थे तो अब उनको जातियों की आसक्ति घेरे हुए है। उनको लग रहा है कि यह आसक्ति उनको देश का प्रधानमंत्री बनवा देगी। उनको यह भी लग रहा है कि मल्लिकार्जुन खड़गे के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से कांग्रेस और वे दलित मामलों के चैंपियन हो गए, जबकि उससे पहले 24 साल सोनिया और राहुल ही कांग्रेस अध्यक्ष रहे थे। बहरहाल, राहुल की कथनी और करनी में बड़े फर्क के बावजूद उनको इस बार लोकसभा चुनाव में वोट मिले और कांग्रेस 99 सीटों पर पहुंच गई। इससे यह भी अंदाजा लग रहा है कि लोग नरेंद्र मोदी से कितने निराश हो गए हैं कि उनको राहुल गांधी भी अच्छे लगने लगे हैं!

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