गांधी के नाम पर सियासत का खेल : पूर्व सीएम गहलोत के धरना देने की घोषणा मात्र से घुटनों पर आई भजनलाल सरकार
जयपुर। यह विडंबना ही है कि महात्मा गांधी के सिद्धांतों का नाम लेकर राजनीति की जा रही है, लेकिन उनके असल आदर्शों को पूरी तरह नजरअंदाज किया जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा गांधी वाटिका के संचालन न होने पर धरने की घोषणा करने मात्र से भजनलाल सरकार घुटनों पर आ गई और आनन-फानन में 2 अक्टूबर से वाटिका का संचालन शुरू करने की घोषणा कर दी। यहां सवाल उठता है कि अगर गांधी आज जीवित होते, तो क्या वो अपनी वाटिका के लिए लड़ते? या फिर वो उन संविदाकर्मियों की आवाज़ होते, जिन्हें पिछले तीन-चार महीनों से वेतन नहीं मिल रहा? सच्चाई यही है कि अगर गांधी आज होते, तो उनकी प्राथमिकता वे गरीब और कमजोर लोग होते, जो आज भी अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए तरस रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्विट कर दावा किया कि धरने की घोषणा के बाद जनता का समर्थन मिला और सरकार ने दबाव में आकर फैसला किया। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा अपने फैसले को महात्मा गांधी के मूल्यों और सिद्धांतों से जोड़कर जनता को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनका कदम गांधी के आदर्शों को सम्मानित करने वाला है। लेकिन हकीकत यह है कि यह फैसला केवल सियासी मजबूरियों का परिणाम है।
गांधी वाटिका, जिसे जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा 85 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया, भजनलाल सरकार के लिए एक सियासी मोहरा बनकर रह गई है। क्या वास्तव में गांधी के सिद्धांतों का यह उपयोग सही है? अगर इन नेताओं को वास्तव में गांधी से प्रेम होता, तो वे उस गरीब संविदाकर्मी की आवाज़ होते, जिसका परिवार भूखमरी के कगार पर है।
सरकार की विफलता तो तब और भी उजागर होती है जब सचिवालय में पड़ी शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। अधिकारी शिकायतों को इधर से उधर घुमाते हैं, और जनता न्याय के लिए तड़पती रहती है। वही प्रचार-प्रसार विभाग, जिसे सरकार की छवि बनाने का जिम्मा दिया गया है, खुद अपनी जिम्मेदारी से भागता दिखता है।
इस पूरी सियासत में जनता कहाँ है? गरीब और कमजोर लोगों की फिक्र कौन कर रहा है? शायद गांधी होते, तो वे इस सियासत को देखकर खुद ही शोक व्यक्त करते। उनकी आवाज़ आज भी उन भूखे और बेरोजगार लोगों की ओर होती, जिनके लिए ये नेता केवल घोषणाएं करते हैं, मगर वास्तविकता में कुछ नहीं बदलता।
अगर सरकार को गांधी के आदर्शों से इतनी ही प्रेरणा मिल रही है, तो उसे अपने कर्तव्यों का एहसास होना चाहिए। गांधी केवल प्रतीक नहीं थे, वे एक विचारधारा थे, जो गरीबों और कमजोरों की भलाई के लिए खड़े होते थे। समय आ गया है कि ये नेता भी अपनी राजनीति से आगे बढ़कर जनता के असली मुद्दों की तरफ ध्यान दें, वरना गांधी के नाम का इस्तेमाल केवल एक सियासी तमाशा बनकर रह जाएगा।