भाजपा के एजेंडे पर कांग्रेस की दुविधा
कांग्रेस पार्टी समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर दुविधा में है। इस पर विचार के लिए पार्टी के आला नेताओं की बैठक हुई थी, जिसमें किसी रणनीति पर सहमति नहीं बनी। यह बहुत कमाल की बात है कि भारतीय जनसंघ के जमाने से चले आ रहे भारतीय जनता पार्टी के जितने भी पुराने, महत्वपूर्ण और घोषित मुद्दे रहे हैं उन पर कांग्रेस पार्टी हमेशा दुविधा में रही है या असहज रही है। इस बात को ऐसे भी कह सकते हैं कि कांग्रेस ने कभी भी उन मुद्दों का खुल कर विरोध नहीं किया है। उलटे ऐसा भी हुआ है कि उन मुद्दों पर आगे बढ़ कर कांग्रेस नेताओं ने कहा है कि वे भी इस पर अमल करने जा रहे थे या उन्होंने ही इसकी पहल की थी। ध्यान रहे भारतीय जनसंघ और भाजपा के तीन कोर मुद्दे थे और आजादी के समय से चले आ रहे थे। इनमें पहला अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण का था। दूसरा, जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति का और तीसरा समान नागरिक संहिता का। यह जानना बहुत दिलचस्प है कि कांग्रेस ने इन तीनों मुद्दों का विरोध नहीं किया है, बल्कि दबी जुबान में समर्थन किया है। कांग्रेस ने ऐसा क्यों किया, इस पर चर्चा से पहले यह देखना दिलचस्प होगा कि इन मुद्दों पर कांग्रेस की क्या प्रतिक्रिया रही थी।
जब अयोध्या की विवादित जमीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और राम जन्मभूमि मंदिर बनने का रास्ता साफ हुआ तो कांग्रेस पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। कांग्रेस ने आधिकारिक बयान में कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करती है। उसने सभी समुदायों से संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और भाईचारे की भावना का पालन करने और शांति व सद्भाव बनाए रखने की अपील की। ऐसा इसलिए नहीं हुआ कि कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट का बहुत सम्मान करती है, बल्कि इसलिए हुआ क्योंकि यह राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील मुद्दा है और इसका विरोध करना कांग्रेस को व्यापक हिंदू समाज में अछूत बना सकता था। सो, बहुसंख्यक हिंदू समाज का ध्यान रखते हुए कांग्रेस ने फैसले का स्वागत किया। इतना ही नहीं कांग्रेस के नेताओं ने आगे बढ़ कर कहा कि राजीव गांधी के समय मंदिर का ताला खुला था और कांग्रेस ने हिंदुओं को पूजा का अधिकार दिलाया था। इस तरह कांग्रेस ने बहुत दयनीय सा प्रयास किया कि मंदिर निर्माण का श्रेय अकेले भाजपा और नरेंद्र मोदी को नहीं मिलने दिया जाए। हालांकि वह इसमें असफल रही।
इसके बाद आया जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त करने का फैसला। कांग्रेस ने शुरू में इसका विरोध किया लेकिन पार्टी के ही कई नेताओं ने पार्टी लाइन से अलग हट कर इसका समर्थन कर दिया। बाद में कांग्रेस ने भी इस मसले पर चुप्पी साध ली। कांग्रेस का विरोध सिर्फ जम्मू कश्मीर के बंटवारे और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने तक सीमित रह गया। अगस्त 2019 में जब केंद्र ने अनुच्छेद 370 समाप्त करने का फैसला किया तब गुलाम नबी आजाद राज्यसभा में कांग्रेस के नेता थे। उन्होंने इसे राज्य की जनता के साथ विश्वासघात बताया। लेकिन आज वे कहां हैं और अनुच्छेद 370 पर क्या कह रहे हैं वह सबको पता है। कांग्रेस के दूसरे बड़े नेता पी चिदंबरम ने इसका विरोध करते हुए सिर्फ इतना कहा कि अनुच्छेद 370 हटा कर सरकार उन ताकतों को हवा दे रही है, जिन्हें वह नियंत्रित नहीं कर पाएगी। कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी, दीपेंद्र हुड्डा, आचार्य प्रमोद आदि ने फैसले का समर्थन किया था। जब इस फैसले के बाद बकौल अमित शाह एक कंकड़ भी नहीं चला तो कांग्रेस पार्टी भी