राजस्थान में सत्ता संघर्ष तेज – मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान में भी चौंका सकती है भाजपा

जयपुर। राजस्थान भाजपा में सत्ता संघर्ष तेज हो गया है। केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश के बावजूद सीएम पद के दावेदार नेताओं का शक्ति प्रदर्शन जारी है। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से नव निर्वाचित विधायकों की मुलाकात ने केंद्रीय नेतृत्व की चिंता बढ़ा दी है। वह इसलिए कि करीब 10 दिन की रस्साकशी के बाद मंगलवार को विधायक दल की बैठक में नए नेता का चुनाव होना है। माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान में भी मुख्यमंत्री को लेकर भाजपा चौंका सकती है। यानि कि जितने भी नाम मुख्यमंत्री पद को लेकर चर्चा में है, उनमें कोई भी मुख्यमंत्री ना बने औऱ किसी नए चेहरे को ही कमान सौंप दी जाए। जातीय संतुलन के हिसाब से दो उप मुख्यमंत्री बनना भी तय माना जा रहा है।

इस बीच, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के ऑफिसियल निवास पर भाजपा विधायकों और नेताओं के जमघट को लेकर आलाकमान के कड़े रुख अपनाने के बाद राजस्थान में सत्ता बनाने के लिए पर्यवेक्षकों के आने से पहले ही एक नए विवाद ने जन्म ले लिया है। राजे के पक्ष में समर्थक खुलकर बयान देने लगे हैं। इस कड़ी में भरतपुर से भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष जितेंद्र सिंह फौजदार ने कहा कि वसुंधरा राजे को ही मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए। अगर वे नहीं बनती हैं तो बहादुर सिंह कोली को मुख्यमंत्री बना दिया जाना चाहिए।

कुछ भाजपा नेताओं का कहना है कि आलाकमान ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधराराजे को फोन कर अपनी नाराजगी प्रकट कर दी है और उन्हें इस प्रकार की गतिविधियां ना करने के लिए कड़ी हिदायत दे डाली है। उन्हें अवगत कराया गया है कि विधायकों के जमघट को पार्टी अनुशासन के विपरीत मानती है। वसुंधरा राजे के निवास के बाहर मौजूद प्रेस वालों को उनके मीडिया एडवाइजर द्वारा गेट के बाहर आकर यह हिदायत देना की आप गलत खबरें प्रचारित नहीं करें। आप किसी के भी आने-जाने को लेकर व्यर्थ खबरें नहीं चलाए। इससे राजनीतिक गलियारों में सत्ता संघर्ष तेज होने का संदेश जा रहा है ।

वहीं दूसरी ओर, विपक्ष के नेता राजेंद्र राठौड़ की ओर से सोमवार को दिए गए बयान के भी सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि राठौड़ ने केंद्रीय नेतृत्व के इशारे पर ही यह बयान दिया है कि कोई मुगालते में ना रहे कि उसके चेहरे की वजह से भाजपा को राजस्थान में बहुमत मिला है। बल्कि पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों, चेहरे औऱ कमल के निशान पर लड़ा गया है। इसलिए राजस्थान की सत्ता में भाजपा की वापसी इसी वजह से हुई है।
मीडिया में खबर यह भी चली कि पूर्व सीएम वसुंधरा राजे से उनके निवास पर विधायकों की मुलाकात को लेकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने फोन पर नाराजगी जताई थी। हालांकि नड्डा औऱ वसुंधरा राजे के ऑफिस और निवास से इसकी पुष्टि नहीं की गई। लेकिन, मुलाकात का सिलसिला जारी था।

नए दावेदारों में सुनील बंसल और प्रकाश चंद का भी नाम

राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारों की सूची में अब पार्टी के महामंत्री सुनील बंसल और राजस्थान के पूर्व संगठन महामंत्री रह चुके प्रकाशचंद का नाम भी जुड़ गया है। हालांकि इनके नामों को लेकर भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये दोनों अभी संघ के प्रचारक हैं। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपवाद छोड़ दिया जाए तो किसी भी प्रचारक को सीधे इस तरह की कमान सौंपे जाने की परंपरा नहीं रही है। पहले उन्हें प्रचारक का जीवन छोड़ना पड़ता है। वैसे राजस्थान में सीएम के पद के प्रबल दावेदारों में वसुंधरा राजे, ओम बिड़ला, दीया कुमारी, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, अर्जुन राम मेघवाल, ओमप्रकाश माथुर, डॉ. किरोड़ीलाल मीणा, गजेंद्र सिंह खींवसर, अश्विनी वैष्णव. सतीश पूनिया और बाबा बालकनाथ , सीपी जोशी समेत कई नाम चर्चा में हैं।

वसुंधरा राजे या किरोड़ीलाल मीणा को बना सकते हैं स्पीकर
भाजपा सूत्रों की मानें तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की तर्ज पर राजस्थान में पूर्व सीएम वसुंधराराजे औऱ डॉ. किरोड़ी लाल मीणा में से किसी एक को विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है। वैसे चर्चाएं हैं कि वसुंधराराजे को केंद्रीय नेतृत्व राज्यपाल बनाने औऱ उनके सांसद बेटे दुष्यंत सिंह को केंद्रीय मंत्री बनाने का ऑफर दे रहा है। लेकिन, वे इस पर सहमत नहीं हो रही हैं। वे मुख्यमंत्री ही बनना चाहती हैं। इसके पीछे उनका तर्क है कि वे अपने कार्यकाल की जन कल्याणकारी योजनाओं को आगे बढ़ाना चाहती हैं।

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