विकसित राज्य है केंद्र से नाराज!

देश में चलने वाली 24 घंटे की राजनीति और भाजपा की राजनीतिक मशीनरी की ओर से हर घंटे चलाए जाने वाले नए नैरेटिव के बीच देश में एक और बड़ी परिघटना घटित होती दिख रही है, जिसकी ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यह परिघटना है कि राजनीतिक संघवाद के बरक्स आर्थिक संघवाद की स्थापना का प्रयास। पिछले महीने 12 सितंबर को केरल की राजधानी तिरूवनंतपुरम में पांच राज्यों के वित्त मंत्रियों की एक बैठक हुई थी। यह बहुत अहम बैठक थी। इसमें दक्षिण भारत के चार राज्यों- मेजबान केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना के अलावा उत्तर भारत के एक राज्य पंजाब के वित्त मंत्री शामिल हुए।

पांचों वित्त मंत्रियों ने इस बात पर विचार किया कि कैसे केंद्रीय करों में राज्यों का हिस्सा कम होता जा रहा है और अलग अलग फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स का इस्तेमाल करके केंद्र सरकार ज्यादा पैसा अपने पास रख रही है। ध्यान रहे राज्यों की यह शिकायत पुरानी है। लेकिन पहली बार इतने व्यवस्थित तरीके से राज्यों के वित्त मंत्रियों ने बैठक करके इस पर विचार किया।

तिरूवनंतपुरम की बैठक में पांच राज्यों के वित्त मंत्रियों का यह प्रस्ताव था कि केंद्रीय करों में राजस्व के बंटवारे वाले पूल में राज्यों का हिस्सा मौजूदा 41 फीसदी से बढ़ा कर 50 फीसदी किया जाए। इसके अलावा ये राज्य यह भी चाहते हैं कि सरचार्ज और सेस के तौर पर केंद्र सरकार सीधे टैक्स वसूली करके अपने खजाने में नहीं भरे। इस प्रक्रिया को बंद करना होगा। असल में दक्षिण भारत के राज्यों सहित देश की तमाम विपक्षी पार्टियों के शासन वाले राज्यों की सरकारों की यह शिकायत है कि केंद्र सरकार सेस और सरचार्ज बढ़ाती जा रही है और उससे होने वाली कमाई अपने खजाने में भर रही है। ध्यान रहे चौदहवें वित्त आयोग ने राज्यों के बीच बंटने वाले राजस्व की सीमा 32 फीसदी से बढ़ा कर 41 फीसदी कर दी।

इससे राज्यों का राजस्व बढ़ना चाहिए था लेकिन उसके बाद से ही केंद्र सरकार ने राज्यों के बीच बंटने वाले राजस्व पूल में बढ़ोतरी रोक दी और सेस व सरचार्ज बढ़ा कर अपनी कमाई बढ़ा ली। राज्य चाहते हैं कि केंद्र इसमें बदलाव करे। सेस व सरचार्ज वसूल कर सीधे अपना खजाना नहीं भरे और राज्यों का हिस्सा 50 फीसदी करे। कर्नाटक के वित्त मंत्री कृष्णा बायरे गौड़ा ने सुझाव दिया कि सेस और सरचार्ज की पांच फीसदी की अधिकतम सीमा तय की जाए, जिससे ज्यादा केंद्र वसूली न कर सके।

पांचों वित्त मंत्रियों की दूसरी चिंता यह थी कि वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता में लगातार कमी आ रही है। यह सही है कि जीएसटी कौंसिल में राज्यों की भागीदारी है और जीएसटी के बारे में जो भी फैसला होता है वह कौंसिल में होता है। लेकिन उसकी अध्यक्ष केंद्रीय वित्त मंत्री हैं, वहां सरकार का बहुमत है और आमतौर पर कोई भी कमेटी या मंत्री समूह बनता है तो उसकी जिम्मेदारी भाजपा के ही किसी राज्य के वित्त मंत्री को मिलती है। राज्यों की एक बड़ी चिंता यह थी कि हर वित्त आयोग के साथ साथ राजस्व में उनका हिस्सा कम होता जा रहा है।

15वें वित्त आयोग ने राज्यों के हिस्सों में बड़ी कटौती की थी और तभी विपक्षी शासन वाले राज्यों का कहना है कि 16वें वित्त आयोग को अपनी सिफारिश में राज्यों का हिस्सा बढ़ाना चाहिए। तिरूवनंतपुरम की बैठक में तमिलनाडु ने कहा कि नौवें वित्त आयोग के समय केंद्रीय करों में उसका हिस्सा 7.93 फीसदी था, जो 15वें वित्त आयोग तक घट कर 4.07 फीसदी हो गया। इसी तरह कर्नाटक का हिस्सा 4.71 फीसदी था, जो 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद कम होकर 3.64 फीसदी रह गया। उसको लगता है कि सबसे बडा नुकसान उसे हुआ है। कर्नाटक सरकार का आकलन है कि एक लाख 87 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का कहना है कि 2016 के मुकाबले 2022 में केंद्रीय बजट का आकार दोगुना हो गया लेकिन कर्नाटक के आवंटन में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है।

