अब सिर्फ सुप्रीम लीडर के नाम पर चुनाव

किसी जमाने में कांग्रेस के एक नेता ने कहा था ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’। तब इंदिरा गांधी देश की सबसे लोकप्रिय नेता थीं और कांग्रेस की सर्वोच्च नेता तो थी हीं। इसके बावजूद कांग्रेस के पास हर प्रदेश में ऐसे कई कई नेता थे, जो अपने दम पर राजनीति करते थे और चुनाव जीतते थे। वे नेता भी इंदिरा गांधी को और बाद में राजीव गांधी को अपना सर्वोच्च नेता मानते थे लेकिन ऐसा नहीं था कि वे सिर्फ इंदिरा या राजीव गांधी के नाम पर चुनाव जीतते थे। इसी तरह भाजपा में भी अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी सुप्रीम लीडर रहे लेकिन हर प्रदेश में भाजपा के पास ऐसे क्षत्रप थे, जिनको अपना चुनाव जीतने के लिए वाजपेयी या आडवाणी के करिश्मे की जरूरत नहीं थी। नरेंद्र मोदी ऐसे ही क्षत्रपों में से एक थे। वे गुजरात में अपने दम पर चुनाव लड़ते और जीतते थे। शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे, रमन सिंह, बीएस येदियुरप्पा, प्रमोद महाजन-गोपीनाथ मुंडे, भैरोसिंह शेखावत, मदनलाल खुराना, शांता कुमार-प्रेम कुमार धूमल आदि ऐसे नेताओं के नाम हैं, जिन्होंने अपने दम पर राजनीति की और चुनाव लड़े। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। अब कांग्रेस हो या भाजपा या नई बनी आम आदमी पार्टी, चुनाव सिर्फ सुप्रीम लीडर के नाम पर लड़ा जाता है। विधायक और पार्षद का चुनाव भी अब प्रधानमंत्री के नाम पर लड़ा जा रहा है।

हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और चेहरे पर विधानसभा का चुनाव लड़ा है। प्रधानमंत्री मोदी ने पांच नवंबर को हिमाचल प्रदेश के सोलन की एक सभा में कहा- हमारा भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार कौन है, आपको किसी को याद रखने की जरूरत नहीं है, सिर्फ कमल का फूल याद रखिए। मैं आपके पास कमल का फूल लेकर आया हैं। जब आप वोट डालने आएं और कमल का फूल देखें तो समझें इसका मतलब बीजेपी है, इसका मतलब मोदी है। आपका हर एक वोट मोदी को आशीर्वाद के रूप में मिलेगा। इसी सभा में उन्होंने कहा- दिल्ली में मोदी है तो यहां भी मोदी को मजबूती मिलनी चाहिए। इसके बाद प्रचार बंद होने के एक दिन बाद और मतदान से एक दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने हिमाचल के लोगों के नाम एक खुला पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा- कमल के फूल को दिया गया आपका एक एक वोट सीधे मेरी शक्ति बढ़ाएगा।

इस तरह से भारतीय जनता पार्टी, कमल का फूल और नरेंद्र मोदी एकाकार हो गए हैं। ये तीनों एक हैं और बाकी सारी चीजें अप्रासंगिक हैं। राज्य में पांच साल तक मुख्यमंत्री रहे जयराम ठाकुर का कोई मतलब नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों का भी कोई मतलब नहीं है। पार्टी के उन 33 विधायकों का भी कोई मतलब नहीं है, जिन्हें फिर से टिकट दी गई है। उन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र में क्या काम किया या मुख्यमंत्री ने पांच साल में राज्य में क्या काम किया उसका भी कोई मतलब नहीं है। चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार हों, राज्य सरकार के मंत्री हों या मुख्यमंत्री हों और केंद्र सरकार के मंत्री हों, सब बेमतलब हैं। मोदी अब सिर्फ सर्वोच्च नेता नहीं रहे, बल्कि वे ही सब कुछ हैं। ‘अहम ब्रह्मास्मि’ या शंकराचार्य के अद्वैत सिद्धांत की तरह एक सर्वशक्तिमान है और बाकी सब भ्रम है। सोचें, यह उस पार्टी की स्थिति है, जो एक विचारधारा पर आधारित पार्टी है और सबसे अलग राजनीति करने का जिसका वादा है।

