हर घोषणा एक फ्रॉड!

लोगों को याद भी नहीं होगा कि पिछले आठ साल में उन्होंने कितनी घोषणाएं सुनी हैं और कितने जुमले सुने हैं। हिसाब से हर एक जुमला भारतीयों के जीवन में गुणात्मक बदलाव लाने वाला था। लेकिन एक-एक करके सारी घोषणाएं फ्रॉड साबित हुईं। हैरानी की बात है कि लोगों को या तो पता नहीं है कि उनके साथ फ्रॉड हो गया या उनकी आंखों पर झूठ का परदा पड़ा है, जिसके आर पार वे नहीं देख पा रहे हैं। सरकार ने सिद्धांत बना लिया है कि बुरा करेंगे और अच्छा कहेंगे। सरकार के लिए प्रतिबद्ध मीडिया का भी मानों संकल्प है कि जो बुरा होगा वह नहीं दिखाएंगे और जो अच्छा कहा जाएगा उसका प्रचार करेंगे। इसी दोनों सिद्धांत पर देश पिछले आठ साल से चल रहा है। सरकार जो कह रही है वह कतई नहीं कर रही है और जो हो रहा है उसे मीडिया दिखा नहीं रहा है।

इसे समझने के लिए भारी भरकम बोझिल आंकड़ों के जाल में उलझने के बजाय दो चार बड़ी घोषणाओं की हकीकत यदि लोग आंख खोल कर देखे लें तो एक्ट ऑफ फ्रॉड खुलेगा। याद करे अच्छे दिन का जुमला। याद करें मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, स्वच्छ भारत, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे हिट जुमलो को। इन सबकी क्या हकीकत है? प्रधानमंत्री बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत करने हरियाणा गए थे। वही हरियाणा की सुनारिया जेल में राम रहीम कैद है, जिसके ऊपर आश्रम में आने वाली महिलाओं और छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार का मामला प्रमाणित है। उसे उम्र कैद की सजा हुई है। लेकिन हरियाणा की भाजपा सरकार हर छोटे बड़े चुनाव के समय राम रहीम को पैरोल पर रिहा करती है। वह आश्रम में जाकर प्रवचन करता है। म्यूजिक अलबम बनाता है। भाजपा के पार्षद, विधायक और चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी आश्रम में जाकर उसके पैर छूते हैं। सो बुरा करेंगे, अच्छा कहेंगे! गुजरात में बिलकिस बानो के बलात्कारियों की समय से पहले रिहाई, फूल माना पहना कर उनका स्वागत और मिठाई बांटना इसी बुरा करेंगे, अच्छा कहेंगे के सिद्धांत की मिसाल है।

ऐसे ही भारत को आत्मनिर्भर बनाने की घोषणा थी। हर कार्यक्रम में यह जुमला दोहराया जाता है कि भारत आत्मनिर्भर हो रहा है। लेकिन असल में भारत आर्थिक रूप से चीन का गुलाम बन रहा है। हमारी समूची आत्मनिर्भरता हकीकत में चीन और दूसरे देशों से होने वाले आयात पर निर्भर है। मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत की हकीकत सिर्फ इस एक आंकड़े से समझी जा सकती है कि इतिहास में पहली बार चीन के साथ भारत का कारोबार एक सौ अरब डॉलर से ऊपर पहुंचा है। पहले नौ महीने में ही भारत के साथ चीन का कारोबार 103 अरब डॉलर हुआ, जिसमें भारत का कारोबार घाटा बढ़ कर 76 अरब डॉलर के करीब पहुंचा है। कारोबारी घाटे का मतलब है कि भारत ने चीन को जितना सामान बेचा उससे 76 अरब डॉलर ज्यादा का सामान चीन ने भारत को बेचा। सोचें, यह हमारी आत्मनिर्भरता और मेक इन इंडिया है? साल खत्म होते होते चीन के साथ कारोबार सवा सौ अरब डॉलर से ज्यादा होगा। व्यापार घाटा सौ अरब डॉलर के करीब पहुंच जाएगा। यह आर्थिक रूप से चीन का गुलाम होते जाना है।

भारत सरकार का दावा है कि देश खुले में शौच से मुक्त हो गया है! राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन को सफल बताने के लिए एक दिन अचानक पूरे देश को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया गया। देश के लोगों ने इस बात को अखबारों में पढ़ लिया। मगर लोग अपनी आंखों के सामने लोगों को खुले में शौच के लिए जाते देखते हैं लेकिन मानते हैं कि देश इससे मुक्त है!

एक जुमला है सबका साथ, सबका विकास। इसमें आधा सही है क्योंकि साथ सबका है परंतु विकास सिर्फ चुनिंदा लोगों का है। यदि सबके साथ से सबका विकास हो रहा है तो फिर एक व्यक्ति कैसे हर दिन 16 सौ करोड़ रुपए कमा रहा है और 80 करोड़ लोग पांच किलो अनाज पर पल रहे हैं? ऐसा कैसे हो सकता है कि देश के एक फीसदी अमीरों की संपत्ति में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है और बाकी आबादी महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी की मार झेल रही है? जब सबके साथ से सबका विकास है तो क्यों राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के नंबर दो पदाधिकारी को कहना पड़ा कि देश में आर्थिक असमानता बढ़ रही है और देश की एक फीसदी आबादी के पास 20 फीसदी राष्ट्रीय संसाधन हैं, जबकि 50 फीसदी आबादी के पास सिर्फ 13 फीसदी संसाधन हैं। देश में 20 करोड़ लोग गरीब हैं और 23 करोड़ लोग हर दिन सिर्फ 375 रुपए कमा रहे हैं।

ऐसे ही सबके विकास का मॉडल है। नोटबंदी से काला धन खत्म होना था, जाली नोट खत्म होने थे, आतंकवाद और नक्सलवाद की कमर टूटनी थी, डिजिटल अर्थव्यवस्था बननी थी लेकिन क्या ये सब हासिल है? देश में अब पहले से ज्यादा नकदी है और पिछले दिनों अकेले गुजरात से शुरू हुई एक कार्रवाई में तीन सौ करोड़ रुपए से ज्यादा के जाली नोट पकड़े गए हैं। काला धन विदेश से आना था और इतना आना था कि सबके खाते में 15-15 लाख रुपए आ जाते लेकिन धेला नहीं आया।

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