भारतवासियों को एक सूत्र में बांधने वाला राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा

वैसे तो ध्वज का प्रचलन व इतिहास अत्यंत प्राचीन रहा है, और वेद, पुराण, रामायण, महाभारत आदि भारतीय प्राचीन ग्रंथों में भी ध्वज का कई रूपों में वर्णन है। लेकिन परतंत्रता काल में विशेषकर अंग्रेजी गुलामी से मुक्ति के लिए संग्राम के काल में स्वाधीनता सेनानियों को स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के प्रतीक स्वरूप एक ध्वज की आवश्यकता महसूस होने पर विभिन्न व्यक्तित्वों के द्वारा कई चरणों में विविध प्रकार के किए गए प्रयासों से अंग्रेजों के विरुद्ध पूर्ण स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष का प्रतिनिधित्व करने वाला स्वराज ध्वज विकसित किया जा सका। ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष के दौरान देश को पृथक पहचान के लिए राष्ट्रीय ध्वज के आविष्कार और खोज अभियान की शुरुआत हुई।

अपनी पहली शुरुआत से ही भारत का यह स्वराज ध्वज विभिन्न अद्भुत बदलाव से गुजरा और राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के नाम व रूप में स्वीकृत व अंगीकृत हुआ। आंग्ल शासन काल में भारत के उत्तर से दक्षिण व पूर्व से पश्चिम में प्रशस्त विभिन्न राज्यों अर्थात रियासतों का प्रतिनिधित्व करने वाले सहस्त्रों ही ध्वज प्रचलन में थे। हर रियासत का अपना अलग झंडा होता था, जिसका आकार, प्रकार और रंग अलग होता था, जो अपने राज्यों के समारोहों, युद्ध अथवा राज्य का प्रतिनिधित्व करने के अवसरों पर फहराए जाते थे। 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में भारतीय सेनानियों के पराक्रम, साहस और वीरता को देखकर ब्रिटिश शासक अपने स्वयं के झंडे लेकर आए। और वे उसका उपयोग विभिन्न कार्यक्रमों में करने लगे। सितारा नाम से पुकारा जाने वाला अंग्रेजों का यह ध्वज पश्चिम का प्रतिनिधित्व करता था और उस पर ब्रिटिश ध्वज, मुकुट, आदि छपे हुए थे। विभिन्न प्रयोजनों के लिए और विभिन्न रियासतों के लिए भी झंडे थे।

लेकिन आंग्ल शासन के तलेसभी झंडे पूरी तरह से ब्रिटिश प्रभाव में रंग चुके थे, जो किसी न किसी तरह से अंग्रेजी सत्ता का प्रतिनिधित्व करते हुए परिलक्षित होते थे। ब्रिटिश शासकों ने भी कई रियासतों में अपने झंडे गाड़ दिए थे। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को गति देने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों और राजनीतिक हस्तियों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक एकल ध्वज की आवश्यकता महसूस की। राष्ट्रवादी भावना को प्रबलता प्रदान करने और त्वरित गति देने के लिएबाल गंगाधर तिलक, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जैसे भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं ने भी भारत के सांप्रदायिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतिनिधित्व करने वाले एक ध्वज के बारे में विचार करना शुरू कर दिया। स्वतंत्रता सेनानियों की इस आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए 1904 ईस्वी में स्वामी विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता के द्वारा पहली बार एक ध्वज बनाया गया। रक्त और पीत रंग से निर्मित यह ध्वज द्विरंगी था। पहली बार तीन रंग वाला झंडा अर्थात तिरंगा ध्वज सन 1906 ईस्वी में बंगाल विभाजन के विरोध में निकाले गए जुलूस में शचीन्द्र कुमार बोस लेकर लाए। इस ध्वज में सबसे उपर केसरिया रंग, मध्य में पीला और सबसे नीचे हरे रंग का उपयोग किया गया था।

केसरिया रंग पर आठ अधखिले कमल के फूल सफ़ेद रंग में थे। नीचे हरे रंग पर एक सूर्य और चंद्रमा बना था। बीच में पीले रंग पर हिन्दी में वंदे मातरम् लिखा था। अंग्रेजों के विरुद्ध स्वदेशी आंदोलन का प्रतिनिधित्व करने के लिए कई समुदायों के धार्मिक प्रतीकों के साथ इस वंदे मातरम ध्वज को अपनाया गया था।सन 1908 में सर भीकाजी कामा ने भी जर्मनी में एक तिरंगा झंडा लहराया, जिसमें सबसे ऊपर हरा रंग था, मध्य में केसरिया, सबसे नीचे लाल रंग था। इस झंडे में धार्मिक एकता को प्रदर्शित करने के लिए हरा रंग इस्लाम, केसरिया रंग हिन्दू और सफ़ेद रंग ईसाई व बौद्ध दोनों धर्मों के प्रतीकस्वरूप प्रयुक्त किया गया था। भीकाजी कामा, वीर दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा के संयुक्त प्रयास से निर्मित इस ध्वज में भी देवनागरी में वंदे मातरम् लिखा था, और सबसे ऊपर आठ कमल बने थे। प्रथम विश्व युद्ध के समय बर्लिन कमेटी में भारतीय क्रांतिकारियों के द्वारा इसे अपनाए जाने के कारण इस ध्वज को बर्लिन कमेटी ध्वज के नाम से जाना गया।

