किसान असंतोष की जड़ें
कृषि निर्भर परिवारों का आम उपभोग खर्च औसत ग्रमीण उपभोग खर्च से नीचे चला गया है। 2022-23 की इस रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में औसत घरेलू उपभोग खर्च 3,773 रुपये रहा। लेकिन कृषि निर्भर परिवारों का औसत खर्च 3,702 रुपये ही था।
देश के किसान फिर आंदोलन की राह पर हैं। उनकी प्रमुख मांग है फसलों पर स्वामीनाथन फॉर्मूले के मुताबिक एमएसपी की कानूनी गारंटी और संपूर्ण ऋण माफी। इन मांगों को पूरा कराने के लिए कृषक समाज में जान बाजी पर लगा देने की भावना पैदा हुई है। इसकी वजह समझनी हो, तो ताजा जारी घरेलू उपभोग खर्च सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर गौर करना उपयोगी होगा। इस रिपोर्ट से सामने आया है कि कृषि निर्भर परिवारों का आम उपभोग खर्च औसत ग्रमीण उपभोग खर्च से नीचे चला गया है।
2022-23 की इस रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में औसत घरेलू उपभोग खर्च 3,773 रुपये रहा। लेकिन कृषि निर्भर परिवारों का औसत खर्च 3,702 रुपये ही था। इसके पहले हुए हर घरेलू उपभोग खर्च सर्वे में कृषि आधारित परिवारों का औसत व्यय अन्य ग्रामीण परिवारों से अधिक रहा था। कृषि आधारित परिवारों में वे दिहाड़ी मजदूर और अन्य खेतिहर मजदूर भी शामिल हैं, जिनकी आमदनी का कोई अन्य स्रोत नहीं है। इस नई सूरत की वजह क्या है, यह जानना महत्त्वपूर्ण होगा।
फिलहाल चूंकि इस संबंध में ठोस सूचनाएं उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए इसके बारे में अनुमान ही लगाए जा सकते हैं। संभव है कि इसका एक कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था में दूसरे कारोबारों का बढ़ना हो। मसलन, पशुपालन या बागवानी जैसे धंधों में खेती से ज्यादा मुनाफा हो रहा हो। या फिर यह वजह हो सकती है कि कोरोना महामारी के दौरान शहरों से गांव लौटे मजदूरों में से अनेक वहीं रह गए हैं, जिससे श्रमिकों की अधिकता के कारण उनकी मजदूरी घट गई हो।
लेकिन कुल मिलाकर यह तस्वीर तो उभरती ही है कि खेती लगातार गैर-लाभकारी होती जा रही है। इसका बड़ा कारण लागत में लगातार बढ़ोतरी और फसल की कीमत में भारी उतार-चढ़ाव रहे हैं। इस पर भी जरूर गौर किया जाना चाहिए कि कृषि में सार्वजनिक पूंजीगत निवेश स्थिर बना हुआ है, जबकि जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम का अनिश्चय बढ़ गया है। इन कारणों से खेती अधिक जोखिम भारी पेशा बन गई है। ऐसे में किसानों और कृषि निर्भर अन्य तबकों में असंतोष पैदा होना एक स्वाभाविक घटना मानी जाएगी।