हाल इतना बदहाल है!

देश में लगभग 42 फीसदी आबादी इस हाल में नहीं है कि वह तीनों वक्त भोजन कर सके। इन लोगों को सुबह के नाश्ते या दोपहर और रात के भोजन में से किसी एक को छोड़ पड़ रहा है।

कुछ समय पहले घरेलू उपभोग खर्च सर्वेक्षण की रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। यह सर्वे भारत सरकार की तरफ से कराया जाता है, इसलिए इससे सामने आए आंकड़ों को कम-से-कम आधिकारिक रूप से चुनौती नहीं दी जा सकती। आम चुनाव के प्रचार के समय उस सर्वे के कुछ सुविधाजनक आंकड़ों को खुद भारत सरकार ने प्रचारित किया था। लेकिन उसी रिपोर्ट में कई ऐसे सच भी मौजूद हैं, जिन पर बाद में ध्यान गया। अब एक अंग्रेजी अखबार ने कुछ आंकड़ों का विश्लेषण किया है। उसके निष्कर्ष ना सिर्फ सरकार को असहज करने वाले हैं, बल्कि एक राष्ट्र के तौर पर पूरे भारत के लिए शर्मनाक हैं। इनके मुताबिक देश में लगभग 42 फीसदी आबादी इस हाल में नहीं है कि वह तीनों वक्त भोजन कर सके। इन लोगों को सुबह के नाश्ते या दोपहर और रात के भोजन में से किसी एक को छोड़ना पड़ता है। विश्लेषण से सामने आया कि 2011-12 से 2022-23 के बीच इस सूरत में मामूली सुधार ही हुआ है।

जो सुधार हुआ है, वह भी मुख्य रूप से आबादी के (आय के हिसाब से) ऊपरी 50 प्रतिशत हिस्से के बीच हुआ है। थाली दूर होने की बड़ी वजह खाद्य पदार्थों की महंगाई है, जिसकी दर लगातार लगभग नौ प्रतिशत के करीब बनी हुई है। हर महीने अनाज और खाने-पीने की अन्य चीजें नौ से फीसदी से ज्यादा महंगी हो रही हों, तो जिन लोगों की आमदनी नहीं बढ़ रही है, उनके सामने भोजन में कटौती के अलावा क्या रास्ता बच जाता है? दरअसल, आम जन की बढ़ी मुश्किलें अब बहुआयामी रूप ले चुकी हैं। हकीकत यह है कि सरकार की प्राथमिकता में आम जन के हित तथा सामाजिक एवं मानव विकास के घटे महत्त्व के कारण भारत की बुनियाद कमजोर होती जा रही है। यूनिसेफ के हवाले से आई यह खबर कम परेशान करने वाली नहीं है कि दुनिया में जिन देशों में बच्चों के टीकाकरण की सबसे बुरी स्थिति है, उनमें भारत नाईजीरिया के बाद दूसरे नंबर पर आया है। भूखे और असुरक्षित सेहत वाले नौनिहालों के सहारे आखिर हम भारत के कैसे भविष्य की कल्पना कर सकते हैं?

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