अंधेर नगरी , चौपट राजा ?

सहकारिता विभाग सहित कई विभाग भगवान भरोसे !

जयपुर।वर्तमान में अंधेर नगरी चौपट राजा कहावत राजस्थान पर पूर्ण रूप से चरितार्थ होती है, अंधेर नगरी ऐसी कि राजस्थान सरकार के सहकारिता विभाग में दो सीनियर एडिशनल रजिस्ट्रार और 6 एडिशनल रजिस्ट्रार उपलब्ध होने के बाद भी राजस्थान सरकार इस महत्वपूर्ण विभाग को अतिरिक्त कार्यभार देकर चला रही है, प्रमोटी आईएएस मेघराज रत्नू को वर्तमान में इस विभाग के अतिरिक्त राजफेड का कार्यभार दिया हुआ है, जबकि जगजाहिर के विशेष संवाददाता की तहकीकात में यह आया था कि मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना का लाभ लाभार्थियों को मिलने में हो रही देरी का असली जिम्मेदार कोई है तो वह प्रमोटी आईएएस मेघराज रत्नू है जिन्होंने राजस्थान सरकार की अन्नपूर्णा योजना में अनावश्यक कागजी कार्यवाही से देरी कर राजस्थान सरकार की थूं थूं तो करवाई ही, साथ ही सरकारिता विभाग को भी घाटा पहुंचाया।

राजस्थान में राजस्थान सहकारिता की अपेक्स संस्था कॉनफैड के पास स्वतंत्र प्रबंध निदेशक तक नहीं है इससे ज्यादा शर्मनाक बात सरकार के लिये और कोई नहीं हो सकती। कॉनफैड एमडी का अतिरिक्त चार्ज चार माह से कॉनफैड में नंबर 2 की पोजिशन रखने वाले ज्वाइंट रजिस्ट्रार को दे रखा है, जबकि कॉनफैड प्रबंध निदेशक का पद सीनियर एडिशनल रजिस्ट्रार के स्केल का है, जिस पर कम से कम एडिशनल रजिस्ट्रार की नियुक्ति होनी चाहिये। जबकि राजस्थान सरकार का यह कृत्य न्यायालय की अवमानना की श्रेणी में आता है, क्योंकि न्यायिक दृष्टांत जितेन्द्र प्रसाद बनाम राजस्थान सरकार प्रकरण में माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यह आदेशित किया है कि पद के अनुरूप पोस्टिंग दी जानी चाहिये और ज्वाइंट रजिस्ट्रार को पद के अनुरूप पोस्टिंग न देकर राजस्थान सरकार न्यायालय के आदेश की अवमानना कर रही है।

राजस्थान सहकारी शिक्षा एवं प्रबंध संस्थान राइसेम में भी पिछले 9 माह से से स्थाई निदेशक नहीं है, 9 माह का समय ऐसा समय है कि एक नया बच्चा जन्म ले लेता है, लेकिन राजस्थान सरकार अपने आदेशों से राइसेम के स्थाई निदेशक को जन्म देने में बुरी तरह से विफल रही। उस पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का तुर्रा यह है कि हमारी सरकार रीपिट होगी, क्या इन्हीं कृत्यों से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत यह आशा करते हैं कि उनकी सरकार रीपिट होगी। वर्तमान में सीनियर एडिशनल रजिस्ट्रार भोमाराम के पास निदेशक पद का अतिरिक्त कार्यभार है, जबकि वह राजस्थान राज्य सहकारी बैंक लिमिटेड में प्रबंध निदेशक के पद पर कार्यरत है।

इस साल सरकार द्वारा किसानों को 22 हजार करोड़ रूपये का ब्याजमुक्त अल्पकालीन फसली ऋण वितरण किया जाना है, जिसकी मॉनिटरिंग अपेक्स बैंक द्वारा की जाती है, राज्य सरकार की बजट घोषणा के तहत राजीविका योजना में तीन हजार करोड़ रूपये के गैर कृषि ऋण वितरण नोडल एजेंसी भी अपेक्स बैंक है, उधर सहकारिता विभाग का बड़ा एजेंडा सहकारी बैंकों में अधिकारियों, कर्मचारियों के रिक्त पदों पर भर्ती करना है, जिसे सहकारी भर्ती बोर्ड के माध्यम से पूरा किया जाना है। तीन सदस्यीय सहकारी भर्ती बोर्ड में सदस्य सचिव का जिम्मा भी राइसेम डायरेक्टर के कंधों पर है। क्या विभाग में अधिकारियों की कमी है जो राजस्थान सरकार मजबूर है ?

