पवारः‘गुगली’ किसकी?
कुछ रोज पहले शरद पवार ने स्वीकार किया था कि पिछले चुनाव से पहले गठबंधन के सवाल पर उनकी भारतीय जनता पार्टी से बातचीत हुई थी। जब यह स्वीकार करने की मजबूरी आई, तो पवार ने यह कह कर अपना बचाव किया था कि तब उन्होंने भाजपा की सत्ता-लोलुपता को बेनकाब करने के लिए ‘गुगली’ फेंकी थी। अब जबकि उनके भतीजे अजित पवार के नेतृत्व में उनकी पार्टी के बड़े नेता भाजपा से जा मिले हैं, तो देश के लोग इसे समझने की उलझन में फंसे हैं कि आखिर ये ‘गुगली’ किसकी है? यह भाजपा के ‘चाणक्यों’ की है, यह फिर पवार ने इसे फेंका है? या इसके पीछे असल खेल उन अरबपति कारोबारियों का है, जिनमें से एक के मुश्किल में फंसने पर विपक्ष की घेरेबंदी को तोड़ते हुए पवार उसके बचाव में आए थे? यह तो लगभग तय था कि अगले आम चुनाव से पहले विपक्ष की हो रही गोलबंदी के बीच भाजपा इस पूरे प्रयास की हवा निकालने की चाल चलेगी।
आम अनुमान यही रहा है कि अगले आम चुनाव में दो बड़े राज्यों- महाराष्ट्र और बिहार में भाजपा को सीटों का बड़ा नुकसान हो सकता है। इसकी वजह इन दोनों राज्यों में पिछले आम चुनाव के बाद समीकरणों में आया बड़ा बदलाव है। ऐसी संभावना को पलटने के लिए भाजपा ने अगर अपने जाने-पहचाने तरीके अपनाए हैं, तो इसमें किसी आश्चर्य की बात नहीं है। बिहार में पहले उपेंद्र कुशवाहा और फिर जीतन राम मांझी विपक्षी महागठबंधन से अलग हो गए। उनके साथ मुकेश साहनी और अन्य जातीय पहचान वाले नेताओं को जोड़ कर भाजपा नीतीश-तेजस्वी गठजोड़ का जवाब तैयार कर रही है। महाराष्ट्र में तो उसने विपक्षी गठबंधन- महा विकास अघाड़ी के दो प्रमुख घटक दलों के बड़े हिस्से को ही अपने में मिला लिया है। इन कोशिशों से उन राज्यों में भाजपा अपने पहले के वोट आधार की किस हद तक रक्षा कर पाएगी, इस बारे में अभी कोई ठोस बात नहीं कही जा सकती है। लेकिन इससे विपक्षी आकलन और एकजुटता से अनुकूल मनोवैज्ञानिक माहौल बनाने की कोशिशों में एक बड़ी सेंध लग गई है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।