चुप हो गई। उलटे कांग्रेस के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से कहा कि पिछले 70 साल में जम्मू कश्मीर में कई कानूनी प्रावधान बदल गए हैं। कांग्रेस ने बताया कि अब वहां के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री नहीं कहा जाता है। कांग्रेस ने दावा किया कि वह भी धीरे धीरे अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को समाप्त कर रही थी, जबकि भाजपा सरकार ने एक झटके में उसे खत्म कर दिया। अब कांग्रेस अनुच्छेद 370 बहाली की बात नहीं करती है, बल्कि जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने और चुनाव की मांग करती है। इस मामले में भी कांग्रेस के समर्थन का कारण वहीं रहा, जो राम जन्मभूमि मंदिर के मामले में था।
अब तीसरा मामला समान नागरिक संहिता का है और कांग्रेस इसे लेकर भी दुविधा में है। उसको पता है कि राममंदिर और अनुच्छेद 370 की तरह समान नागरिक संहिता का मुद्दा भी देश के बहुसंख्यक हिंदुओं के दिमाग में दशकों से पकता रहा है और बहुसंख्यक हिंदू इस बात से सहमत हैं कि सबके लिए एक कानून होना चाहिए। उनको पता नहीं है कि विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेने और संपत्ति के बंटवारे का एक जैसा कानून होने से उनको क्या नफा-नुकसान है। लेकिन उनको समझाया गया है कि इससे मुसलमानों में बहुविवाह रूक जाएगा और फिर जनसंख्या नियंत्रण आसान हो जाएगा और फिर हिंदू सुरक्षित हो जाएंगे। अपने देश में उनके अल्पसंख्यक हो जाने का कथित खतरा समाप्त हो जाएगा। सो, इसका विरोध करना कांग्रेस के बहुसंख्यक हिंदू मतदाताओं की नजर में हिंदू विरोधी साबित करेगा। दूसरे, संविधान के अनुच्छेद 44 में नीति निदेशक तत्वों में समान नागरिक संहिता की बात कही गई है। इसलिए भी कांग्रेस के सामने यह दुविधा है कि उसके पूर्वजों ने जिसकी जरूरत बताई थी उसका विरोध कैसे करें?
सो, ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस इस मामले में भी राम जन्मभूमि मंदिर और अनुच्छेद 370 जैसे रवैया अपना सकती है। वह अगर खुल कर इसका समर्थन नहीं करती है तो ‘नरो वा कुंजरो’ किस्म का रुख अख्तियार कर सकती है। यानी दोनों तरह के मैसेज दे सकती है। वह बीच का रास्ता अख्तियार करते हुए इसका विरोध करने की बजाय ऐसे मुद्दों पर जोर देगी, जिससे सरकार असहज होगी और हिंदू समाज के एक बड़े वर्ग का समर्थन उसको मिलेगा। मिसाल के तौर पर संपत्ति के बंटवारे का मामला है। आदिवासी संस्कृति और मान्यताओं का मामला है। सिख समुदाय की संवेदनशीलता का मामला है। कुल मिला कर कांग्रेस इस मामले में सरकार का खुला विरोध करने की बजाय संभावित बिल की बारीकियों में जाएगी और उसके कुछ प्रावधानों का विरोध करेगी और इसे राजनीतिक एजेंडा बताएगी। पहले दोनों मुद्दों की तरह कांग्रेस के कुछ नेता इसका समर्थन भी करने लगे हैं। हिमाचल सरकार के मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने इसका समर्थन किया है। असल में ये तीनों मुद्दों ऐसे हैं, जिन पर कांग्रेस या कोई भी पार्टी खुल कर विरोध नहीं कर सकती है क्योंकि आजादी के बाद राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के प्रचार की वजह से व्यापक हिंदू समाज में इन्हें लेकर एक धारणा बनी हुई है। उस लोकप्रिय धारणा से अलग हट कर कोई भी लाइन लेना पार्टियों के लिए आत्मघाती होगा। कांग्रेस के सामने इस वजह से भी दुविधा है कि उसको अलग अलग राज्यों में चुनौती दे रही आम आदमी पार्टी ने इसका समर्थन किया और उसकी सहयोगी शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट ने भी इसका समर्थन किया है। नीतीश कुमार मीडिया के सवाल टाल रहे हैं लेकिन उनका रुख भी समर्थन का ही होगा। सो, कांग्रेस अलग थलग भी नहीं पड़ना चाहती है और न ओवैसी की लीग में शामिल होने का जोखिम ले सकती है।