विधानसभा परिणामों से लोकसभा के कयास गलत….?

देश पर राज कर रही भारतीय जनता पार्टी सहित अधिकांश राजनीतिक दलों व उनके नेताओं की सोच है कि-‘‘यदि विधानसभाओं में उनका बहुमत हो गया तो फिर देश पर राज करने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता’’, लेकिन आज के संदर्भ में इन राजनीतिक दलों व उनके नेताओं की यह सोच बिल्कुल गलत है, क्योंकि ये राजनीतिक दल व उनके नेता यही सोचते है कि आज भी देश का आम मतदाता अर्द्ध शताब्दी पूर्व की सोच वाला ही है, किंतु वास्तविकता यह नही है, आज के देश का आम मतदाता काफी जागरूक, सुशिक्षित और विचारवान हो गया है, वह न सिर्फ अपना खुद का बल्कि देश का हित भी जानता है, यही नहीं कई बार तो वह स्वयं से पहले देश का हित सोचता है, इसलिए वह विधानसभा और लोकसभा के उसके दायित्वों व अधिकारों को भी बखूबी समझने लगा है, इसका प्रदर्शन भी वह कई बार कर चुका है, जब उसने विधानसभा व लोकसभा चुनावों में अपनी अलग-अलग पसंदगी जाहिर की।

लेकिन दुःख व आश्चर्य की बात यह है कि आज के राजनीतिक दल इस तथ्य को समझने को तैयार ही नहीं है और हर बार वे दोनों ही स्तरों के चुनावों के समय मतदाताओं से एक जैसा सलूक या व्यवहार करते है। यह नेहरू-इंदिरा युग तक चलता था, किंतु अब मोदी-युग में सब कुछ बदल गया है, अब मतदाताओं ने न सिर्फ स्थानीय राज्य व केन्द्र स्तर के मुद्दों को ठीक से समझना शुरू कर दिया है, बल्कि इन नई सदी के शुभारंभ से ही मतदाताओं की सोच में परिवर्तन आ गया है और वे देश के भविष्य को प्राथमिकता देते हुए फैसला करने लगे है, मतदाताओं ने अपने निजी स्वार्थों को मतदान के समय महत्व देना लगभग बंद ही कर दिया है, किंतु दुःख की बात यह है कि हमारे आधुनिक राजनेता इस तथ्य को समझने को तैयार नही है और वे अभी भी अपने राजनीतिक पूर्वजों की ही लीक पर चलकर राजनीतिक रण जीतना चाहते है, वर्तमान संदर्भ में तो मोदी जी और उनका सत्तारूढ़ दल भी इस तथ्य को मानने को तैयार नहीं है, इसीलिए उन्होंने विधानसभा चुनावों के पहले से ही वही पुराना रूख अपना रखा है, उनकी सोच है कि यदि इन पांच राज्यों की विधानसभाओं पर उनका कब्जा हो गया तो फिर केन्द्र में उनकी पुनरावृत्ति को कोई नहीं रोक सकता, लेकिन उनकी यह गलतफहमी विधानसभाओं व लोकसभा के परिणाम आने के बाद दूर हो जाएगी, जब विधानसभाओं व लोकसभा के चुनाव परिणामों में काफी बदलाव सामने आएगा।

आज का मतदाता अपने दायित्वों व कर्तव्यों के प्रति काफी जागरूक हो गया है, उसने पंचायत से लेकर लोकसभा तक के चुनावों का अंतर व उसके परिणामों में निहित जनहित को अच्छी तरह समझ लिया है, जबकि राजनीतिक दल यह तथ्य मानने को तैयार ही नही है, मेरा यह कथन उस दिन ‘सत्य’ बनकर सामने आएगा, जब विधानसभा चुनावों के बाद लोकसभा चुनाव के परिणाम सामने आएगें। अब यहां यह सवाल अहम् मायने रखता है कि आज के राजनीतिक दल जो अपने आपकांे काफी ‘बुद्धिमान’ व मतदाताओं की सोच को परखने वाला मानते है, वे इस तथ्य को मानने को तैयार क्यों नहीं है? क्या उनके हाथों से मतदाताओं के हाथों की नब्ज छूट गई है या उन्होंने जानबूझकर यह सोचना-समझना बंद कर दिया है?

जो भी हो, किंतु अब यह एकदम दिन के उजाले की तरह स्पष्ट है कि आज का आम मतदाता काफी सुशिक्षित, जागरूक व समझदार हो गया है और वह अपने गांव की पंचायत से लेकर लोकसभा तक के महत्व को जान गया है, उसे तीनों स्तरीय चुनावों का महत्व व उसका प्रतिफल भी समझ में आ गया है, इसलिए वह तीनों स्तरों पर काफी सोच-समझकर अपने अमूल्य मत का उपयोग करने लगा है, लेकिन दुःख की फिर वही बात है कि राजनीतिक दल व उसके नेता यह सब कुछ समझने को तैयार ही नहीं है, इसीलिए अब केन्द्र व राज्यस्तरीय चुनाव परिणामों में बदलाव नजर आने लगा है।

देश आज उसी दौर से गुजर रहा है, जहां पांच राज्यों में विधानसभाओं के परिणाम सामने आने वाले है और मौजूदा केन्द्र की सरकार व काबिज राजनीतिक दल की यही सोच है कि विधानसभा में जिसे राज्यों की जनता पसंद करेगी, वहीं छः महीनें बाद देश पर राज करेगा, जबकि उन्हेें मौजूदा हालातों में अपनी सोच बदलकर अपना आगे का रास्ता प्रशस्त करना चाहिए। लेकिन जो अपने आपको ‘सर्वज्ञाता’ मान चुका हो, उसे आखिर कौन समझाए?

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