अच्छे इरादे का इज़हार

गैर-बराबरी और गरीबी का संबंध आर्थिक नीतियों से है, जिनमें परिवर्तन संयुक्त राष्ट्र के दायरे से बाहर है। इसीलिए ये संधि व्यावहारिक रूप से कोई फर्क डाल पाएगी, इसकी उम्मीद नहीं जगी है। बहरहाल, सदिच्छाओं का भी अपना महत्त्व होता है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा में ‘भविष्य के लिए संधि’ को मंजूरी मिल गई है। 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए इस संधि में दुनिया को एकजुट करने की बात कही गई है। इस तरह संयुक्त राष्ट्र ने विश्व हित की अपनी इच्छा जताई है। लेकिन विडंबना यह है कि आज दुनिया एकजुट होने के बजाय बंटती नजर आ रही है। जिस तरह का टकराव और कड़वाहट है, वैसा दूसरे विश्व युद्ध के बाद शायद ही कभी दिखा हो। फिर भी, कहा जा सकता है कि प्रतिकूल स्थितियों में भी आशा और प्रयास को तिलांजलि नहीं दी जानी चाहिए। इस लिहाज से संयुक्त राष्ट्र की ताजा पहल प्रशंसनीय है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने 193 सदस्यों वाली महासभा को इस संधि को मंजूर करने के लिए धन्यवाद दिया। कहा कि इस संधि से जलवायु परिवर्तन, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, गैर-बराबरी और गरीबी जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए देशों के एकजुट होने का रास्ता खुला है, जिससे दुनिया के आठ अरब लोगों का जीवन बेहतर बनाया जा सकता है।

रविवार को शुरू हुए दो दिवसीय ‘भविष्य के शिखर सम्मेलन’ के दौरान 42 पेज की संधि को अपनाया गया। संधि को अपनाने को लेकर महासभा की बैठक की शुरुआत तक संशय बना हुआ था। स्थिति इतनी अनिश्चित थी कि महासचिव गुटेरेश ने तीन अलग-अलग भाषण तैयार किए थे- एक पारित हो जाने के लिए, एक नामंजूर हो जाने की स्थिति के लिए, और एक उस स्थिति के लिए जब परिणाम स्पष्ट न हो। अंततः उन्होंने अपना पहला भाषण दिया। यहां तक सब ठीक है। लेकिन मुद्दा है कि जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं की वजह उपभोग बढ़ाने पर आधारित अर्थव्यवस्था है, जिस पर समझौता करने के कोई देश तैयार नहीं है। ना ही समस्या से निपटने के लिए गरीब देशों को वित्तीय मदद देने का अपना वादा धनी देशों ने निभाया है। इसी तरह गैर-बराबरी और गरीबी का संबंध आर्थिक नीतियों से है, जिनमें परिवर्तन संयुक्त राष्ट्र के दायरे से बाहर है। इसीलिए ये संधि व्यावहारिक रूप से कोई फर्क डाल पाएगी, इसकी उम्मीद नहीं जगी है। बहरहाल, सदिच्छाओं का भी अपना महत्त्व होता है।

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