उच्च सदन में भाजपा के चेहरे
भारतीय जनता पार्टी संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा का चेहरा बदल रही है। पार्टी ने राज्यसभा के लिए जैसे नेताओं का चुनाव किया है वह पार्टी के लोगों को भी हैरान करने वाला है। इस बार भाजपा के 28 राज्यसभा सदस्य रिटायर हो रहे हैं लेकिन भाजपा ने सिर्फ चार सदस्यों को वापस उच्च सदन में भेजने का फैसला किया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव व एल मुरुगन और पार्टी के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी, इन चार के अलावा बाकी 24 को टिकट नहीं मिली है। कहा जा रहा है कि उनमें से कुछ लोगों को लोकसभा का चुनाव लड़ाया जाएगा। एक दर्जन ऐसे नाम हैं, जिनको लोकसभा की टिकट मिल सकती है लेकिन बाकी का क्या? क्या बाकी एक दर्जन लोगों का करियर समाप्त हो गया? यह कुछ समय बाद पता चलेगा।
आमतौर पर राज्यसभा में पार्टियों के बड़े और पुराने नेताओं को भेजा जाता है। बेहतर बौद्धिक क्षमता वाले नेताओं को उच्च सदन के लिए तरजीह दी जाती है। माना जाता है कि लोकसभा की कार्यवाही पर चेक एंड बैलेंस के लिए एक उच्च सदन जरूरी है। तभी उच्च सदन के लिए उम्र सीमा पांच साल ज्यादा रखी गई है। लोकसभा चुनाव लड़ने की उम्र 25 साल है लेकिन राज्यसभा में 30 साल से कम उम्र का व्यक्ति सदस्य नहीं हो सकता है।
उच्च सदन समाज और राजनीति की विविधता का भी प्रतिनिधित्व करने वाला सदन है। तभी वहां सिर्फ राजनीति से जुड़े लोग ही नहीं होते हैं, बल्कि जीवन के अलग अलग क्षेत्र में अच्छा काम करने और नाम बनाने वाले लोगों को उस सदन में भेजा जाता है। इसके उलट लोकसभा में जमीनी राजनीति करने वाले लोग बैठते हैं। ऐसा लग रहा है कि भाजपा का मौजूदा नेतृत्व राज्यसभा के खास चरित्र को बदलने के लिए पूरी मेहनत कर रही है।
भाजपा ने पहले भी राज्यसभा में ऐसे नेताओं को भेजा, जो राजनीति में ज्यादा जाने-पहचाने नहीं थे। किसी क्षेत्र विशेष से बाहर उनकी पहचान नहीं थी। राजनीति से अलग किसी खास क्षेत्र में भी कोई बड़ा काम करने का रिकॉर्ड नहीं था। इसका नतीजा यह हुआ है कि उच्च सदन, जो एक समय अच्छी चर्चाओं के लिए जाना जाता था वहां चर्चा की गुणवत्ता कम होती गई। पिछले दो तीन चुनावों से जिन लोगों को भाजपा ने उच्च सदन में भेजा उनमें से बहुत कम नेता चर्चाओं में हिस्सा लेते हैं और अगर हिस्सा लेते भी हैं तो उनका कोई सार्थक योगदान नहीं होता है। आमतौर पर पुराने और अनुभवी नेता ही चर्चा में हिस्सा लेते हैं।
इस बार भाजपा ने ऐसे पुराने और अनुभवी नेताओं की संख्या और कम कर दी। इसमें संदेह नहीं है कि भाजपा ने अपने जमीनी कार्यकर्ताओं को चुना है या मजबूत सामाजिक समीकरण को साधने का प्रयास किया है। लेकिन राज्यसभा इसका मंच नहीं है। इसे मास्टरस्ट्रोक बताया जा रहा है कि एक बार पार्षद रहे व्यक्ति को राज्यसभा भेजा गया या एक बार चुनाव लड़ने से इनकार करने वाले को भेजा गया या किसी खास इलाके में किसी खास जाति का प्रतिनिधित्व करने वाले को राज्यसभा की टिकट दी गई। लेकिन क्या इससे उच्च सदन में संवैधानिक, विधायी या अन्य मुद्दों पर चर्चा की गुणवत्ता बेहतर होगी?