द्रौपदी मुर्मू क्या भाजपा की राष्ट्रपति?
द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति चुन ली गईं। वे देश की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं। यह पूरे देश के लिए गर्व की बात है और भारत के लोकतंत्र के लिए बेहद सम्मान की बात है कि साधारण पृष्ठभूमि से आने वाली सर्वाधिक वंचित समूह की एक महिला देश की प्रथम नागरिक बनी हैं। लेकिन भारतीय जनता पार्टी को यह समझना चाहिए कि वे पार्टी की राष्ट्रपति नहीं हैं। वे देश की राष्ट्रपति हैं। जब तक वे नहीं चुनी गई थीं तब तक वे भाजपा और एनडीए की प्रत्याशी थीं लेकिन अब वे देश की राष्ट्रपति हैं। राष्ट्रपति का पद प्रधानमंत्री की तरह राजनीतिक नहीं होता है कि प्रधानमंत्री देश का भी होता है और किसी दल का भी होता है लेकिन राष्ट्रपति किसी दल का नहीं होता है।
इस बुनियादी बात को निश्चित रूप से भाजपा के नेता भी जानते होंगे इसके बावजूद उन्होंने द्रौपदी मुर्मू की जीत पर जुलूस निकाल। यह हैरान करने वाली बात है। आजाद भारत के इतिहास में इससे पहले 14 राष्ट्रपति चुनाव हुए लेकिन किसी चुनाव के बाद जुलूस नहीं निकाला गया था। निगम पार्षद या विधायक, सांसद चुने जाने पर नेताओं के समर्थक जुलूस निकालते हैं। यह पहली बार हुआ कि राष्ट्रपति के चुनाव के बाद भाजपा ने जुलूस निकाला और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जुलूस का नेतृत्व किया।
इतना ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी ने देश के ऐसे एक लाख 30 हजार गांवों की पहचान की है, जहां आदिवासी आबादी अच्छी खासी संख्या में है या बहुलता में है। इन गांवों में द्रौपदी मुर्मू की जीत का जश्न मनाया जाएगा। भाजपा ने इसकी भी पहले से तैयारी कर रखी है और उसकी स्थानीय इकाइयों द्वारा इसका आयोजन किया जा रहा है। यह सही है कि भाजपा ने देश का पहला आदिवासी राष्ट्रपति बनाने की पहल की और द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया। लेकिन इसका श्रेय लेने के लिए इतना प्रदर्शन, जुलूस और जश्न कोई अच्छी परंपरा नहीं है। ऐसा लग रहा है कि भाजपा 2024 के चुनाव की तैयारियों में इस घटनाक्रम का इस्तेमाल करने के लिए इसका इतना ढिंढोरा पीट रही है।
सोचें, पिछली बार भाजपा की पहल पर ही देश के एक दलित राष्ट्रपति मिला था। लेकिन तब ऐसा कोई जुलूस नहीं निकाला गया था। यह सही है कि रामनाथ कोविंद पहले दलित राष्ट्रपति नहीं थे। उनसे पहले केआर नारायणन राष्ट्रपति रह चुके थे। इसके बावजूद भाजपा कोविंद की जीत पर जुलूस निकाल सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। तभी सवाल है कि इस बार ऐसा क्या बदल गया कि मुर्मू के चुनाव का देश भर में इतना प्रचार हो रहा है? ऐसा लग रहा है कि देश के दो आदिवासी बहुल राज्यों छत्तीसगढ़ और झारखंड के पिछले चुनाव नतीजों से आदिवासी वोट को लेकर भाजपा की चिंता बढ़ी है। इसलिए वह आदिवासी राष्ट्रपति बनाने का ढिंढोरा पीट रही है।