भाजपा की बड़ी वापसी, कांग्रेस सीखे!
लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा को लेकर यह धारणा बनी थी कि अब भाजपा का ढलान शुरू हो गया है। वह देश की राजनीति में केंद्रीय ताकत तो बनी रहेगी, लेकिन 2014 में उसका जो अभियान शुरू हुआ था वह 2019 में शिखर पर पहुंच गया और अब वहां से उसका उतार शुरू हो गया है।
लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद हुए दो राज्यों, जम्मू कश्मीर और हरियाणा के विधानसभा चुनावों में जिस तरह से विपक्ष ने प्रचार किया और मतदान के बाद एक्जिट पोल के आंकड़ों में जैसे भाजपा के हारने और कांग्रेस गठबंधन के सफल होने की भविष्यवाणी की गई उससे भी यही संकेत निकल रहा था कि भाजपा अब कमजोर हो गई है।
भाजपा नेतृत्व की कमजोरी को लेकर अलग कहानियां प्रसारित हो रही थीं। कहा जा रहा था कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ अब भाजपा को टेकओवर करने वाला है और अब नरेंद्र मोदी की पसंद से नहीं, बल्कि संघ की पसंद से भाजपा का अध्यक्ष बनेगा। एक झटके में ये सारी धारणाएं हवा में विलीन हो गई हैं। जम्मू कश्मीर और हरियाणा के चुनाव नतीजों ने सब कुछ बदल दिया है। भाजपा लोकसभा चुनाव में हार के सदमे से बाहर आ गई है और निश्चित रूप से उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा होगा।
हरियाणा में तमाम अटकलों को गलत साबित करते हुए भाजपा ने चुनाव जीत लिया है। हरियाणा के इतिहास में पहली बार हुआ है कि कोई पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता में आई है। इससे पहले कभी कोई पार्टी लगातार तीन बार नहीं जीती थी। इस राजनीतिक इतिहास के साथ साथ और भी कई बातें ऐसी थीं, जिनसे लग रहा था कि भाजपा बैकफुट पर है। भाजपा ने मार्च में मुख्यमंत्री बदला था, जिससे लग रहा था कि मनोहर लाल खट्टर की करीब साढ़े नौ साल की सरकार के खिलाफ बहुत एंटी इन्कम्बैंसी है।
इसके बाद लोकसभा चुनाव हुए तो भाजपा 10 में से पांच सीटों पर हार गई। कांग्रेस जीरो से पांच सीट पर पहुंची, इससे भी कांग्रेस के आगे होने और भाजपा के पिछड़ने का मैसेज बना। चुनाव के दौरान भाजपा जीतने के लिए लड़ रही थी, जबकि कांग्रेस के नेता मुख्यमंत्री बनने के लिए लड़ रहे थे। कांग्रेस की जीत इतनी पक्की मानी जा रही थी कि पूरे चुनाव के दौरान इसका झगड़ा चलता रहा कि कौन मुख्यमंत्री बनेगा।
लोकप्रिय धारणा भाजपा के हारने की थी और भाजपा के प्रदेश के नेता भी बहुत आत्मविश्वास में नहीं दिख रहे थे। इसके बावजूद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व में पूरा दम लगाया। माइक्रो प्रबंधन में जान लगाई गई और सामाजिक समीकरण साधने के भरपूर प्रयास हुए। भाजपा के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूरा दम लगाया। भाजपा नेताओं ने दिखाया कि अगर बाजी हारती हुई दिख रही हो तब भी कैसे लड़ा जाता है। इससे भाजपा की राजनीति को बहुत दम मिलेगा। हरियाणा की बाजी पलट कर भाजपा ने महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव के लिए अपने कार्यकर्ताओं में नया जोश फूंक दिया है तो अपने समर्थकों का मनोबल भी ऊंचा कर दिया है। इस नतीजे का असर चार महीने बाद दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी दिखेगा।
हरियाणा के अलावा जम्मू कश्मीर का नतीजा भी भाजपा को बहुत निराश करने वाला नहीं है। उसने 29 सीटें जीती हैं। पिछली बार उसे 25 सीटें मिली थीं। वह तब की बात थी, जब नरेंद्र मोदी का जादू अपने चरम पर था। मई 2014 में उन्होंने केंद्र में सरकार बनाई थी और उसके बाद जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसमें भाजपा 25 सीटों के साथ दूसरे नंबर की पार्टी बनी थी।
इस बार भाजपा ने 29 सीटें जीती हैं। वह भले सरकार बनाने की स्थिति में नहीं आ पाई लेकिन उसने जम्मू क्षेत्र में इस चुनाव के पहले तक मजबूत मानी जा रही कांग्रेस को बहुत कमजोर कर दिया। कांग्रेस जम्मू कश्मीर में कुल छह सीटें जीत पाई है। फारूक और उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस अपने दम पर 41 सीट जीतने में कामयाब हुई है। ध्यान रहे पिछली बार एक दूसरी प्रादेशिक पार्टी पीडीपी 28 सीट के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी। इस बार नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी है। भाजपा ने अपनी पोजिशन बचाए रखी है।
विधानसभा के इन दोनों नतीजों का बड़ा असर होने वाला है। इसका असर भाजपा की अंदरूनी राजनीति पर होगा तो साथ ही संघ और भाजपा के संबंधों पर भी होगा। लोकसभा चुनाव के बाद संघ प्रमुख से लेकर भाजपा के विचारकों की ओर से जो मोदी को लेकर जो तंज किए जा रहे थे उनमें निश्चित रूप से कमी आएगी। अगले महीने दो और राज्यों, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं उन राज्यों में भी इन नतीजों का असर दिखेगा।
भाजपा को इन दोनों राज्यों में एक नया मंत्र मिल गया है और वह ये है कि अगर कोई ग्रैंड थीम नहीं हो या कोई बड़ी कहानी नहीं हो तो नैरेटिव बनाने की बजाय किस तरह माइक्रो प्रबंधन से चुनाव जीता जाता है। भाजपा ने हरियाणा में बाजी पलटने के लिए जमीनी स्तर पर जबरदस्त प्रबंधन किया और इसके साथ साथ अपना सामाजिक समीकरण भी बड़ा किया है। इसका इस्तेमाल वह आगे के चुनावों में भी करेगी।
हरियाणा का चुनाव नतीजा कांग्रेस के लिए चिंता की बात होनी चाहिए क्योंकि हरियाणा में जितनी सकारात्मक स्थितियां कांग्रेस के लिए थी उतनी और कहीं नहीं मिल सकती है। हरियाणा में उसके लिए परफेक्ट पिच थी। वहां की राजनीति तय करने वाले तीन समूह हैं। जवान, किसान और पहलवान ये तीन समूह हरियाणा की राजनीति को सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं और इन तीनों समूहों में भाजपा बदनाम थी। ये तीनों समूह कांग्रेस की मदद करते दिख रहे थे। इसके बावजूद कांग्रेस चुनाव नहीं जीत सकी। कांग्रेस के लिए यह आत्मचिंतन करने का समय है। आगे के चुनाव इससे कठिन होंगे। जब वह इतनी आसान लड़ाई नहीं जीत पाई तो आगे की लड़ाइयों में क्या होगा?