इसी तरह सहकारिता सेवा की वरिष्ठ अधिकारी श्रीमती गुंजन चौबे के पास , एडिशनल रजिस्ट्रार बैंकिंग का अतिरिक्त चार्ज है, एडिशनल रजिस्ट्रार प्रोसेसिंग जितेन्द्र प्रसाद के पास एडिशनल रजिस्ट्रार मार्केटिंग का अतिरिक्त चार्ज है। एडिशनल रजिस्ट्रार के कैडर में अनुसूचित जाति के एकमात्र अधिकारी राधेश्याम चौहान को प्राइम पोस्टिंग से वंचित कर राजस्थान राज्य सहकारी संघ में ही मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पद पर लगा रखा है। समग्र सहकारी विकास परियोजना प्रोजेक्ट बंद हो चुका है, फिर भी सीनियर एडिशनल रजिस्ट्रार शोभिता शर्मा को सरकार ने इस पद पर रोक रखा है, अजमेर में क्षेत्रीय अंकेक्षण अधिकारी रेणु अग्रवाल को लगा रखा है जो कि सीनियर एडिशनल रजिस्ट्रार है, अतिरिक्त रजिस्ट्रार उषा कपूर को क्षेत्रीय अंकेक्षण अधिकारी जयपुर लगा रखा है, ओमप्रकाश पारीक और इन्द्रराज मीणा को राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरेशन में खपा रखा है, आशुतोष भट्ट को प्रमोशन के बाद सरकार ने कैडर के अनुरूप पोस्टिंग नहीं दे रखी है , प्रदेश के कई सहकारी भंडारों में सहकारी निरीक्षकों को भी सरकार ने महाप्रबंधक लगा रखा है।

प्रदेश में अल्पकालीन सहकारी साख सुविधा की जिम्मेदारी निभाने वाले सात केन्द्रीय बैंकों में प्रबंध निदेशक का पद रिक्त हैं, विभागीय पदों के हाल बेहाल हैं, पूरे प्रदेश में एडिशनल रजिस्ट्रार अपील का एक ही पद है, जो कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह नगर जोधपुर में है, वो भी एडिशनल चार्ज के भरोसे है। आधा दर्जन से अधिक प्राथमिक सहकारी भूमि विकास बैंकों में सचिव के पद भी रिक्त हैं, जिनका अतिरिक्त चार्ज किसी दूसरे अधिकारी के पास है।

अशोक गहलोत को याद रखना चाहिये कि अधिकारियों और कर्मचारियों की नाराजगी से उनकी सरकार की करारी हार हुई थी, जिसका दर्द उन्हें आज तक है और जिस दर्द को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सार्वजनिक मंचों से भी व्यक्त कर चुके हैं, और वर्तमान में अशोक गहलोत पद के अनुरूप अधिकारियों को पोस्टिंग न देकर उनको दर्द ही दे रहे हैं और इन अधिकारियों और कर्मचारियों ने इस दर्द का गुस्सा विधानसभा चुनावों के दौरान निकाल लिया तो अशोक गहलोत को शायद इतना ज्यादा दर्द होगा जितना दर्द उन्हें सचिन पायलट ने भी नहीं दिया होगा, इसलिये मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अधिकारियों और कर्मचारियों का दर्द तुरंत कम करना चाहिये इसके लिये एक आदेश निकालना पड़ेगा जिसमें पद के अनुरूप पोस्टिंग दी जायेगी, ऐसा करके वह जितेन्द्र प्रसाद बनाम राजस्थान सरकार में माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय के पद के अनुरूप पोस्टिंग दिये जाने की पालना न करने पर न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही से भी बच जायेंगे और पीडि़त अधिकारियों, कर्मचारियों के दर्द के गुस्से से भी बच जायेंगे, वरना यह सारा दर्द जो दिया है, वह लौटकर भी आयेगा, सिर्फ विधानसभा के चुनाव परिणाम आने की देर है।

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