आंकड़ों के आईने में
कृषि पर रोजगार की निर्भरता घटना विकास की आम प्रक्रिया का हिस्सा है। उच्च शिक्षा में ऊंची भागीदारी और कंप्यूटर का अधिक उपयोग आज विकास के मूलभूत स्तंभ हैं। इन तीनों पैमानों पर कमजोर सूरत के साथ भारत आखिर कहां पहुंच सकता है?
हाल में जारी आवधिक श्रम शक्ति सर्वेक्षण (पीएलएफएस) रिपोर्ट से यह चिंताजनक आंकड़ा सामने आया कि भारत में श्रमिकों का विपरीत विस्थापन हो रहा है। यानी बड़ी संख्या में मजदूर गैर-कृषि क्षेत्रों से वापस कृषि क्षेत्र में चले गए हैं। भारत सरकार की इस सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 2018-19 में देश में 42.5 प्रतिशत श्रमिक कृषि क्षेत्र पर आश्रित थे। 2023-24 में यह संख्या 46.1 प्रतिशत हो गई। दूसरी तरफ मैनुफैक्चरिंग एवं कंस्ट्रक्शन में लगभग समान संख्या में 11 से 12 प्रतिशत तक श्रमिकों को काम मिला हुआ है। इन दोनों क्षेत्रों में रोजगारशुदा कर्मियों की संख्या 2018-19 की तुलना में घट गई है। रिपोर्ट के अनुसार 2028-19 के बाद के पांच वर्षों में छह करोड़ 80 लाख मजदूर वापस कृषि क्षेत्र में लौट गए।
स्पष्टतः इनमें बड़ी संख्या उन मजदूरों की होगी, जो कोरोना महामारी के समय अपने गांव चले गए थे। लेकिन उनका वहीं बने रहना यह बताता है कि महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में रोजगार देने की पुरानी क्षमता लौटी नहीं है। गौरतलब है कि 2004-05 से 2018-19 के बीच छह करोड़ 60 लाख मजदूर कृषि क्षेत्र से दूसरे क्षेत्रों में काम करने गए थे। उसके बाद जो हालात बने, उसमें बात वापस 20 पहले वाले मुकाम पर पहुंच गई है। अब एक दूसरे सरकारी आंकड़े पर गौर करें। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक भारत में सिर्फ 9.9 फीसदी घरों में कंप्यूटर हैं।
देश में 15 साल या उससे अधिक उम्र के हो चुके लोगों के बीच स्कूल में समय गुजारने का औसत 8.4 वर्ष बना हुआ है। मतलब यह कि उच्च शिक्षा में आबादी का एक छोटा हिस्सा ही पहुंच पाता है। इन तीन आंकड़ों को ध्यान में रखें, तो अंदाजा लगाना आसान हो जाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का वर्तमान कैसा है और भविष्य की संभावनाएं कितनी मजबूत हैं। कृषि क्षेत्र पर रोजगार की निर्भरता घटना विकास की आम प्रक्रिया का हिस्सा है। वहीं उच्च शिक्षा में ऊंची भागीदारी और कंप्यूटर का अधिक उपयोग आज विकास के मूलभूत स्तंभ हैं। इन तीनों पैमानों पर कमजोर सूरत के साथ भारत आखिर कहां पहुंच सकता है?