विपक्ष में तालमेल से भाजपा की बदली रणनीति

ऐसा लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा और गठबंधन का फैसला करने की रणनीति बदल दी है। पहले कहा जा रहा था कि भाजपा उन तमाम सीटों पर फरवरी में उम्मीदवार घोषित कर देगी, जिन पर पिछल बार वह हारी थी या बहुत कम अंतर से जीती थी। भाजपा की हारी या कम अंतर से जीती सीटों के साथ उसे छोड़ गई सहयोगी पार्टी की सीटें जोड़ कर कोई 160 सीटों का आंकड़ा दिया जा रहा था, जिन पर बहुत जल्दी उम्मीदवारों की घोषणा होने की बात थी। लेकिन ऐसा लग रहा है कि भाजपा ने इन सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा टाल दी है। उसने सहयोगी पार्टियों के साथ सीटों का बंटवारा भी टाला हुआ है।

जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा विपक्षी पार्टियों का गठबंधन फाइनल होने और सीट बंटवारा होने का इंतजार कर रही है। ध्यान रहे कांग्रेस एक एक करके राज्यों में सीटों का बंटवारा फाइनल कर रही है। उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रे के बीच सीटों का फैसला हो गया है तो दिल्ली में भी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने अपनी अपनी सीटें तय कर ली हैं। तमिलनाडु में पहले ही सीटों का बंटवारा हो गया है तो बिहार में भी मोटा-मोटी सहमति बन गई है। महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में अभी वार्ता चल रही है। बताया जा रहा है कि भाजपा की नजर कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों पर है। वह विपक्षी पार्टिंयों के बीच सीट बंटवारे और उम्मीदवारों की सूची के आधार पर अपना फैसला करेगी।

यही कारण है कि भाजपा के सहयोगी नेता बेचैन हो रहे हैं। उनको समझ में नहीं आ रहा है कि हर बार जल्दी फैसला करने वाली भाजपा इस बार फैसला क्यों टाल रही है। बताया जा रहा है कि भाजपा कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के सामाजिक समीकरण के हिसाब से अपने गठबंधन सहयोगियों को सीटें देगी और उसी हिसाब से उम्मीदवार भी तय करेगी। अगर यह बात सही है तो संभव है कि भाजपा के उम्मीदवारों की पहली सूची में उन सीटों के नाम हों, जो भाजपा के लिए आसान हैं। जहां विपक्षी पार्टियां कमजोर हैं और भाजपा की जीत के ज्यादा मौके हैं उन सीटों पर पहले घोषणा हो सकती है। गौरतलब है कि पिछले साल के अंत में हुए राज्यों के चुनाव में भाजपा ने मुश्किल सीटों पर पहले उम्मीदवारों की घोषणा की थी और उसने मुश्किल सीटों पर अपने सबसे मजबूत उम्मीदवारों को उतारा था।

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