चुनाव में एनडीए और ‘इंडिया’ का फर्क

एनडीए और ‘इंडिया’: विधानसभा चुनाव लड़ रही दोनों मुख्य पार्टियों या गठबंधनों के उठाए मुद्दों पर चर्चा थोड़ा जोखिम का काम है क्योंकि इन दिनों चुनाव आमतौर पर मुद्दों पर नहीं लड़े जा रहे हैं।

मुद्दों से ज्यादा मुफ्त की रेवड़ियां चुनाव लड़ने का प्रभावी हथियार बन गई हैं। महान कवि सुदामा पांडेय धूमिल के शब्दों में कहें तो, ‘यह समाज और जनतंत्र छोटे छोटे लालच और लानत का शिकार हो गया है।

तुम्हें पड़ोसी देश की कमतरी के किस्से संतोष देने लगे हैं। जबकि तुम चुनाव के इश्तहार से निकल कर सड़क पर आ चुके हो। प्रश्न यह है कि भूख तुम्हें पालतू बनाती है या अधिकार के लिए लड़ने को प्रेरित करती है’?

कहने की जरुरत नहीं है कि भूख ने भारत के करोड़ों लोगों को पालतू बना दिया है। अधिकारों के लिए लड़ने की चेतना अगर थोड़ी बहुत थी भी तो वह समाप्त हो चुकी है।

तभी हमने कहा कि मुद्दों की बात करना जोखिम भरा है। फिर भी महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में कुछ मुद्दे हैं और उनका फर्क दोनों पार्टियों और दोनों गठबंधनों की राजनीतिक सोच और संभावनाओं की ओर इशारा करती है।

भाजपा एक रणनीति पर चुनाव नहीं लड़ रहा
भारतीय जनता पार्टी और उसका गठबंधन किसी एक मुद्दे या एक रणनीति पर चुनाव नहीं लड़ रहा है। वहां कई मुद्दे हैं, कई रणनीतियां हैं और कई चतुराइयां या तिकड़म हैं।

भाजपा ने नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी और समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी तीनों का किसी न किसी तरीके से चुनाव में इस्तेमाल किया है। इसके अलावा धर्मांतरण विरोधी सख्त कानून बनाने का वादा किया है तो अनुच्छेद 370 को किसी स्थिति में बहाल नहीं होने देने का संकल्प जताया है।

भाजपा ने यह वादा भी किया है कि किसी हाल में अल्पसंख्यकों को आरक्षण नहीं मिलने देंगे। इसके अलावा घुसपैठ और ‘लैंड जिहाद’ व ‘लव जिहाद’ का मुद्दा है।

‘बटेंगे तो कटेंगे’ का नारा भी है, जिसके पीछे सांप्रदायिक ही सही लेकिन एक स्पष्ट वैचारिक दृष्टि है। इस बात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूसरे शब्दों में कहा है कि ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’।

इसके मुकाबले कांग्रेस और उसके गठबंधन सहयोगियों की ओर से जो बड़ा मुद्दा है वह जाति गणना कराने और आरक्षण बढ़ाने का है। संविधान की रक्षा की बात भी हर जगह राहुल गांधी कर रहे हैं लेकिन पता नहीं उनको यह बात समझ में आ रही है या नहीं कि राज्यों के चुनाव में यह कोई मुद्दा नहीं है।

इसे कांग्रेस और उसके सहयोगी लोकसभा चुनाव में भुना चुके हैं। उनको समझना चाहिए कि देश की जनता इतनी समझदार है कि वह जानती है कि संविधान बदलने का अधिकार केंद्र की सरकार को है।

तभी केंद्र के चुनाव में यह मुद्दा काम कर गया लेकिन उसके बाद हुए हरियाणा के चुनाव में विफल हो गया। इसलिए झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव में भी संविधान का मुद्दा कोई बड़ा असर नहीं डालने वाला है।

चुनाव में सिर्फ इतने ही मुद्दे हैं
ऐसा नहीं है कि चुनाव में सिर्फ इतने ही मुद्दे हैं। एक दूसरे की सरकारों के शासन-प्रशासन की बातें हैं, एक दूसरे की सफलता-विफलता का जिक्र है, विकास और पिछड़ेपन की बातें हैं, मुफ्त की रेवड़ी वाली घोषणाएं भी हैं और दोनों राज्यों का जातीय समीकरण है।

लेकिन अगर वैचारिक मुद्दों की बात करें तो कुल मिला कर कांग्रेस या विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के पास जातिगत जनगणना और आरक्षण बढ़ाने का मुद्दा है तो दूसरी ओर भाजपा और उसके गठबंधन एनडीए के पास सीएए, एनआरसी, यूसीसी, धर्मांतरण विरोधी कानून, अनुच्छेद 370, अल्पसंख्यक आरक्षण का विरोध और ‘बंटेंगे तो कटेंगे’, बांग्लादेशी घुसपैठिए आदि का मुद्दा है।

