जीएसटी वसूली पर बेसुध जनता का जश्न!
भारत संभवतः दुनिया का पहला देश होगा जहां सरकार टैक्स वसूली के भारी भरकम आंकड़े उपलब्धि के तौर पर जारी करती है और भक्त जनता उसका जश्न मनाती है। हर महीने की पहली तारीख को सरकार यह आंकड़ा जारी करती है कि पिछले महीने जीएसटी की रिकॉर्ड वसूली हुई है। हर महीने पिछले महीने का रिकॉर्ड टूटता है। इसी तरह प्रत्यक्ष कर यानी आयकर की वसूली का तिमाही आंकड़ा जारी होता है। पिछली तिमाही या पिछले साल की समान तिमाही में वसूली का रिकॉर्ड टूटने की खबर बताई जाती है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर दोनों में वसूली के आंकड़े बढ़ने का जश्न लोग मनाते हैं। सत्तारूढ़ दल के समर्थक इसे उपलब्धि के तौर पर सोशल मीडिया में साझा करते हैं। मीडिया में हल्ला होता है। पेट्रोलियम उत्पादों पर वसूला जाने वाला टैक्स इससे अलग होता है। उसके भी आंकड़े हर महीने, हर तिमाही और छमाही में पिछला रिकॉर्ड तोड़ते हैं।
क्या यह सब अजूबा नहीं है? जिस देश में पाई-पाई जोड़ने का चलन रहा हो। जिस देश में करोड़ों लोग पाई-पाई के लिए तरस रहे हैं, उस देश में लाखों करोड़ रुपए की टैक्स वसूली का जश्न मनता है। कोई सोचता ही नहीं है कि यह पैसा उसकी जेब से निकाला जा रहा है। सरकार आम आदमी की जेब पर डाका डाल कर पैसे वसूल रही है। इस वसूली यह कहते हुए सही करार देते है कि इससे सरकार बुनियादी ढांचे का विकास करती है।
सोचे टैक्स से वसूले गए पैसे से इंफ्रास्ट्रक्चर बन रहा है और फिर उसी के इस्तेमाल के लिए जनता पर कमर तोड़ टैक्स भी है। महंगा यात्रा भाड़ा है। जनता से पैसा लेकर ढांचा बनाना और फिर उस ढाचे के उपयोग के लिए भी जनता से मनमानी वसूली। क्यों जनता से वापिस पैसा वसूला जाता है?
बहरहाल, जीएसटी पर लौटें। सवाल है कि जीएसटी वसूली में हर महीने इतनी बढ़ोतरी कैसे हो रही है? एक मई को जारी आंकड़े के मुताबिक अप्रैल में एक लाख 87 हजार करोड़ रुपए की जीएसटी की वसूली हुई, जो अब तक का रिकॉर्ड है। इससे पहले अप्रैल 2022 में एक लाख 68 हजार करोड़ रुपए की जीएसटी वसूली गई थी। ये दोनों रिकॉर्ड अप्रैल के महीने में ही बने हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि मार्च में वसूली कम हुई थी। मार्च 2023 में जीएसटी की वसूली एक लाख 60 हजार करोड़ रुपए हुई थी। उससे पहले फरवरी में एक लाख 50 हजार करोड़ के करीब और जनवरी में एक लाख 57 हजार करोड़ रुपए की वसूली हुई थी। इस तरह पिछले कुछ दिन से डेढ़ लाख करोड़ रुपए हर महीने की वसूली की एक ट्रेंड बन गया है, जो आगे बढ़ते जाना है।
मीडिया में हर महीने इसकी खबर ऐसे बनती है कि यह केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के लिए खुशखबरी है। फिर मीडिया और सोशल मीडिया में धारणा बनाई जाती है कि जनता को इस पर खुश होना चाहिए कि इतनी जीएसटी वसूली हो रही है। वसूली के भारी भरकम आंकड़ों के आधार पर जीएसटी लागू करने के फैसले को न्यायसंगत ठहराया जाता है। खाने-पीने के छोटे-छोटे, रेस्टोरेंट बिल व नए बेसिक सामान पर जेएसटी लगती-बढती जा रही है और जनता है कि उससे बढते क्लेक्शन पर तालियां बजा रही है।
लोगनहीं सोचते हैं कि यह उनकी कमाई या बचत का हिस्सा हो सकता है, जो सरकार जेब से निकलवा ले रही है। इस नाम पर कंपनियां अलग लोगों को लूट रही हैं। कई रिपोर्ट से प्रमाणित हुआ है कि जीएसटी की वसूली बढ़ने का सबसे बड़े कारणों में से एक कारण ज्यादा से ज्यादा वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी लगाना है। दूसरा कारण महंगाई बढ़ना है। सरकार चुन चुन कर वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी लगाती जा रही है, इससे टैक्स का दायरा बढ़ रहा है।इसके साथ ही वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है, जिसकी वजह से जीएसटी की और वसूली बढ़ी है। सरकार कहां कहां से जीएसटी वसूलने की सोच लेती है, इसका पता इस बात से लगता है कि रेलवे, होटल के कमरे आदि की बुकिंग पर जीएसटी लगता है लेकिन अब बुकिंग कैंसिल कराने पर भी जीएसटी वसूला जाने लगा है। कैंसिलेशन चार्ज पर पांच फीसदी जीएसटी लगा दिया गया है। इस तरह वस्तुओं और सेवाओं की सूची बनाई जाए तो कई पन्ने भर जाएंगे।
जहां तक महंगाई का सवाल है तो जनता को दो तरह की मार झेलनी पड़ रही है। एक वस्तुओं की कीमत बढ़ रही है और दूसरे डिब्बाबंद वस्तुओं की मात्रा या वजन कम किया जा रहा है। इनकम कम होने और कीमत बढ़ने से स्टैगफ्लेशन की स्थिति है तो वस्तुओं की मात्रा या वजन कम होने से श्रिंकफ्लेशन की स्थिति बन गई है। श्रिंक का मतलब है सिकुड़ना और इंफ्लेशन का मतलब है महंगाई। इन दोनों की मार जनता को झेलनी पड़ रही है। कंपनियां चुपचाप अपने उत्पादों का वजन कम कर दे रही हैं। पहले जो सामान सौ ग्राम के पैकेट में मिलता था उसमें कई सामानों का पैकेट अब 90 ग्राम का हो गया है। लोग बिना वजन देखे ये पैकेट खरीद लेते हैं। उनको अंदाजा ही नहीं होता है कि उस पैकेट पर वे 10 फीसदी ज्यादा कीमत चुका रहे हैं। इस तरह जीएसटी से युक्त वस्तुओं और सेवाओं का दायरा बढ़ने और उनकी कीमतों में बढ़ोतरी से जीएसटी का आंकड़ा बढ़ा है। यह सीधे सीधे जनता की जेब से निकलने वाला टैक्स है।गरीब-अमीर हर आय वर्ग की जनता टैक्स चुका रही है। जबकि मीडिया में ऐसे प्रचार हो है कि ज्यादा वसूली जनता के लिए ही फायदेमंद है।