अदानी को बचाना मजबूरी है!

हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट आने के बाद गौतम अदानी की कंपनी ने अपनी सफाई में जो कुछ कहा वह इस बात का संकेत था कि आगे यह कहानी क्या मोड़ लेने वाली है। अदानी समूह ने अमेरिका की सट्टेबाज कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट को ‘भारत और उसके स्वतंत्र संस्थानों पर एक हमला’ करार दिया था। अदानी समूह ने अपने जवाब में लिखा था, ‘ये सिर्फ किसी कंपनी विशेष पर अवांछित हमला नहीं है, बल्कि भारत और उसके संस्थानों की गुणवत्ता, ईमानदारी और स्वतंत्रता के साथ भारत की महत्वाकांक्षाओं और उसके विकास की कहानी पर नियोजित हमला है’। इस जवाब से भी दिलचस्प बात यह है कि भारत सरकार की ओर से या जिन संस्थानों का परोक्ष जिक्र अदानी समूह ने अपने जवाब में किया था, उनकी ओर से कोई स्पष्टीकरण जारी नहीं हुआ। सेबी, आरबीआई, डीआरआई या किसी अन्य संस्था ने यह नहीं कहा कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट उसकी गुणवत्ता, ईमानदारी और स्वतंत्रता पर हमला नहीं है। सबने चुप रह कर यह धारणा बनने दी कि सचमुच अमेरिका की सट्टेबाज कंपनी ने अदानी समूह के साथ साथ भारत की संस्थाओं को कठघरे में खड़ा किया है।

असल में यही वो पहलू है, जिसकी वजह से अदानी समूह को बचाना भारत सरकार और भारत की तमाम कथित स्वतंत्र, ईमानदार और गुणवत्तापूर्ण संस्थानों की मजबूरी हो गई है। अगर अदानी समूह नहीं बचा, उसकी कंपनी के शेयरों में तेजी से नहीं लौटी, शेयर बाजार में स्थिरता नहीं बहाल हुई और यह संदेश नहीं प्रचारित हुआ कि सब कुछ एक साजिश के तहत किया गया था ताकि भारत को और लगातार तीसरी बार विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता चुने गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाया जा सके तो सचमुच भारत और मोदी दोनों की पिछले नौ साल में गढ़ी गई छवि चकनाचूर हो जाएगी। हालांकि ऐसा नहीं है कि अभी उस छवि पर असर नहीं हुआ है लेकिन अभी उसमें सिर्फ दरार आई है, वह पूरी तरह से टूट कर बिखर नहीं गई है। भारत गाथा और ब्रांड मोदी दोनों को बचाने के लिए जरूरी है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर सवाल किया जाए और उस रिपोर्ट के आधार पर उसने जो नतीजे निकाले हैं, उसे गलत साबित किया जाए।

यह ध्यान रखने की जरूरत है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय यह अफोर्ड नहीं कर सकते हैं कि उनके और उनकी सरकार के ऊपर ‘फ्रॉड और फेल्योर’ के आरोप लगें। उन्होंने अपनी पूरी छवि इस धारणा पर बनाई है कि वे एक ऐसी सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसका सूत्र वाक्य ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ है। उनकी सरकार भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टालरेंस की नीति पर चलती है। यह धारणा उनको कांग्रेस की पिछली सरकारों या आजादी के बाद बनी किसी भी दूसरी सरकार से अलग करती है। उनकी छवि गढ़ने में ईमानदारी के बाद जिस दूसरी चीज का इस्तेमाल हुआ है वह है विकास गाथा। उन्होंने भारत की विकास गाथा को अपने तरीके से परिभाषित किया। वे बार बार दावा करते रहे कि आजादी के बाद भारत में बुनियादी ढांचे का विकास नहीं किया गया। यहां तक कि देश में शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा नहीं उपलब्ध कराई गई। अब उनकी सरकार सड़कें बनवा रही है, जिन गांवों में आज तक बिजली नहीं पहुंची वहां बिजली पहुंचा रही है, गांवों तक इंटरनेट की पहुंच सुनिश्चित की जा रही है आदि आदि। विकास की मोदी सरकार की इस अवधारणा और इसके प्रचार में ‘गुजरात मॉडल’ केंद्रीय तत्व है। गुजरात के विकास की कथित कहानी से नरेंद्र मोदी ने पूरे देश को मंत्रमुग्ध किया था।

