कर्ज लेकर दाल-रोटी चला रहे हैं लोग
कर्ज लेकर घी पीने का एक दर्शन भारत में रहा है। चार्वाक ऋषि को इस दर्शन का प्रणेता माना जाता है। हालांकि यह दर्शन ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुआ क्योंकि कर्ज लेकर घी पीने वालों को भारतीय समाज में फ्रॉड माना जाता है। इसलिए यह काम बड़े लोगों खासकर उद्योगपतियों, कारोबारियों, नेताओं आदि के लिए छोड़ दिया गया। मध्यवर्ग अपनी मोरालिटी में इससे दूर रहा तो निचले तबके को इसका मौका ही नहीं मिला। लेकिन अब देश में एक नया दर्शन स्थापित हो रहा है। कर्ज लेकर दाल-रोटी चलाने का। नोटबंदी, जीएसटी और केंद्र सरकार की अन्य आर्थिक नीतियों के साथ साथ कोरोना की महामारी ने भारतीय समाज को इस दर्शन का अनुपालन करने के लिए मजबूर कर दिया है।
भारत में कर्ज के आंकड़े परेशान करने वाले हैं। एक तरफ अमीरों का कर्ज है, जिसमें से पिछले 10 साल में 16 लाख करोड़ रुपए का कर्ज भारत सरकार ने बट्टेखाते में डाला है तो दूसरी ओर रोजमर्रा की जरुरतों को पूरा करने के वास्ते लिए गए कर्ज का आंकड़ा है, जिसके बोझ तले देश का मध्य वर्ग दबा हुआ है।
कोरोना महामारी के बाद घरेलू कर्ज यानी रोजमर्रा की जरुरतों को पूरा करने के वास्ते लिया गया कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। कई स्तरों पर कर्ज डिफॉल्ट हो रहा है और बैंकों का पैसा डूब रहा है। रिजर्व बैंक के पिछले साल यानी 2024 में क्रेडिट कार्ड सेगमेंट में डिफॉल्ट राशि 28.42 फीसदी बढ़ कर 6.742 करोड़ रुपए हो गई है। पिछले साल जून तक गोल्ड लोन का डिफॉल्ट 6,696 करोड़ रुपए हो गया था। क्रेडिट कार्ड और गोल्ड लोग दोनों का कर्ज छोटी छोटी घरेलू जरुरतों को पूरा करने के लिए लिया गया है। जून 2021 में जब कोरोना महामारी की दूसरी लहर समाप्त हुई उस समय घरेलू कर्ज भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 36.5 फीसदी था, जो जून 2024 में बढ़ कर जीडीपी के 42.9 फीसदी तक पहुंच गया। अगर 2015 से 2019 की चार साल की अवधि को देखें तो घरेलू कर्ज का औसत जीडीपी के 33 फीसदी के आसपास था। यानी 2019 के बाद से इसमें 10 परसेंटेज प्वाइंट की बढ़त हुई है। अगर भारत की जीडीपी चार सौ लाख करोड़ रुपए है तो इसका मतलब है कि चार साल में घरेलू कर्ज में 40 लाख करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हो गई है।
घरेलू कर्ज के आंकड़ों की थोड़ी और बारीकी में जाते हैं तो पता चलता है कि मार्च 2021 से मार्च 2024 की तीन साल की अवधि में बैंकों से लिए जाने वाले पर्सनल लोन में 75 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस अवधि में नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनीज और हाउसिंग फाइनेंस कंपनी के कर्ज में 70 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इसी अवधि में मिनी माइक्रो फाइनेंस कंपनी के कर्ज में 67 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इसकी तुलना में इसी अवधि में घरेलू आय में 43 फीसदी और उपभोग में 49 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। यानी आय व उपभोग के अनुपात में कर्ज ज्यादा बढ़ा है। अर्थशास्त्र के जानकारों का कहना है कि अगर कर्ज बढ़ने का ट्रेंड 2015 से 2019 वाला रहता और उसके बाद चार साल में जितनी तेजी से बढ़ा है वैसे नहीं बढ़ता तो उपभोक्ता खर्च में जीडीपी के दो फीसदी के बराबर कमी आती। इसका बहुत बड़ा असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता।
सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि ज्यादातर कर्ज घरेलू और रोजमर्रा की जरुरतों को पूरा करने के लिए लिया जा रहा है। निवेश करने या कारोबार बढ़ाने के लिए इस अनुपात में कर्ज नहीं लिया जा रहा है। दूसरी खास बात यह है कि पांच लाख रुपए सालाना से कम आय वाले लोग अपनी जरुरतों को पूरा करने के लिए ज्यादा कर्ज ले रहे हैं। यही कारण है कि अनसिक्योर लोन की मात्रा सबसे ज्यादा बढ़ रही है। अगर बैंकों से लिए जाने वाले घरेलू कर्ज में क्रेडिट कार्ड और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स के कर्ज को जोड़ दें तो मार्च 2021 से मार्च 2024 की अवधि में कर्ज बड़ने का आंकड़ा 82 फीसदी पहुंच जाता है। इन तीनों मामलों यानी घरेलू कर्ज, क्रेडिट कार्ड और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स का गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं का कर्ज इसी अवधि में 130 फीसदी की दर से बढ़ा है। तभी माना जा रहा है कि पांच लाख से कम आय वाला घर चलाने के लिए कर्ज ले रहा है और उससे ज्यादा मध्य आय वाला वर्ग घर और कार आदि के लिए कर्ज ले रहा है।
