सिकुड़ता हुआ मध्य वर्ग

यह टिप्पणी भारतीय अर्थव्यवस्था की हकीकत बताती है। इससे भाजपा सरकार का “विकसित भारत” का नैरेटिव पंक्चर होता है। नेश्ले प्रमुख ने कहा कि भारत में मध्य वर्ग सिकुड़ रहा है, मगर साथ ही महंगी चीजों की मांग बढ़ रही है।

बहुराष्ट्रीय कंपनी नेश्ले की भारतीय इकाई के प्रमुख ने जो कहा, वह विस्फोटक है और उस पर सत्ता पक्ष समर्थकों की तीखी प्रतिक्रिया अपेक्षित ही थी। सुरेश नारायणन की ये टिप्पणी भारतीय अर्थव्यवस्था की हकीकत बताती है। इससे भाजपा सरकार का “विकसित भारत” का नैरेटिव पंक्चर होता है। नारायणन ने कहा है कि भारत में मध्य वर्ग सिकुड़ रहा है, मगर साथ ही महंगी चीजों की मांग बढ़ रही है। यह उपभोक्ता सामग्री क्षेत्र की एक बहुत बड़ी कंपनी की तरफ से इस बात की पुष्टि है कि भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार के-शेप में तब्दील हो रही है।

यानी वैसी अर्थव्यवस्था, जिसमें मुट्ठी भर अति धनी लोग और धनी हो रहे हों, जबकि मध्य वर्ग का बड़ा हिस्सा वापस गरीबी रेखा के नीचे जा रहा हो। नारायणन ने कहा- ‘पहले एक मध्य समूह होता था- मध्य वर्ग- जिसके दायरे में हम जैसी ज्यादातर उपभोक्ता सामग्री कंपनियां कारोबार करती थीं।’ नारायणन की चिंता यह है कि नेश्ले जैसी कंपनियों की बिक्री नहीं बढ़ रही। लेकिन उनका वक्तव्य चर्चित होते ही सोशल मीडिया पर उन पर हमले तेज हो गए। नेश्ले के उत्पादों की गुणवत्ता पर सवाल उठाए जाने लगे। मगर ये कहानी सिर्फ नेश्ले की नहीं है।

अभी हाल में ही हिंदुस्तान लीवर और टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स जैसी कंपनियों ने आगाह किया है कि शहरी इलाकों में मांग गिर रही है। इन कंपनियों की सालाना बिक्री तो फिर भी दो से तीन फीसदी बढ़ी है, मगर रिलायंस रिटेल ने अपनी हालिया रिपोर्ट में बिक्री में 3.5 प्रतिशत गिरावट आने की बात कही है। कंपनी ने कहा कि ऐसा फैशन एवं लाइफस्टाइल उत्पादों की घटी मांग के कारण हुआ है। कुछ पहले एक मीडिया रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि इस दिवाली से सीजन में सोने की रिटेल बिक्री गिर गई है, जबकि थोक बिक्री बढ़ी है। रिटेल बिक्री इसलिए गिरी है, क्योंकि रिकॉर्ड महंगाई के कारण यह धातु आम मध्य वर्गीय परिवारों की पहुंच से बाहर हो गई है। जाहिर है, ये कहानी किसी एक कंपनी विशेष की नहीं है। यह बाजार का एक आम ट्रेंड है, जो ट्रोलिंग अभियानों से पलटने वाला नहीं है।

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