सरकार की उलटी चाल

आजादी के बाद यह सचमुच पहली बार हुआ है, जब खाद्यान्न पर सरकार ने टैक्स लगा दिया है। नरेंद्र मोदी सरकार ने अपना ये फैसला तो हाल में हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में ही बता दिया था, लेकिन तब कुछ हलकों में यह उम्मीद थी कि केंद्र इस मामले पर पुनर्विचार करेगा। खास कर अभी महंगाई का जो आलम है, उसे देखते हुए सरकार से यह न्यूनतम बुद्धिमानी दिखाने की अपेक्षा जरूर थी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। तो इन नए टैक्स से खुदरा महंगाई और बढ़ेगी, इसमें कोई शक नहीं है। गौर कीजिए। सोमवार से चावल, आटा, जौ, जई आदि जैसे अनाज जीएसटी के दायरे में आ गए। इसी तरह डिब्बाबंद दही, लस्सी, बटर मिल्क और पनीर पर भी पांच प्रतिशत जीएसटी लग गया है। बात यहीं तक नहीं है। अब बैंक से चेक बुक लेने पर बैंक जो फीस लेगा, उस पर 18 प्रतिशत जीएसटी देना होगा। उधर अस्पताल के कमरों पर (5000 से अधिक फीस वाले) भी इतना ही टैक्स लगा दिया गया है। तो रोज खाना खाने से लेकर बैंकिंग और बीमार पड़ना तक महंगा हो गया है।

फ्रांस की क्रांति 1789 में हुई इस क्रांति की वजहों में एक बात यह भी बताई जाती है कि उस समय वहां जो जितना गरीब था, उस पर उतना ज्यादा टैक्स लगता था। क्या आज भारत में वही हालत नहीं बनाई जा रही है? यह कहने का ये कतई मतलब नहीं है कि भारत में फ्रांस की क्रांति जैसे हालात बन रहे हैँ। उसके विपरीत अभी तक सत्ताधारी दल की लोकप्रियता में यहां गिरावट के कोई संकेत नहीं हैँ। लेकिन नए टैक्स ने मौजूदा शासन तंत्र के वास्तविक चरित्र को एक बार फिर जरूर उजागर किया है। जिस सरकार ने तीन साल पहले कॉरपोरेट टैक्स में 145 लाख करोड़ की सालाना छूट दे दी थी और जिसने अभी तक पूंजीगत लाभ पर टैक्स बढ़ाने को नहीं सोचा है, वह लगातार रोजमर्रा की जरूरी चीजों को महंगा बनाती जा रही है। इसे समाज में विषमता और दुर्दशा बढ़ाने की सुविचारित कोशिश के रूप में ही देखा जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *