गहलोत का बयान, किसे अधिक फायदा?

राजनीति को लेकर एक पुरानी कहावत है, जिसे पिछले दिनों शिव सेना के नेता संजय राउत ने दोहराया। उन्होंने कहा कि राजनीति में कुछ भी अचानक घटित नहीं होता है। सो, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की सबसे बड़ी नेता वसुंधरा राजे को लेकर जो कहा वह भी अनायास नहीं है। गहलोत ने कहा कि 2020 में वसुंधरा और भाजपा के कुछ अन्य विधायकों, नेताओं ने उनकी सरकार बचाई थी। इस बयान के दो पहलू हैं। एक तो कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति से जुड़ा है। इस तरह के बयानों से सचिन पायलट को निशाना बनाया जाता है औऱ बार बार याद दिलाया जाता है कि उन्होंने अपनी ही सरकार गिराने का प्रयास किया था। इससे आलाकमान के सामने और जनता में भी उनको लेकर निगेटिव मैसेज जाता है। दूसरा पहलू भाजपा की अंदरूनी राजनीति से जुड़ा है।

तभी सवाल है कि इससे वसुंधरा राजे को फायदा होगा या नुकसान होगा? इस बात की बहस में जाने की जरूरत नहीं है कि वसुंधरा ने गहलोत की सरकार सचमुच बचाई थी या यह एक अफवाह है? जिसे गहलोत सच बनाना चाहते हैं? पाकिस्तान के एक बड़े व्यंग्यकार थे मुश्ताक अहमद यूसुफी, जिन्होंने लिखा था- इस मुल्क की अफवाहों की एक बुरी बात यह है कि वह अक्सर सही साबित हो जाती हैं। यह बात भारत की राजनीति के बारे में भी कही जा सकती है। पहले अफवाहें उठती हैं और बाद में वो सही साबित हो जाती हैं। जैसे महाराष्ट्र में जब अजित पवार ने देवेंद्र फड़नवीस के साथ उप मुख्यमंत्री की शपथ ली और बाद में एनसीपी में वापस लौट गए तो अफवाह उठी कि यह सब शरद पवार के इशारे पर हुआ है और पिछले दिनों फड़नवीस ने इस अफवाह की पुष्टि कर दी।

बहरहाल, अब तक जो बात सूत्रों के हवाले से या राजनीतिक साजिश के रूप में कही जाती थी उस पर मुख्यमंत्री ने मुहर लगाई है। इस बयान को दोनों तरह से देखा जा रहा है। एक नजरिया तो यह है कि गहलोत को पता है कि अगर उनको कोई चुनौती दे सकता है तो वह वसुंधरा हैं। इसलिए पहले उन्होंने वसुंधरा को भाजपा आलाकमान की नजर में संदिग्ध बनाने का प्रयास किया है ताकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उन पर भरोसा न करे और उनके हाथ में कमान न दे। हालांकि आलाकमान पहले से हिचक दिखा रहा है और अब इस बयान के बाद ज्यादा नुकसान हो जाएगा।

इस बयान की दूसरी व्याख्या हो रही है कि इससे वसुंधरा की ताकत बढ़ेगी। दो तरह से उनकी ताकत बढ़ने की बात हो रही है। पहला मैसेज तो यह है कि गहलोत उनको रास्ते से हटाना चाहते हैं इसलिए बदनाम कर रहे हैं और दूसरा मैसेज यह है कि अगर भाजपा आलाकमान ने वसुंधरा को कमान नहीं सौंपी तो वे कांग्रेस के साथ मिल कर भाजपा की राह मुश्किल करेंगी। कांग्रेस या गहलोत से उनकी करीबी का मैसेज उनकी ताकत बढ़वाएगा। यह जैसे को तैसे वाली राजनीति भी कह सकते हैं। आखिर पिछले दिनों कई बार प्रधानमंत्री मोदी भी गहलोत की तारीफ कर चुके हैं।

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