भाजपा का घोषणापत्र और वापसी का भरोसा

भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र से बहुत लोगों को निराशा हुई है। इसमें कोई फायरवर्क नहीं है। कोई धूम-धड़ाका नहीं है। चौंकाने वाला कोई बड़ा वादा नहीं है। मुफ्त की रेवड़ी वाली कोई नई घोषणा नहीं है। कांग्रेस का घोषणापत्र जारी होने के 10 दिन बाद जारी होने के बावजूद इसमें कांग्रेस के वादों का जवाब देने की इच्छा नहीं दिखती है। कोई भावनात्मक मुद्दा नहीं है। न एनआरसी का जिक्र है और न मथुरा, काशी की चर्चा है।

बड़े वादों में से एक समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी को दोहराया गया है। लेकिन इसे भी नया नहीं कहा जा सकता है क्योंकि भाजपा की उत्तराखंड सरकार ने इसे लागू कर दिया है और असम सरकार भी इसे लागू करने वाली है। इसलिए यह पहले से माना जा रहा था कि फिर से केंद्र में भाजपा की सरकार बनेगी तो वह इसे पूरे देश में लागू करेगी। सो, भाजपा का 78 पन्नों का घोषणापत्र देख कर कहा जा सकता है कि यह बहुत सीधा सपाट एक दस्तावेज है, जिसमें राजनीति कम और सरकारी कामकाज की झलक ज्यादा है।

ऐसा लग रहा है कि भाजपा ने जान-बूझकर इस तरह का दस्तावेज तैयार कराया है, जिससे आम लोगों में यह मैसेज जाए कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पहले से जो काम कर रही है उन्हें आगे भी जारी रखा जाएगा और घोषणापत्र में जो भी वादे किए गए हैं उनको पूरा किया जाएगा। लगातार 10 साल राज करने वाली पार्टी ऐसा तभी कर सकती है, जब उसको अपने किए गए काम के बारे में भरोसा हो।

उसको यकीन हो कि देश के आम लोग मान रहे हैं कि सरकार अच्छा काम कर रही है और इन कामों की निरंतरता बनाए रखने के लिए उसी सरकार का फिर से सत्ता में आना जरूरी है। सरकार के कामकाज के साथ साथ सत्तारूढ़ दल की राजनीति को लेकर भरोसा हो तभी इस किस्म की निरंतरता का आभास देने वाला घोषणापत्र बनता है। भाजपा को लग रहा है कि लोग उसकी राजनीति और सरकार के कामकाज से खुश हैं। इसलिए नया कुछ करने की जरुरत नहीं है।

भाजपा के घोषणापत्र को इस तरह से भी परिभाषित किया जा सकता है कि वह केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के कामकाज का ब्योरा है और उस कामकाज को जारी रखने का वादा है। प्रधानमंत्री गरीबों को पांच किलो अनाज देने की योजना को पांच साल तक बढ़ाने का ऐलान पिछले साल राज्यों के विधानसभा चुनावों के समय ही कर चुके हैं। उसे घोषणापत्र में शामिल किया गया है। इसी तरह लखपति दीदी बनाने की योजना पहले से चल रही है और उनकी संख्या बढ़ाने की घोषणा बजट में की गई थी। गरीबों के लिए घर बनाने की योजना भी पहले से चल रही है। उसकी संख्या बढ़ाने को कहा गया है। मुद्रा लोन की योजना पहले से चल रही है उसकी सीमा 10 से बढ़ा कर 20 लाख करने का वादा घोषणापत्र में है।

मुफ्त बिजली की जिस योजना का जिक्र इसमें किया गया है वह प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना भी इस साल फरवरी में शुरू हो चुकी है। किसानों को 22 फसलों पर एमएसपी मिलती है, जिसे जारी रखा जाएगा। बुलेट ट्रेन का पहला चरण चल रहा है, इसे और बढ़ाया जाएगा। सीएए लागू करने के नियम बन गए हैं, इसके तहत लोगों को नागरिकता मिलती रहेगी। मुफ्त इलाज की योजना भी पहले से चल ही रही है। ‘एक देश, एक चुनाव’ का वादा भाजपा ने घोषणापत्र में किया है। इस पर भी पहले से काम चल रहा है। सो, कुल मिला कर भाजपा के घोषणापत्र में नयापन नहीं है और न इसके जरिए कोई बड़ा राजनीतिक नैरेटिव सेट करने की कोशिश हुई है।