तभी नरेंद्र मोदी यह अफोर्ड नहीं कर सकते हैं कि उनकी सरकार या सरकार की नियामक संस्थाओं पर भ्रष्टाचार या निकम्मेपन के आरोप लगें और विकास का उनका मॉडल विफल करार दिया जाए। वैसे भी यह समय बहुत नाजुक है। इस साल 10 राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं और अगले साल लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं। उससे ठीक पहले अगर यह साबित होता है कि सारी नियामक संस्थाएं भ्रष्ट या निकम्मी हैं और उनकी आंखों के सामने एक कंपनी ने तमाम तरह की गड़बड़ी, जिससे देश के बैंकों व वित्तीय संस्थाओं और आम लोगों को हजारों, लाखों करोड़ रुपए का नुकसान हुआ तो सरकार और भाजपा के लिए इसका जवाब देना मुश्किल होगा। अदानी समूह के फेल होने से गड़बड़ी प्रमाणित होगी और साथ ही यह भी प्रमाणित होगा कि नरेंद्र मोदी की सरकार के समय ‘कॉरपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला’ हुआ। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग छवि बिगड़ेगी। उस लिहाज से भी यह साल बहुत नाजुक है। अभी सारी दुनिया की नजर भारत पर है। भारत जी-20 देशों का अध्यक्ष है और सितंबर में इसका सालाना सम्मेलन नई दिल्ली में होना है। सरकार किसी हाल में नहीं चाहेगी कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट से इतना बड़ा इवेंट नकारात्मक रूप से प्रभावित हो।

ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा वाली छवि के साथ साथ दूसरी धारणा विकास की है। ध्यान रहे गौतम अदानी का विकास पहले गुजरात की विकास गाथा के साथ गुंथा हुआ था और पिछले नौ साल से भारत की विकास गाथा के साथ गुंथा हुआ है। भारत के जिस विकास गाथा को दुनिया के सामने पेश किया जा रहा है वह असल में अदानी समूह की विकास गाथा है। अदानी समूह ही पोर्ट से लेकर एयरपोर्ट तक, बिजली से लेकर कोयले तक और सड़क निर्माण से लेकर खाने-पीने की चीजों के उत्पादन तक भारत की विकास की कहानी का प्रतिनिधित्व कर रहा है। तभी यह अनायास नहीं है कि अदानी समूह के एफपीओ को बचाने के लिए उन्हीं की तरह समकालीन भारत की विकास यात्रा में शामिल कुछ और कंपनियां आगे आईं।

अगर अदानी समूह फेल होता है तो भारत की विकास गाथा के विलीन हो जाने का खतरा पैदा हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़े गर्व से दो बातें बताते हैं। एक, भारत पूरी दुनिया के विकास का इंजन है और दो, पूरी दुनिया के निवेश के लिए भारत सबसे आकर्षक गंतव्य है। अदानी समूह के जरिए विकास का जो मॉडल बना है वह बिखरा तो भारत को दुनिया के विकास का इंजन बताने का दावा भी धराशायी होगा और निवेश के बारे में तो भूल ही जाना होगा। ध्यान रहे अदानी समूह कोई शेयर कारोबार करने वाला समूह नहीं है। गौतम अदानी कोई हर्षद मेहता या केतन पारेख नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि वे कोई एक कारोबार करते हैं, जैसा सत्तर-अस्सी के दशक में धीरूभाई अंबानी करते थे या आज भी ज्यादातर कंपनियां करती हैं। वे बुनियादी रूप से भिन्न प्रकृति के एक दर्जन कारोबार करते हैं और उनमें से ज्यादातर में उनका एकाधिकार है। इसलिए उनकी विफलता को सिर्फ शेयर बाजार की गड़बड़ी नहीं माना जाएगा और न वह सिर्फ शेयर बाजार तक सीमित रहेगी। वह पूरे मॉडल की विफलता का प्रतीक बनेगी। गवर्नेंस और डेवलपमेंट दोनों का मॉडल विफल माना जाएगा। तभी वित्त मंत्री से लेकर वित्त सचिव और सेबी से लेकर आरबीआई और एलआईसी तक सबने बचाव में बयान दिया है। कह सकते हैं कि ईमानदार सरकार की धारणा बनाए रखने के लिए सरकार अदानी समूह की स्वतंत्र व वस्तुनिष्ठ जांच करा सकती थी और उससे तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी छवि मजबूत होती। लेकिन ध्यान रखें इस सरकार ने गलती नहीं मानने की नीति पहले दिन से अख्तियार कर रखी है। इसलिए वह गलती मानने की बजाय गलती हुई ही नहीं की नीति पर चलती रहेगी।

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