प्रादेशिक क्षत्रप कभी रिटायर नहीं होते
भारत की राजनीति में जितने प्रादेशिक क्षत्रप हुए वे कभी रिटायर नहीं हुए और जो अभी हैं वे कभी रिटायर नहीं होंगे और न पार्टी पर से अपनी पकड़ छोड़ेंगे। इसलिए एनसीपी के संस्थापक अध्यक्ष शरद पवार के अध्यक्ष पद से इस्तीफे की घोषणा को लेकर किसी भ्रम में रहने की जरूरत नहीं है। यह पार्टी के ऊपर अपनी पकड़ मजबूत करने का दांव है। पिछले कुछ दिनों से पार्टी और परिवार के अंदर चल रही खींचतान को खत्म करने, अपना कद बढ़ाने और पार्टी के कामकाज पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए पवार ने यह दांव चला है। एक समय शिव सेना में राज ठाकरे के बढ़ते कद को कम करने के लिए बाल ठाकरे ने भी यह दांव चला था।
शरद पवार के अगले राजनीतिक मूव पर बात करने से पहले क्षत्रपों के रिटायर नहीं होने के इतिहास पर एक नजर डालना चाहिए। फारूक अब्दुल्ला की उम्र 86 साल की है और वे पांच महीने पहले ही दिसंबर 2022 में फिर से नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष चुने गए हैं। अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल का निधन 96 साल की उम्र में हुआ है और जब तक पार्टी सत्ता में रही वे मुख्यमंत्री रहे, 2017 तब जब उनकी उम्र 90 साल थी। करुणानिधि का निधन 94 साल की उम्र में हुआ था और आखिरी समय तक पार्टी के सुप्रीम लीडर थे। इसके एकाध अपवाद हो सकते हैं लेकिन लालू प्रसाद और मुलायम सिंह यादव से लेकर शिबू सोरेन तक जब तक प्रादेशिक क्षत्रप पूरी तरह से अशक्त नहीं हो गए तब तक उन्होंने पार्टी की कमान संभाली और सारे फैसले अपने हिसाब से किए।
शरद पवार इसके अपवाद नहीं हो सकते हैं। वे जब तक अपनी पसंद के व्यक्ति को पार्टी की कमान सौंप कर उसे स्थापित नहीं करेंगे तब तक राजनीतिक गतिविधियों से दूर नहीं होंगे। सबने देखा है कि किस तरह से मुलायम सिंह ने भाई शिवपाल की जगह बेटे को स्थापित किया और बाल ठाकरे ने भतीजे राज ठाकरे की जगह बेटे उद्धव ठाकरे को पार्टी की कमान दी। वही काम शरद पवार को भी करना है लेकिन सपा के शिवपाल और शिव सेना के राज ठाकरे के मुकाबले एनसीपी के अजित पवार ज्यादा पावरफुल है। तभी पवार को उनसे निपटने में समय लग रहा है और मुश्किल हो रही है।
पवार के सामने एक मुश्किल यह भी है कि महाराष्ट्र की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों की वजह से भाजपा के लिए अजित पवार की उपयोगिता बन गई है। सो, उनको पार्टी के बाहर से एक मजबूत समर्थन मिल रहा है। एनसीपी के कई नेता भाजपा के साथ जाकर केंद्रीय एजेंसियों से बचने और सत्ता का सुख उठाने के बेकरार हैं, यह भी पवार के रास्ते की एक बाधा है। तभी जब सामान्य राजनीतिक दांव से काम नहीं चला तो उन्होंने इस्तीफे का दांव चला। हो सकता है कि वे इस्तीफा वापस ले लें या संरक्षक और चेयरमैन किस्म का कोई पद उनके लिए बने और उनकी पसंद अध्यक्ष नियुक्त हो लेकिन यह लग रहा है कि ऐसी स्थिति में अजित पवार या कोई भी नेता पार्टी तोड़ने की कोशिश नहीं करेगा। अगर किसी ने ऐसी कोशिश की तो पवार उनकी बेटी के लिए बड़ी सहानुभूति की लहर चलेगी।