इसके बरक्स कांग्रेस का घोषणापत्र देखें तो उसने महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को अपने घोषणापत्र में भी मुद्दा बनाया है। खाली सरकारी पदों को भरने का वादा किया है और साथ ही एप्रेंटिसशिप की योजना घोषित की है, जिसके तहत 25 साल के कम उम्र के डिग्री या डिप्लोमाधारी युवाओं को हर साल एक लाख रुपए मिलेंगे। यानी पहली नौकरी की गारंटी दी है। स्वामीनाथन फॉर्मूले से फसलों की कीमत तय करने के बाद एमएसपी की कानूनी गारंटी का वादा किया है। जाति गणना कराने और आरक्षण की सीमा बढ़ाने का भी कांग्रेस ने वादा किया है।

महिलाओं के लिए नौकरियों में आरक्षण और सरकारी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा जैसी कई लोक लुभावन घोषणाएं की हैं। नीतिगत मामले में दलबदल रोकने का सख्त कानून बनाने और केंद्रीय एजेंसियों पर लगाम कसने का वादा भी किया है। कांग्रेस की सहयोगी राजद ने तो एक करोड़ सरकारी नौकरी देने, पुरानी पेंशन योजना लागू करने और हर गरीब महिला को एक एक लाख रुपए देने का वादा कर दिया है।

एक तरफ कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों की बड़ी बड़ी और लोक लुभावन घोषणाएं हैं तो दूसरी ओर भाजपा का सीधा सपाट संकल्प पत्र है, जिसे ‘मोदी की गारंटी’ नाम दिया गया है। भाजपा ऐसा मानती हुई प्रतीत हो रही है कि देश के लोगों को मोदी की गारंटी पर ज्यादा यकीन होगा, जबकि वे विपक्ष की घोषणाओं को सत्ता में आने की बेचैनी में की जाने वाली अनाप-शनाप घोषणा मानेंगे। धारणा के स्तर पर काफी हद तक यह बात सही है क्योंकि पिछले कई बरसों के प्रचार के जरिए विपक्ष की साख बहुत खराब कर दी गई है और यह धारणा बनाई गई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो कहते हैं उसे पूरा करते हैं।

इस बार चुनाव बड़ी लड़ाई इसी बात की है। विपक्ष यह साबित करना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री के वादे खोखले हैं और उन्होंने महंगाई नहीं रोकी, भ्रष्टाचार नहीं रोका, काला धन नहीं आया और लोगों के खाते में 15-15 लाख रुपए नहीं आए। दूसरी ओर भाजपा का दावा है कि अनुच्छेद 370 हटाने से लेकर राममंदिर के निर्माण तक और मुफ्त अनाज के जरिए गरीबों का जीवन आसान बनाने से लेकर भारत को विश्व गुरू बना कर विकसित बनाने के रास्ते पर लाने तक का काम नरेंद्र मोदी ने किया है। तभी भाजपा का मतदाताओं के नाम संदेश है कि अगर वे चाहते हैं कि ये काम जारी रहें और सारे मुश्किल काम मुमकिन होते रहें तो उन्हें मोदी को फिर से चुनना चाहिए।

राजनीतिक नजरिए से मतदाताओं के बीच मैसेज बनाने वाली जो एकमात्र बात है वह घोषणापत्र जारी करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कही। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में परिस्थितियां खराब हो रही हैं। उथलपुथल मची है और ऐसे समय में देश में एक स्थिर और मजबूत बहुमत वाली सरकार की जरुरत है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि इजराइल के ऊपर हमास और उसके बाद ईरान के हमले को देश के लोग देख रहे हैं और रूस व यूक्रेन युद्ध के बारे में भी लोगों को जानकारी है। युद्ध और अशांति के समय में आम लोगों की सोच हमेशा स्थिरता व स्थायित्व के पक्ष में होती है।

भाजपा के मुकाबले विपक्षी गठबंधन में विवाद है और विभाजन भी है। किसी पार्टी की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह अपने दम पर बहुमत के आसपास भी पहुंच सके। इसलिए मजबूत बहुमत वाली सरकार का भाजपा का दावा मतदाताओं को अपील कर सकता है। मोदी के मजबूत नेतृत्व का नैरेटिव भाजपा ने पहले से बनाया है। अंतरराष्ट्रीय हालात ने मजबूत बहुमत वाली सरकार के नैरेटिव को भी स्थापित किया है। तभी भाजपा वापसी के भरोसे में है और इसलिए उसने कोई बड़ा लोक लुभावन घोषणा करने या मुफ्त की रेवड़ी बांटने वाला वादा नहीं किया।

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