रिटायर लोगों का संसदीय बोर्ड

नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने जब भाजपा की कमान संभाली तो संसदीय बोर्ड के साथ एक मार्गदर्शक मंडल भी बनाया। पार्टी के वरिष्ठ और बुजुर्ग नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में जगह दी गई। हालांकि उसमें नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह भी हैं लेकिन माना यह गया कि रिटायर नेताओं को इस मंडल में जगह मिलेगी और सक्रिय व बड़े नेता संसदीय बोर्ड में रहेंगे। भाजपा ने 75 साल की उम्र में सक्रिय राजनीति से नेताओं को रिटायर करना भी शुरू किया। अब ये दोनों सिद्धांत लगता है कि भाजपा ने अपनी सुविधा के हिसाब से स्थगित कर दिया है।

मार्गदर्शक मंडल में तो कोई नहीं जा रहा है उलटे संसदीय बोर्ड को रिटायर नेताओं से भर दिया गया है। बिल्कुल शाब्दिक अर्थों में जो नेता रिटायर हो गए हैं उनको संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया है। पिछले दिनों बीएस येदियुरप्पा ने सक्रिय राजनीति से रिटायर होने का ऐलान किया। उन्होंने कहा कि वे अपनी पारंपरिक शिकारीपुरा सीट से चुनाव नहीं लड़ेंगे। येदियुरप्पा ने क्षेत्र के लोगों से अपने बेटे बीवाई विजयेंद्र का समर्थन करने की अपील की। उनकी उम्र 79 साल है और वे रिटायर हो गए हैं फिर भी भाजपा ने उनको संसदीय बोर्ड में जगह दी। कर्नाटक में अगले साल होने वाले चुनाव की मजबूरी में भाजपा रिटायर और उम्रदराय येदियुरप्पा को सबसे बड़ी ईकाई में शामिल किया।

इसी तरह सत्यनारायण जटिया भी रिटायर हो गए थे। उनका राज्यसभा का कार्यकाल 2020 में पूरा हुआ और उसके बाद वे राजनीतिक गतिविधियों से रिटायर हो गए थे। मध्य प्रदेश में भाजपा के किसी कार्यक्रम में वे हिस्सा नहीं ले रहे थे। लेकिन मध्य प्रदेश में अगले साल चुनाव हैं और शिवराज सिंह चौहान को संसदीय बोर्ड से हटाना था तो जटिया को संसदीय बोर्ड में शामिल कर लिया गया। उनकी उम्र भी 76 साल हो गई है। वे सक्रिय राजनीति से रिटायर थे और रिटायर होने की भाजपा की ओर से तय उम्र सीमा भी पार कर चुके थे।

इकबाल सिंह लालपुरा भी रिटायर आदमी हैं। पुलिस की सेवा से रिटायर होने के बाद वे 2012 में भाजपा में शामिल हुए थे। उनकी उम्र भी 70 साल के करीब है। वे सिख हैं और पुलिस अधिकारी के तौर पर उनके नाम यह इतिहास दर्ज है कि उन्होंने जरनैल सिंह भिंडरावाले को गिरफ्तार किया था। भाजपा को पंजाब की राजनीति में पैर जमाना है और उसे एक सिख चेहरे की जरूरत है। किसान आंदोलन के बाद यह जरूरत ज्यादा महसूस की जा रही थी। इसलिए लालपुरा को जगह मिल गई। हरियाणा की सुधा यादव भी रिटायर नेता हैं। उन्होंने पहली और आखिरी बार 1999 का लोकसभा चुनाव जीता था। उसके बाद वे 2004 और 2009 में लोकसभा का चुनाव लड़ीं और हार गईं। बाद में उनको लड़ने लायक नहीं समझा गया। उनको 2014 और 2019 में टिकट नहीं मिली और न राज्यसभा वगैरह मिली। वे भाजपा की राष्ट्रीय सचिव हैं लेकिन अब सीधे संसदीय बोर्ड में जगह मिल गई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *