आरोपों की शतरंज पर अशोक गहलोत और गजेंद्र सिंह शेखावत

जयपुर। राजस्थान की राजनीति में ‘संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव’ मामला ऐसा मुद्दा बन गया है, जो पिछले पांच सालों से पूर्व सीएम अशोक गहलोत और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की सियासत की धुरी बन चुका है। इसे एक ऐसी तलवार समझें, जो हर बार सियासी गले पर लटकाई जाती है, लेकिन कभी काटने का काम नहीं करती। दोनों नेता इस विवाद को अपने-अपने हिसाब से मोड़कर जनता की सहानुभूति और सुर्खियों में बने रहने की कला में माहिर हो चुके हैं।
शेखावत की ‘क्लीन चिट, गहलोत की नई चाल :
हाईकोर्ट से केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को मिली क्लीन चिट ने अशोक गहलोत को एक और मौका दे दिया अपनी जांच एजेंसियों की पारदर्शिता पर सवाल उठाने का। शेखावत ने जहां इसे अपनी जीत और गहलोत पर परोक्ष प्रहार के रूप में देखा, वहीं गहलोत ने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए नए सिरे से जांच की मांग उठा दी।
गहलोत का पलटवार :
जैसे ही शेखावत को कोर्ट से राहत मिली, गहलोत ने मौके को भांपते हुए तुरंत पलटवार किया। “एसओजी ने सत्ता बदलने के बाद केस की दिशा ही बदल दी!” गहलोत ने यह कहकर भाजपा सरकार पर आरोप लगाया कि जांच अधिकारी बदले गए, और सरकारी वकील भी शेखावत के पक्ष में खड़े हो गए। लेकिन दिलचस्प यह है कि गहलोत ने यह भी जोड़ा कि “हाईकोर्ट ने FIR रद्द नहीं की”, जो उनके पक्ष में एक मजबूत तीर की तरह काम कर सकता है।
एसओजी का यू-टर्न :
यह बात बिल्कुल वैसी है, जैसे किसी कहानी में नायक और खलनायक एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं, लेकिन अंत में कोई भी सजा नहीं पाता। एसओजी पर भाजपा सरकार द्वारा दबाव डालने का आरोप लगाते हुए, गहलोत ने केस की जांच में यू-टर्न का जिक्र किया। शेखावत के परिवार को दोषी ठहराने वाली रिपोर्ट पर आधारित जांच कैसे अचानक पलट गई? यह सवाल हर किसी के मन में उठता है, लेकिन शायद जवाब वही पुरानी सियासी जुगलबंदी में खो जाता है।
द्वेष या दायित्व :
गहलोत ने अपने खिलाफ आरोपों का जवाब देते हुए बड़ी शालीनता से कहा कि “मेरा गजेंद्र शेखावत से कोई निजी द्वेष नहीं है।” इसके साथ ही, उन्होंने शेखावत की स्वर्गीय माताजी के प्रति सम्मान भी व्यक्त किया, जो राजनीति की नाटकीयता को और अधिक गहराई देता है। यह एक ऐसा खेल है, जिसमें हर चाल के बाद नया मुद्दा उभरता है, लेकिन समाधान हमेशा धुंधला रहता है।

कुल मिलाकर, ‘संजीवनी’ घोटाला गहलोत और शेखावत की सियासत की संजीवनी बन चुका है। जनता के बीच न्याय और भ्रष्टाचार के सवाल सुलगते रहते हैं, जबकि नेता इन मुद्दों पर सवार होकर सुर्खियों में बने रहते हैं। अब जबकि गहलोत ने रिटायर्ड जज की निगरानी में जांच की मांग उठाई है, यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मामला किस ओर करवट लेता है—क्या वाकई सच्चाई सामने आएगी या यह सियासी खेल यूं ही चलता रहेगा?

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