भ्रष्टाचार सिर्फ विपक्ष में है!

ऐसा लग रहा है कि देश का समूचा भ्रष्टाचार विपक्ष शासित राज्यों तक सिमट कर रह गया है। जहां भाजपा की सरकार है वहां रामराज्य आया हुआ है और अगर वहां कुछ भ्रष्टाचार होता भी है तो भी वह किसी नेता के द्वारा नहीं किया जाता है। नेता सिर्फ विपक्षी पार्टियों के भ्रष्ट हैं। इसलिए सिर्फ उन्हीं के खिलाफ कार्रवाई हो रही है। बाकी जगह सिस्टम की गड़बड़ी है, जिसे बिना जांच-पड़ताल या मुकदमा किए ही ठीक कर लिया जाता है। मिसाल के तौर पर उत्तर प्रदेश में सबसे अहम मंत्रालयों में से एक में गड़बड़ी की खबरें आईं तो मंत्री के ओएसडी सहित कुछ अधिकारियों के तबादले कर दिए गए। सोचें, क्या भ्रष्टाचार की सजा तबादला है?

इसी तरह उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री ने अपना इस्तीफा केंद्रीय गृह मंत्री को भेजा तो उसमें लिखा कि उनकी नहीं सुनी जा रही है और तबादलों में पैसे का खेल हो रहा है। फिर भी इस मामले में मुकदमा दर्ज करने या जांच की जरूरत नहीं समझी गई। महाराष्ट्र में भाजपा के दो नेताओं से जुड़े मुकदमों की जांच पुलिस कर रही थी लेकिन बीच में ही दोनों मामले सीबीआई को सौंप दिए गए तो उधर कर्नाटक में भ्रष्टाचार के मामले का सामना कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के मुकदमे पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी।

इसके उलट विपक्षी पार्टियों के शासन वाले राज्यों में या विपक्षी नेताओं को ऐसी राहत कहीं से नहीं मिल रही है। पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले की खबर आई तो अदालत ने सीबीआई जांच की मंजूरी दी और बाद में ईडी भी इसकी जांच में शामिल हो गई। अब राज्य सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ईडी की गिरफ्त में हैं। ऐसे ही झारखंड में मुख्यमंत्री के राजनीतिक प्रतिनिधि को और उससे पहले राज्य सरकार की एक वरिष्ठ अधिकारी को गिरफ्तार किया गया। मुख्यमंत्री और उनका पूरा परिवार जांच झेल रहा है। राजधानी दिल्ली में राज्य सरकार की बनाई आबकारी नीति की सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी गई है, जिससे राज्य के उप मुख्यमंत्री की गर्दन पर तलवार लटकी है।

कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला से रोज पूछताछ हो रही है तो केरल में भी मुख्यमंत्री के ऊपर सोने की तस्करी के मामले की तलवार लटकी है। कांग्रेस में सोनिया और राहुल गांधी सहित अनेक नेताओं की जांच चल रही है। ऐसा नहीं है कि विपक्षी नेता दूध के धुले हैं या उन्होंने कोई गड़बड़ी की है तो उसकी जांच नहीं होनी चाहिए। लेकिन जब सिर्फ उन्हीं की जांच होती है और सत्तारूढ़ दल के नेता जांच के दायरे से बाहर हो जाते हैं तो सवाल उठना लाजिमी है।

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