वसुंधरा सरकार में 90बी और गहलोत सरकार में 90ए चर्चित, दोनों धाराएं बनी धनलक्ष्मी
जयपुर। तत्कालीन वसुंधराराजे सरकार में धारा 90बी और इस बार अशोक गहलोत सरकार में धारा 90ए काफी चर्चित हैं। बल्कि यह कहा जा सकता है कि राजस्व अधिनियम से जुड़ी ये दोनों धाराएं नगरीय विकास एवं आवासन विभाग के अफसरों, दलालों और नेताओं के लिए पैसों वाला पेड़ साबित हुई हैं। रोचक तथ्य यह है कि वसुंधराराजे शासन में धारा 90बी से सबक लेते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले शासन में धारा 90-ए जोड़ी थी। दावा किया गया था कि इससे भ्रष्टाचार खत्म होगा। लेकिन, अब यह धारा 90ए भी दुधारू गाय साबित हो रही है।
सूत्रों के मुताबिक उदयपुर यूआईटी में जमीन कन्वर्जन के मामले में राज्य सरकार से अनुमति की जरूरत ही नहीं थी, तो फिर अनुमति क्यों मांगी गई। जबकि गहलोत सरकार ने जमीन कन्वर्जन के मामलों में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए धारा 90 बी को खत्म करके धारा 90ए जोड़ी थी। लेकिन, यह प्रयोग बेअसर रहा। क्योंकि आज भी आवेदकों से नगरीय निकाय और नगरीय विकास विभाग के प्रमुुख सचिव, संयुक्त सचिव और मंत्री के नाम पर दलालों द्वारा 5-5 लाख रुपए प्रति बीघा खुले आम मांगे जा रहे हैं। उदयपुर में हाल ही पकड़ा गया दलाल लोकेश जैन इसका ज्वलंत उदाहरण है।
रिमांड के दौरान दो दिन हुई पूछताछ से खुलासा हुआ कि लोकेश जैन के यूडीएच के प्रिंसिपल सेक्रेटी कुंजीलाल मीणा, संयुक्त सचिव मनीष गोयल और उदयपुर के मामलों को देखने वाले अधिकारी हरिमोहन मीणा से ही नहीं, बल्कि अन्य कई अधिकारी और कर्मचारियों से भी संबंध रहे। उसके मोबाइल की चेटिंग तथा वाट्सअप कॉल के सबूत मिले हैं। इनमें भूमि रूपान्तरण संबंधी जमीनों के दस्तावेजों की कॉपी एक-दूसरे को भेजी गई हैं। दलाल लोकेश जैन यूडीएच अधिकारियों से वाट्सएप के माध्यम से जुड़ा रहता था। जैसे ही कोई काम कराने के लिए उनके पास जाता, वह इन्हें जानकारी देता और रेट का पता लगते ही संबंधित व्यक्ति को बता देता। इसमें उसका कमीशन फिक्स था। उदयपुर नगर विकास प्रन्यास के अधिकारियों के साथ भी लोकेश संबंध बनाए हुए था। हालांकि जबसे लोकेश एसीबी पकड़ा गया तब से यूआईटी अधिकारी एवं कर्मचारी उसके संबंध में बात करने से किनारा कर रहे हैं।
आखिर धारा 90ए की जरूरत ही क्योंः
कृषि भूमि पर बसी कालोनियों के नियमन के लिए पहले 17 जून, 1999 को आधार बनाया गया था। इस परिपत्र को अब 25 साल हो गए हैं। धारा 90 ए में कृषि भूमि को अकृषि उपयोग बदलने का प्रावधान है। हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र और कई अन्य राज्यों में लैंड कन्वर्जन के लिए इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है। क्योंकि जब मास्टर प्लान में भूमि का उपयोग निर्धारित कर दिया है। तब कन्वर्जन चार्ज लेकर जमाबंदी में कंपनी अथवा कंपनी द्वारा आगे आवंटित किए गए व्यक्तियों, संस्थाओं अथवा हितधारियों के नाम राजस्व रिकार्ड में नामांतकरण दर्ज हो जाता है। वहां इसके लिए प्राधिकृत प्राधिकारी की जरूरत ही नहीं होती।
क्या गहलोत धारा 90 का खेल बंद कराएंगेः
राजस्थान ऐसा राज्य है, जहां प्राधिकृत प्राधिकारी द्वारा की जा रही धारा 90 ए की प्रक्रिया में खेल हो रहा है। इसमें प्राधिकृत प्राधिकारी, एटीपी, डीटीपी, संविदा पर रखे पटवारी, दलाल, प्राधिकरण, न्यास के सचिव औऱ राज्य सरकार में बड़े अफसरों तक पैसा बांटना पड़ रहा है। इसके लिए 5 लाख रुपए प्रति बीघा तक खुलेआम मांगे जा रहे हैं। यानि धारा 90 ए भी भ्रष्टाचार की दुधारू गाय बन चुकी है। शायद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस बात से वाकिफ नहीं हैं। जबकि उन्होंने पिछले कार्यकाल में धारा 90 बी को इसीलिए खत्म कराया था ताकि किसानों और भूखंडधारियों को राहत मिले।