सेवा भाव या सत्ता की लालसा?
नेताओं में कमाल का सेवा भाव होता है। वे जनता की, समाज की, देश की सेवा करने को ऐसे आतुर रहते हैं कि जनता भी हैरान परेशान रहती है। नेताओं को हर हाल में सेवा करनी होती है। जनता नहीं चाहे तब भी उनको सेवा करनी होती है। उम्र और सेहत साथ नहीं दे तब भी सेवा करनी होती है। पार्टी टिकट काट दे तो पार्टी बदल कर सेवा करनी होती है। अगर कोई भी पार्टी टिकट नहीं दे तब वे निर्दलीय चुनाव लड़ते हैं ताकि लोगों की और देश की सेवा कर सकें। यह राजनीति का सार्वभौमिक यानी यूनिवर्सल सत्य है। कुछ नेता इसके अपवाद होते हैं लेकिन अपवादों से तो नियम प्रमाणित होता है। सो, नियम यह है कि हर हाल में सेवा करनी है। देश का विकास करना है।
देश को महान बनाना है। देश का गौरव वापस लौटाना है। यह सेवा भाव सचमुच अद्भुत है। नरेंद्र मोदी से लेकर नीतीश कुमार और जो बाइडेन से लेकर डोनाल्ड ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन से बेंजामिन नेतन्याहू तक में यह सेवा भाव कूट कूट कर भरा है। सबको अपने देश की या राज्य की सेवा करनी है। सबको लगता है कि अगर वह नहीं रहा तो देश का क्या होगा? नागरिकों को कौन बचाएगा? कौन उनको रोजी रोटी देगा? सबने भगवान कृष्ण की तरह अपनी कानी उंगली पर गोवर्धन उठा रखा है। सब टिटहरी की तरह उलटे लटके हैं और सबको लग रहा है कि उन्होंने आसमान को थाम रखा है, अगर हटे तो आसमान गिर पड़ेगा।
असल में यह सेवा भाव नहीं है, बल्कि सत्ता की लालसा है, जो छूटती नहीं है। बहुत कम नेता ऐसे हुए, जिन्होंने सत्ता की लालसा त्याग दी। जिन्होंने कबीर की तरह ज्यों की त्यों चदरिया धर दी। ज्यादातर ने चादर ऐसे ओढ़े रखी कि वे तो छोड़ना चाह रहे हैं लेकिन चादर उन्हें नहीं छोड़ रहा है। यह धूर्तता और हिप्पोक्रेसी आज के समय में राजनीति की पहचान बन गई है। अभी अमेरिका में आम चुनाव होने वाले हैं। पिछली बार चुनाव हारने और पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल खड़े करने वाले डोनाल्ड ट्रम्प फिर से चुनाव लड़ने पहुंच गए हैं। क्योंकि उनको अमेरिका की सेवा करनी है और अमेरिका को फिर से महान बनाना है। उनको लग रहा है कि अगर उन्होंने नहीं किया तो अपनी महानता खो चुका अमेरिका फिर से महान नहीं हो पाएगा।
इसलिए 78 साल की उम्र में वे चुनाव लड़ने उतर गए हैं। उनके ऊपर जानलेवा हमला हुआ है लेकिन गोली खाने के बावजूद उनको देश की सेवा करनी है। इसी तरह पिछली बार अमेरिकी नागरिकों की समस्त संचित पुण्यता के दम पर जैसे तैसे चुनाव जीते जो बाइडेन 81 साल के हो गए हैं लेकिन उनको भी अभी अमेरिका की सेवा करनी है। उनकी सेहत खराब है। वे भूलने लगे हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर वे उलजुलूल हरकतें कर रहे हैं। लेकिन उनको भी लग रहा है कि उनके सिवा ट्रम्प को कोई हरा नहीं सकता है। उनकी पार्टी के 50 फीसदी से ज्यादा लोग चाहते हैं कि वे राष्ट्रपति की उम्मीदवारी छोड़ दें। उनका खुल कर समर्थन करने वाली अमेरिका की हॉलीवुड के अनेक कलाकार उनसे अपील कर रहे हैं लेकिन वे कह रहे हैं कि भगवान आकर कहें तभी वे चुनाव मैदान से हटेंगे।
