संघर्ष-शहादत कांग्रेस की और वाहवाही गोडसे और सावरकर की

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या से शुरू हुई राजनीतिक हिंसा, देश को झकझोर तो गयी, परंतु हिंदुत्ववादी शक्तियों के लिए हत्यारे नाथुराम गोडसे को भी इतिहास में नाम दे दिया। इतिहास में सदैव ऐसा ही होता आया है। शिशुपाल के वध के लिए श्री कृष्ण का नाम आता हैं। जरासंध और दुर्योधन के वध के लिए भीम को याद किया जाता हैं। शायद यह मानव की रीति हैं। परंतु कभी भी कुमार्गियों के अंत को महिमा मंडित नहीं किया गया, जैसा कि इस समय हो रहा हैं। अविभाजित पंजाब के मुख्यमंत्री रहे प्रताप सिंह कैरो की हत्या 6 फरवरी 1965 को दिल्ली -चंडीगडढ़ राजमार्ग पर सुच्चा सिंह, और बलदेव सिंह तथा नहर सिंह ने की, जिन्हें बाद में अदालत ने फांसी की सज़ा दी। दूसरे राजनीतिक शिकार पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह बने, 31 अगस्त 1995 बने जिनकी चंडीगढ़ सचिवालय में बम विस्फोट में बेअंत सिंह सहित 18 लोगों की मौत हुई थी।

राज्यों से राजनीतिक हिंसा की जो बयार बही उसने 31 अक्तूबर 1984 को देश की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की जान ले ली। उनकी हत्या उनके ही अंगरक्षकों द्वारा की गयी, अब कौन सोच सकता था कि जिनपर प्रधानमंत्री के प्राणों की रक्षा का भर था- वे ही प्राण भक्षक निकले। यह गांधी परिवार का ही त्याग हैं कि इन्दिरा जी के देहावसान के बाद काँग्रेस पार्टी ने राजीव गांधी को देश का प्रधानमंत्री चुना। गौर तलब है की राजीव के अनुज संजय की मौत एक दुर्घटना में हुई थी। यद्यपि राजीव राजनीति में संजय की मौत के बाद आए और अंततः इन्दिरा जी की मृत्यु के बाद सरकार और पार्टी की कमान सम्हाली। फिर आया वह काला दिन 21 मई 1991 का जब वे श्रीपेर्म्बदूर में चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे। उस समय लिट्टे समर्थक गुट ने आत्मघाती हमले में उनकी जान ले ली। बम का विस्फोट इतना भेषण था कि राजीव जी के शव को उनके जूते से पहचाना जा सका।

इतना ही नहीं पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा की पुत्री और दामाद ललित माकन की भी हत्या दिल्ली में हुई। ये कुछ राजनीतिक हत्यायें हैं –जिनके लिए विरोधी राजनीतिक विचारधाराएं ही जिम्मेदार हैं। महात्मा से लेकर राजीव गांधी के हत्यारों को महिमा मंडित करना न केवल उनकी कुर्बानियों को नकारना हैं, वरन राष्ट्र के प्रति भी अपमान भी है। आजकल बयार बही हैं -इन शहीदों को नकारने और गोडसे तथा सावरकर ऐसों के गुणगान की ! भारतेन्दु हरिश्चंद्र का नाटक है -अंधेर नागरी चौपट राजा, कुछ कुछ वैसा ही हो रहा हैं। लोगों को आज़ादी की लड़ाई में हुई कुर्बानियों की जगह हिन्दू – मुस्लिम का पाठ पढ़ ाया जा रहा हैं। यह देश का दुर्भाग्य हैं। शिक्षा -स्वास्थ्य की जगह मूर्ति–और मंदिर ही राज्य का काम हो गया हैं। इन स्थानों पर सरकारी खजाने से लाखों दीप जला कर हम किस की खुशी माना रहे हैं ? जब देश में भूख और बीमारी और अशिक्षा का अभिशाप हैं तब तक मंदिर में बैठे देवता भी हमारा भला नहीं करेंगे।

गीता में कर्मयोग में शासक का कर्तव्य बताते हुए शर शय्या पर लेते भीष्म ने युधिष्ठिर को ज्ञान दिया था कि प्रजा के दुःख का निवारण ही तुम्हारा कर्तव्य होना चाहिए। आज हिन्दू – हिन्दू चिल्लाने वाले केवल मुस्लिम – ईसाई को कोसते हैं, वे समाज में असमानता को दूर करने के बजाय सरकारी संपातियों को उन लोगों को बेच रहे हैं जिनकी हैसियत बंैकों से लिए कर्ज को चुकाने की नहीं हैं। राष्ट्र के सकल उत्पाद का 30% कुल पाँच घरानों के पास पिछले सात सालों में पहुँच गया हैं। अब जनता को सवाल पूछना होगा कि किसान के लाख रुपये का कर्ज की वसूली उसका घरबार कुर्क करके होती हैं। पर योगी से व्यापारी बने को बैंक उदारतापूर्वक अरबों रुपये का उधार सुलभ करता हैं। अदानी समूह की बात ही निराली हैं। उनके लिए हुए कर्ज की कितनी भरपाई हुई है यह सुप्रीम कोर्ट में भी केंद्र सरकार ने नहीं खुलाषा किया। जबकि कर्जदारों को उधारी वसूली का नोटिस सार्वजनिक तौर पर प्रकाशित किया जाता हैं। जिन बैंकों ने अदानी या अनिल अंबानी को कर्ज दिया हैं वे भी अपनी बैलेंस शीट में यह साफ साफ नहीं दिखते हैं की कितने कर्ज की वसूली बाकी है!

बात हो रही थी देश के लिए शहीद हुए तीन गांधीयों की, उनकी कुर्बानियों को आज राजनीतिक रूप से एक विचारधारा नकारने का प्रयास कर रही हैं। राजनीतिक दल चुनाव लड़ते हैं,परंतु सिर्फ चुनावी मशीन बन कर रह जाना और संगठन के नाम पर पंचतारा कार्यालय बनाना शायद आज की राजनीति हो ! परंतु भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीत कर तो कुछ ही सरकार बना पायी है, वरना मध्य प्रदेश, गोवा और उत्तर पूर्व के राज्यों में दल महाराष्ट्र में जिस प्रकार शिव सेना को केंद्र सरकार के शह पर तोड़ा गया वह किसी से छिपा नहीं हैं। सत्ता की यह लिप्सा ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की राजनीतिक पहचान बन गयी हैं। जो देश के संविधान और जन मानस के लिए हानिकारक ही हैं।

दुनिया के हनगर इंडेक्स में भारत का स्थान चिंतनीय है, विदेशी मुद्रा के भंडार में लगातार गिरावट भी शोचनीय है। राज्यों खास कर बीजेपी शासित राज्यों में स्कूलो को बंद करने की लाइन लगी हैं। आसाम, गुजरात, उत्तर प्रदेश में तो बाकायदा इनकी बंदी का ऐलान भी हो गया है। मध्य प्रदेश में भी शायद हो। अब संविधान में समानता का अधिकार तो किताब में लिखी बात ही रह जाएगी। जैसे आज़ादी के शहीदों को हम भूल रहे हैं, वैसे ही संविधान भी बस अब एक किताब बन कर रह गया हैं।

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