तिरूवनंतपुरम की बैठक से एक दिन पहले यानी 11 सितंबर को कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस तरह की एक और बैठक का ऐलान किया। उन्होंने आठ राज्यों के मुख्यमंत्रियों को इस बात पर विचार के लिए आमंत्रित किया कि केंद्र सरकार करों का अन्यायपूर्ण वितरण कर रही है। उन्होंने तिरूवनंतपुरम की बैठक में हिस्सा लेने वाले चार राज्यों, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और पंजाब के अलावा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री को आमंत्रित किया। साथ ही तीन ऐसे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी आमंत्रित किया, जहां भाजपा की या उसकी सहयोगी पार्टियों की सरकार है। उन्होंने गुजरात, हरियाणा और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रित किया। कर्नाटक के अलावा आठ राज्यों का चयन इस आधार पर किया गया है कि केंद्रीय करों में उनका हिस्सा बड़ा होता है।

प्रति व्यक्ति उच्च जीएसडीपी वाले राज्यों को सिद्धारमैया ने आमंत्रित किया। उनका मानना है कि सहकारी संघवाद की भावना का पालन नहीं हो रहा है और प्रगतिशील राज्यों यानी जनसंख्या नियंत्रित करते हुए आर्थिक विकास दर बेहतर रखने वाले राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता कम होती जा रही है। उनका कहन है कि 16वें वित्त आयोग का कार्यकाल शुरू होने और उसकी मीटिंग्स से पहले वे चाहते हैं कि वित्त आयोग अपने कामकाज की दिशा में बदलाव करे और बेहतर राजस्व संग्रह और विकास को प्रोत्साहित करने के लिए काम करे।

पार्टी लाइन से अलग हट कर देश के ऐसे राज्य एक साथ आने की कोशिश कर रहे हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति बेहतर है, विकास दर बढ़िया है और जिन्होंने जनसंख्या बढ़ोतरी को नियंत्रित किया है। उनकी चिंता यह है कि आर्थिक स्वायत्तता लगातार कम होती जा रही है और ऊपर से राजनीतिक ताकत भी कम हो रही है। उनको इस बात की भी चिंता है कि केंद्र सरकार जनगणना के साथ अगर परिसीमन कराती है, जिसका आधार जनसंख्या को बनाया जाता है तो दक्षिण भारत के या देश भर के विकसित राज्यों को इसका नुकसान हो सकता है। उनकी राजनीतिक शक्ति और कम हो सकती है। तभी आर्थिक संघवाद के बहाने ये राज्य एकजुट होकर केंद्र सरकार और 16वें वित्त आयोग पर दबाव बनाना चाहते हैं।

केंद्र की शक्तियों को लेकर दक्षिण भारत के राज्यों की चिंता पुरानी है। 1967 में डीएमके नेता सीएन अन्नादुरै ने कहा था कि केंद्र में जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की सरकारों द्वारा शक्ति का केंद्रीकरण करने से संघवाद के सिद्धांत के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। उन्होंने कहा था कि संसाधनों पर नियंत्रण और उनके आवंटन में मनमानी से राज्यों का दर्जा केंद्र के अधीनस्थ ईकाई का हो गया है। वे चाहते थे कि केंद्र और राज्य के वित्तीय संबंधों पर विस्तार से चर्चा हो। इसी लाइन पर दक्षिण भारत के राज्यों को लग रहा है कि केंद्र सरकार उनका जायज हिस्सा नहीं दे रही है, उनके साथ भेदभाव हो रहा है, उनका हिस्सा रोका जा रहा है जिससे वे अपने लोगों की बेहतरी के लिए ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं।

तभी लोकसभा चुनावों से ठीक पहले कर्नाटक और तमिसलनाडु की सरकारों ने दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया और आरोप लगाया कि केंद्र सरकार उनके हिस्से का पैसा नहीं दे रही है, जबकि वे केंद्रीय पूल में सबसे ज्याद योगदान कर रहे हैं। कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने तो 18 हजार करोड़ रुपए के बकाए का आरोप लगाया और इसके लिए केंद्र को सुप्रीम कोर्ट में घसीटा।

केरल ने भी वित्तीय संकट के समय कर्ज लेने की सीमा बांधने के मामले में कोर्ट में अपील की। डीएमके सरकार ने चक्रवात आपदा फंड के 38 हजार करोड़ रुपए देने के मामले में सौतेला व्यवहार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील की। लेकिन इन राज्यों की मांग को देश तोड़ने की साजिश बताया जाने लगा। हालांकि ये राज्य सरकारें ऐसे आरोपों से बेपरवाह हैं। वे अपने राज्य के नागरिकों को इस भेदभाव के प्रति भरोसा दिलाने में कामयाब होंगे।

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