किस फॉर्मूले पर बनेगी सरकार?
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए को पूर्ण बहुमत मिल गया है। हालांकि भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ है और एनडीए की कुछ सहयोगी पार्टियों को भी नुकसान हुआ है। लेकिन एनडीए के साथ जुड़े नए सहयोगी टीडीपी की वजह से सहयोगियों की संख्या लगभग उतनी ही रह गई है, जितनी पहले थी। जो नुकसान उठाना पड़ा है वह भाजपा को उठाना पड़ा है। उसे अपने सबसे मजबूत असर वाले राज्यों उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र में बड़ा झटका लगा है। पश्चिम बंगाल में उसका प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। तभी वह ढाई सौ सीटें के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाई। उसे करीब 60 सीटों का नुकसान हुआ है।
तभी अब सवाल है कि सरकार किस फॉर्मूले पर बनेगी? क्या नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बनेंगे? यह सवाल इसलिए है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी की चुनावी और नैतिक दोनों हार हुई है। चुनावी हार इस नजरिए से कि वे 272 का जादुई आंकड़ा नहीं हासिल कर पाए हैं और नैतिक हार इसलिए क्योंकि वे लगातार भाजपा को 370 और एनडीए को चार सौ सीट मिलने की बात कर रहे थे। अगर एनडीए को इतनी सीटें नहीं मिलतीं और भाजपा अकेले दम पर बहुमत के करीब पहुंच जाती तो माना जाता कि देश की जनता ने भाजपा और नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार सरकार चलाने का जनादेश दिया है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।
इससे पहले 1989 के चुनाव में इस तरह की स्थिति हुई थी, जब राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस चार सौ से घट कर 197 सीटों पर आ गई थी। वह सबसे बड़ी पार्टी थी और इस नाते तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने राजीव गांधी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित भी किया था लेकिन राजीव गांधी ने हार स्वीकार करते हुए सरकार बनाने से मना कर दिया था। क्या नरेंद्र मोदी ऐसा कर सकते हैं? हालांकि भाजपा की ओर से कहा जाने लगा है कि एनडीए को बहुमत मिला है तो वह सरकार बनाएगी। लेकिन क्या नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे? या वे भी राजीव गांधी की तरह नैतिक स्टैंड लेंगे और तीसरी बार पीएम पद की शपथ नहीं लेंगे?
इस बात की संभावना कम है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनने का फैसला करेंगे। भाजपा स्वाभाविक रूप से उनको संसदीय दल का नेता चुनेगी और वे सरकार बनाने का दावा भी करेंगे। दूसरी ओर विपक्षी पार्टियां भी दावा कर रही हैं कि वे सरकार बना सकती हैं और इसके लिए कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायूड से बात हो रही है। कांग्रेस ने नायडू का समर्थन लेने के लिए यह भी कह दिया कि वह आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देगी। नीतीश कुमार की भी यही मांग है। तभी सवाल है कि क्या ऐसी बातों के सहारे नीतीश और नायडू को तोड़ा जा सकेगा? नायडू को राज्य में सरकार बनाने के लिए भाजपा के समर्थन की जरुरत नहीं है लेकिन बिहार में नीतीश कुमार की सरकार भाजपा के समर्थन से चल रही है। इसलिए उनको यह आकलन करना है कि भाजपा के साथ ज्यादा सहज रूप से सरकार चला सकते हैं और अगला चुनाव जीत सकते हैं या विपक्षी गठबंधन के साथ जाना फायदेमंद होगा। इन दोनों सहयोगियों को हटा दें तो एनडीए की संख्या 261 बनती है, जो 272 के जादुई आंकड़े से थोड़ा ही कम है। इसलिए एनडीए की सरकार ज्यादा आसान है, फिर भी ‘इंडिया’ के नेता कोशिश जरूर करेंगे।