उधर रूस में व्लादिमीर पुतिन अपने देश का महान गौरव वापस लौटा लाने के लिए राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे हैं। वे पिछले 20 साल से ज्यादा समय से देश की सत्ता पर काबिज हैं। वे पहले राष्ट्रपति बने। जब अधिकतम दो बार राष्ट्रपति रहने की सीमा पूरी हो गई तो वे प्रधानमंत्री बन गए और अपने करीबी मेदवेदेव को राष्ट्रपति बना दिया। एक बार प्रधानमंत्री बनने के बाद वे फिर से राष्ट्रपति बन गए। इस बार उनको लगा कि रूस की जनता की सेवा करने और रूस की महानता बहाल करने के लिए अनंतकाल तक राष्ट्रपति बने रहना होगा इसलिए उन्होंने संविधान बदल कर दो बार ही राष्ट्रपति रहने के प्रावधान को ही खत्म कर दिया। अब रूस के लोग अनंतकाल तक उनकी सेवा का लाभ ले सकते हैं। उन्होंने रूस को महान बनाने के लिए यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है, जिसमें दोनों तरफ से हजारों लोगों की जान जा चुकी है और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं लेकिन अभी तक रूस की महानता बहाल नहीं हुई है। हां, यह जरूर हुआ है कि रूस को महान बनाते बनाते पुतिन लाखों करोड़ रुपए की संपत्ति के स्वामी हो गए हैं।
इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू जनता और देश की सेवा करने की नेताओं की भावना के प्रतिनिधि व्यक्ति हैं। इजराइल की जनता उनको बार बार चुनाव हरा रही है लेकिन हर हार के बाद वे किसी न किसी गठजोड़ से प्रधानमंत्री बन जा रहे हैं। क्योंकि उनको पता है कि उनके अलावा दूसरा कोई न तो इजराइल के करीब एक करोड़ नागरिकों की सेवा कर सकता है और न उसकी महानता बचाए रख सकता है। इजराइल की महानता की स्थिति यह है कि उसकी खुफिया एजेंसी मोसाद की पोल खुल चुकी है। हमास ने उसके ऊपर इतना बड़ा हमला किया और उसे कुछ पता नहीं चला। न तो खुफिया एजेंसी हमले का पता लगा सकी और न आइरन डोम हमले को रोक सका। हमला होने के 10 महीने बाद भी इजराइल से अगवा हुए दो सौ नागरिकों का पता मोसाद को नहीं लगा है। लेकिन इतिहास की सबसे बर्बर लड़ाइयों में से एक लड़ाई जारी है। गाजा और राफा में हजारों बेगुनाग लोग मारे जा चुके हैं और इजराइल की महानता पर ऐसा कलंक लगा है, जिसे वक्त भी नहीं मिटा सकता है।
दुनिया के सबसे उदार, सहिष्णु और लोकतंत्र का सम्मान करने वाले फ्रांस में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का राजनीतिक प्रयोग विफल हो गया है। उन्होंने यूरोपीय संसद के चुनाव में दक्षिणपंथी ताकतों की जीत के बाद एक जुआ खेला था और समय से पहले फ्रांस के संसदीय चुनाव की घोषणा कर दी थी। इन चुनावों में उनका गठबंधन बुरी तरह से हारा। पहले चरण के मतदान म पिछडने के बाद धुर वामपंथी पार्टियों के साथ गठबंधन करने के बावजूद उनकी पार्टी दूसरे स्थान पर रही। लेकिन उन्होंने चुनाव के बीच में ही ऐलान कर दिया था अगर उनकी पार्टी और गठबंधन चुनाव हारते हैं तब भी वे राष्ट्रपति पद से इस्तीफा नहीं देंगे। क्योंकि उनको फ्रांस की सेवा करनी है और उसे धुर दक्षिणपंथी मरिन ल पेन से बचाना है। अगर वे नहीं रहेंगे तो फ्रांस नहीं बचेगा, इस सोच में उन्होंने वहां की जनता पर अहसान करते हुए पद से इस्तीफा नहीं दिया। इतना ही नहीं अपने बनाए प्रधानंमत्री का भी इस्तीफा नामंजूर कर दिया। अब दोनों मिल कर फ्रांस को बचाने का काम कर रहे हैं।