कांग्रेस की स्थिति भी इससे कुछ अलग नहीं है, बल्कि उसकी स्थिति और विचित्र है। वह तो राहुल गांधी की अदृश्य ताकत के दम पर चुनाव लड़ रही है। राहुल गांधी कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं और यात्रा इस समय महाराष्ट्र में है। उससे पहले यात्रा दक्षिण भारत के पांच राज्यों- तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से गुजरी। लेकिन कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उस यात्रा से ऐसी लहर उठ रही है, जिसमें भाजपा हर जगह बह जाएगी। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता और हिमाचल प्रदेश के नेता उम्मीद कर रहे हैं कि राहुल गांधी की यात्रा के असर में कांग्रेस जीत जाएगी। गुजरात में तो अपनी यात्रा छोड़ कर राहुल गांधी प्रचार के लिए जा रहे हैं। पहले और अब के कांग्रेस नेताओं में फर्क यह है कि पहले कांग्रेस के नेता नेहरू-गांधी परिवार के बारे में कहते थे कि उन्हीं के करिश्मे से कांग्रेस जीत रही है लेकिन उसे पूरी तरह से मानते नहीं थे। आज के कांग्रेस नेता कहते भी हैं और मानते भी हैं। आज एक तरफ भाजपा के नेता कह रहे हैं कि देश के 130 करोड़ भारतीयों को मोदीजी ने बचाया हुआ है तो दूसरी कांग्रेस के नेता कह रहे हैं कि मोदीजी की नीतियों से देश के सामने जो संकट खड़ा हुआ है उससे सिर्फ राहुल गांधी ही बचा सकते हैं।

नई बनी आम आदमी पार्टी की स्थापना एक पोस्ट आइडियोलॉजी पार्टी के तौर पर हुई थी। कहा गया था कि यह किसी विचारधारा से निर्देशित होने की बजाय गवर्नेंस के मॉडल पर काम करने वाली पार्टी होगी। इसने गवर्नेंस का अपना एक मॉडल बनाया भी लेकिन अंत में वह मॉडल चुनाव जीतने के लिए मुफ्त में चीजें बांटने का मॉडल बन कर रह गया, गवर्नेंस जीरो हो गया। राजधानी दिल्ली हो या पंजाब दोनों जगह गवर्नेंस शून्य है और आम आदमी पार्टी सिर्फ लोगों को मुफ्त की चीजें बांट कर चुनाव जीत रही है। यहां भी झाड़ू निशान, आम आदमी पार्टी, अरविंद केजरीवाल और मुफ्त में चीजों का बंटवारा ये चारों एकाकार हो गए हैं। केजरीवाल का मतलब है कि वे लोगों को चीजें मुफ्त में बांटेंगे। उन्होंने खुद कहा कि मुफ्त में चीजें बांटने के मामले में लोग सिर्फ उन्हीं के ऊपर भरोसा कर रहे हैं।

बहरहाल, जिस तरह से प्रचार के दम पर नरेंद्र मोदी का मतलब हिंदू हित और राष्ट्रीय गौरव स्थापित किया गया है उसी तरह केजरीवाल ने प्रचार के दम पर अपने को सरकारी खजाने से लोगों को मुफ्त की चीजें बांटने वाले नेता के तौर पर स्थापित किया है। इसलिए हर जगह आम आदमी पार्टी केजरीवाल को मजबूत करने के नाम पर वोट मांगती है। मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के बावजूद आप का एकमात्र प्रचार यह होता है कि केजरीवाल मॉडल को लागू करना है। दिल्ली में तो पिछले दिनों हुए एक उपचुनाव में 90 फीसदी पोस्टर और होर्डिंग पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार का नाम ही नहीं लिखा गया। उसकी फोटो जरूर थी लेकिन वोट झाड़ू और केजरीवाल के नाम पर मांगा जा रहा था।

सुप्रीम लीडर चाहे नरेंद्र मोदी हों या राहुल गांधी हो या अरविंद केजरीवाल हों, इनके नाम पर विधानसभा और निगम परिषद का चुनाव लड़ने का नुकसान यह हो रहा है कि हर जगह सिर्फ राष्ट्रीय मुद्दों की चर्चा हो रही है। हिमाचल में भी अयोध्या, कश्मीर तो गुजरात में भी अयोध्या, कश्मीर! स्थानीय मुद्दे गौण हो जा रहे हैं। साथ ही स्थानीय उम्मीदवार भी गौण हो जा रहा है। पहले पार्षद, विधायक या सांसद अपने चेहरे पर चुनाव लड़ते थे और स्थानीय मुद्दों पर लोगों से वोट मांगते थे तो लोग भी अपनी समस्याओं के लिए उनको जिम्मेदार ठहराते थे। अब सारे जन प्रतिनिधि जवाबदेही से ऊपर उठ गए हैं क्योंकि सारी जवाबदेही सिर्फ सुप्रीम नेताओं की है।

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