जनप्रतिनिधियों की सोच में ‘मैं’ और ‘मेरा’ छोड़कर ‘हमारा’ होना चाहिए: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
जयपुर। राजस्थान विधानसभा में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने भाषण की शुरुआत ‘मायड़ी’ भाषा में कर राजस्थानी का मान बढ़ाया। उन्होंने कहा, ‘माणो, सम्माणो, और बलिदान सुरोगी राजस्थान की धोरा री धरती रा निबासिया ना घणी शुभकामनाएं’। उन्होंने अपने संबोधन में जनप्रतिनिधियों को सीख देते हुए कहा- जनप्रतिनिधि जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। उनका चाल- चलन और आचार- विचार जनता के लिए होना चाहिए। जनप्रतिनिधियों की सोच में ‘मैं’ और ‘मेरा’ छोड़कर ‘हमारा’ होना चाहिए। मैं और मेरा सोचने से देश का भला नहीं हो सकता। इसलिए उनको हमेशा देश के लिए, जनता के लिए और राज्य के लिए सोचना चाहिए।
राष्ट्रपति के संबोधन से पहले विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने स्वागत भाषण देते हुए आज के दिन को ऐतिहासिक करार दिया। उन्होंने कहा- राष्ट्रपति का राज्य में पहली बार संबोधन होने के कारण आज का दिन गौरवमयी होने के साथ- साथ ऐतिहासिक भी है। देश में हमने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक समानता की कल्पना की गई थी। हमने राजनीतिक समानता हासिल की है, लेकिन आज भी आर्थिक और सामाजिक लक्ष्य प्राप्त करने की जरूरत है। राज्यपाल कलराज मिश्र ने अपने संबोधन में विधानसभा के संवैधानिक लोकतंत्र का पावन स्थल बताते हुए कहा कि यदि विधायिका प्रभावी रूप से कार्य करे तो उसका सीधा असर कार्यपालिका पर पड़ता है। जिसके जरिए विकास और जनहित के कार्य संपन्न किए जाते हैं।
राजस्थान के गौरवशाली इतिहास का जिक्र
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने भाषण की शुरुआत में राजस्थान की पावन धरा को नमन करते हुए कहा कि 1952 में इस विधानसभा का गठन हुआ था तब से लेकर आज तक 71 सालों में गौरवशाली इतिहास रचा गया है। इसके लिए उन्होंने राज्य की प्रबुद्ध जनता, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और सभी विधायकों को शुभकामनाएं दी। उन्होंने उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का का जिक्र करते हुए कहा- यह गौरव की बात है कि राजस्थान विधानसभा से निकले विधायक आज दोनों सदनों की अध्यक्षता कर रहे हैं।
राजस्थान विधानसभा विविधता का सुंदर प्रतिबिंब
राष्ट्रपति ने कहा कि राजस्थान क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य है। संविधान सभा के द्वारा प्रत्येक राज्य में विधानसभा की स्थापना सुनिश्चित की गई थी। जिसके चलते संविधान की धारा 168 द्वारा विधानसभाओं के गठन का प्रावधान लागू किया गया। 1948 में राज्यों के स्वरूप का निर्माण कार्य शुरू हुआ जो विभिन्न चरणों में होता हुआ 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत अन्य राज्यों के पुनर्गठन तथा अंत में अजमेर के राजस्थान से विलय के साथ संपन्न हुआ। सामाजिक व भौगौलिक क्षेत्रों के विधायकों की उपस्थिति के कारण यह विधानसभा राजस्थान की विविधता का सुंदर प्रतिबिंब प्रस्तुत करती है। विधानसभा भवन राजस्थान की पारंपरिक स्थापत्य कला का सुंदर उदाहरण है।