बांग्लादेश में शेख हसीना ने तो देश की सेवा करने के लिए समूचे विपक्ष को ही जेल में डाल दिया या देश निकाला दे दिया ताकि वे चुनाव जीतें और देश की सेवा करें। श्रीलंका में जनता ने क्रांति कर दी और राजपक्षे बंधुओं को परिवार के साथ भागना पड़ा फिर भी उनका देश सेवा का जज्बा खत्म नहीं हुआ। वे अब अपने सहयोगी रानिल विक्रमसिंघे के सहारे देश सेवा कर रहे हैं। पाकिस्तान में नवाज शरीफ देश सेवा के लिए लंदन से लौट कर आए लेकिन जब जनता ने मौका नहीं दिया तो प्रतिद्वंद्वी इमरान खान को जेल भेज कर और उनकी पार्टी को चुनाव लड़ने से रोक कर सेना की मदद से दस तरह की तिकड़म करके सरकार बनाई और अपने भाई शहबाज शरीफ को गद्दी पर बैठाया ताकि वे पाकिस्तान की सेवा कर सकें।
भारत का मामला भी अलग नहीं है। यहां तो नेता हमेशा देश सेवा के लिए तत्पर रहते हैं। समूचे विपक्ष को सत्ता का लालची बता कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के प्रधान सेवक के तौर पर पिछले 10 साल से देश की सेवा कर रहे हैं। उन्होंने पार्टी के अनेक नेताओं को 75 साल की उम्र सीमा की वजह से रिटायर करा दिया लेकिन खुद 74 साल की उम्र में अगले पांच साल के लिए जनादेश हासिल किया है। वे भी अनंतकाल तक देश की सेवा करने की भावना रखते हैं क्योंकि उनको पता है कि उनके अलावा दूसरा कोई 140 करोड़ लोगों की सेवा नहीं कर सकता है और न भारत की महानता वापस ला सकता है। वे 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के सपने के साथ देश सेवा में जुटे हैं।
भारत में नेताओं के अंदर नागरिकों की सेवा करने की भावना इतनी प्रबल है कि एक मुख्यमंत्री जेल में रह कर नागरिकों की सेवा कर रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के मामले में 21 मार्च से जेल में हैं लेकिन वे वहीं से दिल्ली की महान जनता की सेवा कर रहे हैं। इसी तरह एक दूसरे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस्तीफा देकर जेल गए और जमानत पर जेल से निकलते ही फिर से मुख्यमंत्री बन गए क्योंकि उनको लगा कि जिन चम्पाई सोरेन को वे मुख्यमंत्री बना कर गए थे वे झारखंड की जनता की सेवा ठीक से नहीं कर पा रहे थे। उधर बिहार में नीतीश कुमार का हाल अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन वाला हो गया है, वे बातें भूलने लगे हैं और सार्वजनिक मंचों पर उलजुलूल हरकतें करते हैं लेकिन उनको बिहार की जनता की सेवा करनी है। क्योंकि उनको लगता है कि बिहार में जो कुछ भी है वह उन्होंने ही किया है और अगर वे नहीं रहेंगे तो बिहार समाप्त हो जाएगा। नेताओं की यह सेवा भावना सनातन है और इसको सलाम करना चाहिए।