मोदी की तपस्या, फल देंगे मतदाता

तमाम अटकलों और कयासों के बावजूद यह मानने का कोई कारण नहीं है कि भाजपा के मत प्रतिशत या सीटों में कोई कमी होने जा रही है। पहले से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि भाजपा एक बार फिर बड़े बहुमत की सरकार बनाएगी और आखिरी चरण के मतदान के बाद आए एक्जिट पोल के अनुमानों ने इस धारणा की पुष्टि भी कर दी है। चार जून को एक बार फिर बड़े बहुमत से श्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने जा रही है। उनकी तीसरी पारी शुरू होने वाली है।

लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम आने वाले हैं। प्रधानमंत्री के रूप में श्री नरेंद्र मोदी की तीसरी पारी शुरू होने वाली है। उससे पहले उन्होंने भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित कन्याकुमारी की उस शिला पर तपस्या की है, जहां बैठ कर भारत के भूत, वर्तमान और भविष्य के लिए एक दृष्टि तलाशी थी युवा नरेंद्र यानी स्वामी विवेकानंद ने। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री ने भी विकसित भारत के अपने संकल्प और उसे साकार करने के उपायों पर चिंतन किया है। असल में उन्होंने इस बार लोकसभा का चुनाव ही विकसित और श्रेष्ठ भारत के निर्माण के संकल्प पर लड़ा है। यह कहने में भी कोई हिचक नहीं है कि प्रधानमंत्री ने इस बार का लोकसभा चुनाव एक तपस्या की तरह लड़ा है।

देश की जनता ने देखा है कि उन्होंने चुनाव प्रचार में कितना परिश्रम किया है। इसलिए मतदाता भी उनको उनकी तपस्या का फल देंगे। तमाम अटकलों और कयासों के बावजूद यह मानने का कोई कारण नहीं है कि भाजपा के मत प्रतिशत या सीटों में कोई कमी होने जा रही है। पहले से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि भाजपा एक बार फिर बड़े बहुमत की सरकार बनाएगी और आखिरी चरण के मतदान के बाद आए एक्जिट पोल के अनुमानों ने इस धारणा की पुष्टि भी कर दी है। चार जून को एक बार फिर बड़े बहुमत से श्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने जा रही है। उनकी तीसरी पारी शुरू होने वाली है।

चुनाव परिणामों की प्रतीक्षा करते हुए दो प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठते हैं। पहला प्रश्न यह है कि यह लोकसभा चुनाव तपस्या की तरह क्यों था और दूसरा प्रश्न यह कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की तीसरी पारी पहले की दो पारियों से कैसे भिन्न होगी? हिंदू मान्यता के मुताबिक तपस्या एक पवित्र साधना है, जिसमें साधन और साध्य दोनों पवित्र होते हैं। प्रधानमंत्री ने इसी अंदाज में 10 साल तक देश का शासन या राजकाज चलाया है। उन्होंने तपस्या की तरह राजकाज चलाया।

उनके लिए देश का शासन 140 करोड़ लोगों के कल्याण का साधन है। उनके लिए वह सत्ता नहीं है, बल्कि सेवा का माध्यम है। इसलिए चुनाव भी उनके लिए सत्ता हासिल करने का रास्ता नहीं है, बल्कि लोक कल्याण के कार्यों की निरंतरता बनाए रखने की आवश्यकता है। इसलिए यह चुनाव उनकी तपस्या की निरंतरता की तरह था। उन्होंने 10 वर्ष पहले भारत के विकास और 140 करोड़ लोगों के कल्याण का जो कार्य आरंभ किया था उसकी निरंतरता बनाए रखने के लिए उन्होंने चुनाव प्रचार की कठोर तपस्या की।

जहां तक तीसरी पारी का सवाल है तो वह इस मायने में भिन्न होगी कि पहली बार प्रधानमंत्री के तौर पर श्री नरेंद्र मोदी ने कई दीर्घकालिक लक्ष्य निर्धारित किए हैं। 2014 में सत्ता में आने के बाद उनको देश की जनता की तात्कालिक समस्याओं का निराकरण करना था। उन्हीं के शब्दों में कहें तो आजादी के बाद देश में जितने गड्ढे बने थे उनको भरना था। लोगों के मन में देशप्रेम और धार्मिक व आध्यात्मिक गर्व की भावना भरनी थी। तभी उन्होंने कुछ अलग तरह के लक्ष्य तय किए। उन्होंने स्वच्छता का अभियान शुरू किया, जिसके तहत हर घर शौचालय का महान कार्य पूरा किया गया। उन्होंने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाई’ का लक्ष्य निर्धारित किया।

उन्होंने जन धन योजना के तहत जीरो बैलेंस वाले खाते खुलवाए, आधार को मोबाइल और बैंक खातों से लिंक कराया ताकि प्रत्यक्ष लाभ अंतरण यानी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की योजना पर अमल हो सके। उन्होंने मुद्रा लोन के जरिए बिना किसी प्रमाणपत्र के युवाओं के लिए कर्ज की व्यवस्था की ताकि वे नौकरी की तलाश करने की बजाय नौकरी देने वाले बनें। डिजिटल इंडिया का सिद्धांत दिया और भारत को दुनिया का स्टार्ट अप कैपिटल बनाया। इस तरह के अनेक छोटे बड़े काम पहले 10 साल में हुए। इन 10 वर्षों में भारत के नागरिक गुलामी की मानसिकता से बाहर निकले और दुनिया में भी भारत का मान बढ़ा।