चिंता की दूसरी बात यह है कि पहले से चल रहे कर्ज के बाद भी परिवार कर्ज ले रहे हैं। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक निजी कर्ज लेने वाले पांच से में तीन लोगों के ऊपर एक साथ तीन लोन की किस्तें चल रही हैं। माइक्रो फाइनेंस की बात करें तो छह फीसदी ऐसे हैं, जिन पर चार या उससे ज्यादा कर्ज चल रहे हैं। इसका मतलब है कि घरेलू आय का बड़ा हिस्सा कर्ज की किस्तें भरने में जा रहा है और अगर आय में बहुत जल्दी व तेजी से बढ़ोतरी नहीं होती है तो बैंकों के कर्ज एनपीए में बदलेंगे या आम लोगों पर कर्ज चुकाने का बहुत बड़ा दबाव बनेगा। उनकी कमाई का ज्यादा हिस्सा कर्ज चुकाने में जाएगा।
तभी रिजर्व बैंक ने कर्ज की शर्तें सख्त करने और जोखिम का आकलन करने का निर्देश दिया। इससे कर्ज देने की रफ्तार में थोड़ी कमी आई लेकिन इसका असर उपभोग पर पड़ा और विकास दर गिर गई। सो, यह अलग जोखिम है। इस बीच रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में कमी शुरू कर दी है। दो कटौती हो गई है। इससे कर्ज और उपभोग दोनों बढ़ेंगे। पर मुश्किल यह है कि अगर कमाई नहीं बढ़ी तो कर्ज कहां से चुकता होगा? फिर तो बैंकिंग सेक्टर का भी भट्ठा बैठेगा। ध्यान रहे बैंकों के कर्ज में निजी और घरेलू कर्ज का हिस्सा एक तिहाई है और एनबीएफसी व एचबीएफसी के कर्ज में आधा है।
ऐसा नहीं है कि उपभोग के लिए सिर्फ निजी कर्ज या क्रेडिट कार्ड और कंज्यूमर उत्पादों के लिए बैंकों या एनबीएफसी से कर्ज लिए जा रहे हैं, गोल्ड लोन यानी सोना गिरवी रख कर कर्ज लेने का ट्रेंड भी तेजी से बढ़ा है। इसका भी ज्यादातर हिस्सा घरेलू जरुरतों को पूरा करने से जुड़ा है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक फरवरी 2025 में गोल्ड लोन में 87.4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। यह बढ़ कर 1.91 लाख करोड़ रुपए पहुंच गई है। 2019 से 2024 के बीच सोना गिरवी रख कर कर्ज लेने वाली महिलाओं की संख्या में 22 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इसी बीच गोल्ड लोन डिफॉल्ट में 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2024 में गोल्ड लोन बकाया 1,02,562 करोड़ था, जो अक्टूबर 2024 तक बढ़ कर 1,54,282 करोड़ हो गया और फरवरी 2025 में बढ़ कर 1.91 लाख करोड़ हो गया।
गोल्ड लोन के बाद कर्ज का तीसरा सेगमेंट है सूदखोर महाजनों का जिनके चंगुल में देश की गरीब आबादी का बड़ा हिस्सा फंसा हुआ है। ऐसे नागरिक, जिनकी नियमित आय का कोई साधन नहीं है, जिनको कोई भी बैंक, एनबीएफसी या एचबीएफसी कर्ज नहीं देता है और जिनके पास सोना नहीं है, जिसे गिरवी रख कर कर्ज लें वे अपने गांव, कस्बे या शहर के महाजन पर निर्भर हैं। गांवों और छोटे शहरों से लेकर महानगरों तक ऐसे कर्ज देने वाले महाजन हैं, जिनके ब्याज की दरें बहुत ऊंची होती हैं। इनके जाल में फंसने वालों का निकलना मुश्किल होता है।
सो, कर्ज लेकर दाल-रोटी चलाने वालों की तादाद तेजी से बढ़ रही है और दूसरी ओर देश की 10 फीसदी मध्य वर्ग, उच्च मध्य वर्ग और संपन्न लोगों की आबादी है, जिनकी वजह से देश भर के मॉल्स की चमक दमक बनी हुई है। यह 10 फीसदी आबादी, जो 14 करोड़ बनती है वही कारें खरीद रहा है, घर खरीद रहा है, आई फोन्स खरीद रहा है और मॉल्स व रेस्तरां में जा रहा है। उन्हीं को दिखा कर देश के भोले लोगों को बहलाया जा रहा है कि देखो कहां है गरीबी! बताया जाता है कि इतने आई फोन बिक गए, इतनी कारें बिक गईं या मॉल्स में इतनी भीड़ है और किसी महंगे रेस्तरां में बिना पहले से बुकिंग के जगह नहीं मिलती है, लेकिन यह धोखा देने और हकीकत को छिपाने वाली तस्वीर है। यह देश की 10 फीसदी आबादी की सचाई है। बाकी 90 फीसदी आबादी की सचाई यह है कि वो कर्ज लेकर दाल-रोटी चला रही है।