यानी एक गठबंधन के लिए जाति अहम है तो दूसरे के लिए धर्म से जुड़े मुद्दे महत्वपूर्ण हैं। दोनों गठबंधन किसी न किसी रूप में इनका इस्तेमाल कर रहे हैं।

ने धर्म के व्यापक मुद्दे को केंद्रीय एजेंडा बनाया है लेकिन साथ में जाति को भी छोड़ा नहीं है। वह दोनों राज्यों में बहुत बारीकी से जाति का कार्ड चल रही है। कह सकते हैं कि जाति का उसका दांव सूक्ष्म है और कांग्रेस का स्थूल है।

उत्तर प्रदेश में जातीय गणना और आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा का धार्मिक एकजुटता पर जोर
उसने कांग्रेस या विपक्षी गठबंधन के जातीय गणना और आरक्षण बढ़ाने के मुद्दे को काउंटर करने के लिए धार्मिक आधार पर एकजुटता की जरुरत को ज्यादा उजागर किया है।

असल में उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ जीता तो उसका मुख्य कारण यह था कि राज्य के पिछड़ों और दलितों के बीच यह बात अपील कर गई कि भाजपा चार सौ सीट जीतती है तो वह संविधान बदल कर आरक्षण खत्म कर देगी।

कांग्रेस और सपा ने इसका डर दिखाया था और यह वादा किया था कि उनकी सरकार बनी तो जातीय गणना कराएंगे और आरक्षण की सीमा बढ़ाएंगे। तभी लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा को एक ऐसे नारे या विचार की जरुरत थी, जिससे जातीय विभाजन को कम किया जा सके।

उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों के उपचुनाव भी होने थे, जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बने थे।

तभी वे ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे के साथ सामने आए, जिसका राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने खुल कर समर्थन किया। भाजपा भी इस नारे के साथ है तभी महाराष्ट्र में जब अजित पवार ने इस नारे का विरोध किया तो उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने आगे आकर इसका बचाव किया और कहा कि अजित पवार इस नारे को समझ नहीं पाए हैं।

एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे
चूंकि सीधे प्रधानमंत्री या केंद्रीय गृह मंत्री यह बात नहीं कह सकते हैं इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भय दिखाने वाले एक नकारात्मक नारे को भरोसे दिलाने वाले सकारात्मक नारे में बदल दिया। उन्होंने ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ का नारा दिया। असल में वे भी वहीं बात कह रहे हैं, जो योगी आदित्यनाथ ने कही है।

सो, जातीय गणना कराने के वादे और आरक्षण व संविधान खत्म करने के भय को दूर करने के लिए भाजपा ने धार्मिक मुद्दों को आगे किया।

सीएए, एनआरसी, यूसीसी, धर्मांतरण विरोधी सख्त कानून, घुसपैठ रोकने का वादा, अनुच्छेद 370, अल्पसंख्यक आरक्षण का विरोध आदि कुल मिला कर हिंदुओं को जातियों में बंटने से रोकने का प्रयास हैं।

भाजपा ने झारखंड के लोगों को भरोसा दिलाया है कि समान नागरिकता कानून यानी यूसीसी लागू करेंगे और उसमें से आदिवासी समुदाय को बाहर रखेंगे।

सवाल है कि फिर यह समान कानून कैसे हुए, जब 26 फीसदी आबादी उसके दायरे से बाहर होगी और अपने निजी कानूनों के हिसाब से चलेगी? लेकिन जब यह संदेश देना हो कि एक खास समुदाय को उसके निजी कानूनों की बजाय सरकार के बनाए कानून के हिसाब से चलने के लिए बाध्य कर देंगे तो फिर तर्क के लिए जगह समाप्त हो जाती है।

एक तरफ धर्म का व्यापक दायरा
बहरहाल, एक तरफ धर्म का व्यापक दायरा है, एकजुटता की अपील है, राष्ट्रीय एकता व अखंडता को प्रतीकित करने वाले नारे व बातें हैं तो दूसरी तरफ जातीय व सामाजिक समीकरण है।

विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के वैचारिक मुद्दे भले सीमित दिख रहे हैं लेकिन उसका सामाजिक समीकरण मजबूत जातियों या समुदायों पर टिका है। इसके अलावा दोनों तरफ से लोक लुभावन घोषणाएं जम कर हुई हैं।

अगर महाराष्ट्र में भाजपा और उसके सहयोगियों को ‘लड़की बहिन योजना’ का लाभ मिलता है तो तय मानना चाहिए कि झारखंड में जेएमएम और कांग्रेस को भी ‘मइया सम्मान योजना’ का लाभ मिलेगा।

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