परंतु अब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दीर्घकालिक लक्ष्य तय किए हैं। उन्होंने 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प किया है। पिछले एक हजार वर्षों की गुलामी और अंधकार युग के मुकाबले अगले एक हजार साल के गौरवशाली समय का सपना उन्होंने देखा है। उनकी तीसरी पारी उस दिशा में पहला कदम होगी। इस तीसरी पारी के कामकाज को दो हिस्सों में बांट सकते हैं। एक हिस्सा रोजमर्रा के कामकाज का है। जिसके लिए उन्होंने चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही सरकारी अधिकारियों और चुनिंदा मंत्रियों को निर्देशित कर दिया था। उन्हें नई सरकार के पहले एक सौ दिन की योजना बनाने और उसके क्रियान्वयन की रूप रेखा तैयार करने को कह दिया गया है।

सरकार के गठन के साथ ही उन पर अमल शुरू हो जाएगा। ये योजनाएं आमतौर पर देश के सर्व साधारण के रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी हुई हैं। इससे जुड़े कई वादे ‘मोदी की गारंटी’ के तौर पर भारतीय जनता पार्टी के संकल्प पत्र में शामिल हैं। युवाओं के लिए मुद्रा योजना की राशि 10 से बढ़ कर 20 लाख करनी है या तीन करोड़ लखपति दीदी बनानी है या पांच साल तक पांच किलो मुफ्त अनाज की योजना को जारी रखना है या गरीबों के लिए और ज्यादा आवास बनवाने हैं, आदि।

इसके बाद कुछ लक्ष्य ऐसे हैं, जिन्हें अगले पांच साल के भीतर प्राप्त करना है। ये सभी लक्ष्य भी बड़े हैं लेकिन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि और उनके परिश्रम के दम पर इन्हें पांच वर्षों में हासिल कर लिए जाने का पूरा भरोसा है। इनमें चार घोषित लक्ष्यों की चर्चा की जा सकती है। पहला लक्ष्य 2029 तक देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का है। भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में इसे शामिल किया है। इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है। उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने इसे लागू कर दिया है। अगले पांच साल में इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू कर दिया जाएगा। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया है कि इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा और किसी भी हाल में पर्सनल कानून के नाम पर शरिया लागू नहीं होने दिया जाएगा।

दूसरा लक्ष्य पांच साल में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ सुनिश्चित करने का है। प्रधानमंत्री ने इसका वादा किया है। इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय कमेटी बनी थी, जिसने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होने से समय और संसाधन दोनों की बचत होगी। तीसरा लक्ष्य 2029 के लोकसभा चुनाव तक महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करने का है।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने लोकसभा की नई इमारत में पहला कानून ही ‘नारी शक्ति वंदन’ का पास कराया। कांग्रेस और दूसरी पार्टियों की सरकारें महिलाओं को आरक्षण देने की प्रतिबद्धता का दिखावा करती रहीं और मोदी सरकार ने इसका कानून पारित करा दिया। चौथा लक्ष्य तो अगले तीन साल में ही हासिल कर लिया जाना है। वह है भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बनाना। भारत 2027 तक अमेरिका और चीन के बाद तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। भारत किस तरह से इस रास्ते पर चल रहा है यह अर्थव्यवस्था के ताजा आंकड़ों से पता चलता है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की अर्थव्यवस्था 8.2 फीसदी की दर से बढ़ी है, जो दुनिया के बड़े देशों में सबसे ज्यादा है।

अंत में दीर्घकालिक लक्ष्यों की चर्चा करते हैं, जिन्हें 2047 तक यानी भारत की स्वतंत्रता के एक सौ वर्ष पूरे होने तक प्राप्त करना है। इसमें एक बड़ा लक्ष्य तो आर्थिक है, जिसे विकसित भारत के संकल्प के साथ पूरा होना है। भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बन जाए, इसके लिए अगले 26 साल तक संकल्प के साथ परिश्रम की जरुरत है। देश के नागरिकों को भी इसमें अपने दायित्वों का निर्वहन करना है। विकसित भारत के लक्ष्य के अलावा भारत को धार्मिक और आध्यात्मिक प्रगति के शिखर तक ले जाना है। भारत की गौरवशाली संस्कृति की पुनर्स्थापना करनी है। सभ्यता की उस ऊंचाई तक पहुंचना है, जहां एक समय भारत का स्थान था।

यह सिर्फ आर्थिक उपलब्धियों से नहीं होगा। इसके लिए शिक्षा के क्षेत्र में महान लक्ष्यों को हासिल करना होगा। विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल करनी होंगी और साथ ही धार्मिक व आध्यात्मिक क्षेत्र में शिखर तक पहुंचना होगा। अल्पकालिक लक्ष्यों को अगर समयबद्ध तरीके से प्राप्त किया गया तो दीर्घकालिक लक्ष्य तक भी पहुंचना सरल हो जाएगा। हां, उसकी शर्त यह है कि रास्ते में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए। इस बार लोकसभा चुनाव में देश की तमाम परिवारवादी और भ्रष्टाचार की जननी पार्टियों ने एकजुट होकर बाधा डालने का प्रयास किया है। लेकिन यह पूरे भरोसे के साथ कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की तपस्या विपक्ष के सामूहिक कुत्सित प्रयासों पर भारी पड़ेगी।

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