सन 1916 में पिंगली वेंकैया ने सभी भारतवासियों को एक सूत्र में बांध सकने योग्य ध्वज की परिकल्पना पर कार्य प्रारंभ किया। उनकी इस पहल को एसबी बोमान और उमर सोमानी का साथ मिला। इन तीनों ने मिल कर नेशनल फ़्लैग मिशनका गठन किया। अप्रैल 1921 में मोहनदास करमचंद गांधी की इच्छा पर बीच में चरखा के साथ एक राष्ट्रीय ध्वज तैयार कर पिंगली वेंकैया ने उनके समक्ष प्रस्तुत किया। कई चरणों में कार्य करने के बाद अंततः वेंकैया ने अपनी कार्ययोजना प्रस्तुत कर राष्ट्रीय ध्वज के लिए मोहनदास करमचंद गांधी से अंतिम सलाह ली और उनकी सलाह पर मध्य में 24 तीलियों वाली अशोक चक्र सहित तिरंगा का निर्माण किया। पिंगली वेंकैया के द्वारा इसे तीन रंगों, अशोक चक्र और खादी की मदद से डिज़ाइन किया गया था।

इसलिए यह राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के मूल अभिकल्पनाकर्ता पिंगली वेंकैया ध्वज के नाम से लोगों के बीच प्रसिद्ध हुआ। भारत विभाजन के करीब एक महीने पूर्व 22 जुलाई 1947 को पिंगलि वेंकया द्वारा अभिकल्पित इस ध्वज को ही भारत के संविधान द्वारा अंगीकृत की गई। इसलिए प्रतिवर्ष 22 जुलाई को राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान में राष्ट्रीय झण्डा अंगीकरण दिवस मनाया जाता है। और जाति, पंथ और धर्म के मतभेदों के बावजूद राष्ट्रीय एकता को कायम रखने के लिए संकल्प लिए जाते हैं। हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर लाल क़िले की प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वज को बड़े ही आदर और सम्मान के साथ फहराया जाता है। राष्ट्रगान के साथ ध्वजारोहण और गायन के अलावा, एकता, अखंडता और सांप्रदायिक सद्भाव के विषय पर आधारित कई कार्यक्रम पूरे देश में आयोजित किए जाते हैं।

उल्लेखनीय है कि पिंगली वेंकैया द्वारा निर्मित स्वराज ध्वज का पहली बार प्रयोग 13 अप्रैल 1923 को जलियांवाला बाग हत्याकांड की याद में आयोजित एक कार्यक्रम में किया गया था। कालांतर में यह स्वराज ध्वज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रतिनिधित्व करने वाला एक प्रतीक बन गया। छोटे-बड़े अन्यान्य कार्यक्रमों व समारोहों में भी इसका प्रयोग गाहे-बगाहे होता रहा। फिर 26 जनवरी 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में तिरंगे झंडे को फहराया गया था। इस अधिवेशन में सर्वसम्मति से यहमहत्त्वपूर्ण निर्णय भी लिया गया कि प्रतिवर्ष 26 जनवरी को पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाते हुए सभी स्वतंत्रता सेनानी पूर्ण स्वराज का प्रचार करेंगे। इस तरह 26 जनवरी अघोषित रूप से भारत का स्वतंत्रता दिवस बन गया था।

उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक स्वराज ध्वज फहराकर 26 जनवरी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। यह क्रम भारत विभाजन के बाद 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिलने के बाद ही टूटा। इस दरम्यान भारत विभाजन के पूर्व से ही चल रही संविधान सभा की बैठकों का दौर चलता रहा। भारतीय संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर 1946 को हुई, जिसमें भारतीय नेताओं और अंग्रेज़ कैबिनेट मिशन ने भाग लिया। संविधान सभा की अध्यक्षता डॉ. भीमराव अम्बेडकर कर रहे थे। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की विशेषताओं पर निर्णय लेने के लिए 23 जून 1947 कोसंविधान सभा द्वारा एक तदर्थ समिति का गठन किया गया था। इस समिति के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे और इसमें सरोजिनी नायडू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे शीर्ष नेता शामिल थे।

इसलिए 14 जुलाई 1947 को समिति ने एक प्रस्ताव रखा कि स्वराज ध्वज को थोड़े संशोधनों के साथ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया है। इसलिए जवाहरलाल नेहरू द्वारा 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा को तिरंगा प्रस्तावित किया गया और उसी दिन इसे अपनाया गया। जबकि भारत को एक संविधान देने के विषय में कई चर्चाएं, सिफारिशें, वाद-विवाद और कई बार संशोधन करने के पश्चात भारतीय संविधान को अंतिम रूप देने के बाद 26 नवम्बर 1949 को आधिकारिक रूप से अपनाया गया। 25 नवम्बर 1949 को 211 विद्वानों द्वारा दो महीने और 11 दिन में तैयार किए गए देश के संविधान को मंजूरी मिली। 24 जनवरी 1950 को सभी सांसदों और विधायकों के द्वारा इस पर हस्ताक्षर किए जाने के दो दिन बाद अर्थात 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू कर दिया गया। इस अवसर पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली और इर्विन स्‍टेडियम में भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज तिरंगा को फहराकर भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्‍म की घो‍षणा की थी।

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