नैरेटिव में चुभा कांटा

पहले केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी ने आरएसएस के एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि भारत गरीब लोगों का धनी देश बनता जा रहा है। बाद में उन्होंने इस सफाई दी कि उनकी इस बात को मीडिया में गलत ढंग से पेश किया गया है। बहरहाल, उनके बाद आरएसएस के महासचिव दत्तात्रय होसबोले लगभग वही बातें दोहरा दीं। कहा कि देश ने हाल के वर्षों में कई मोर्चों पर उल्लेखनीय सफलताएं हासिल की हैं, लेकिन उसके साथ गरीब ज्यादा गरीब हुए हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में स्थिति दयनीय है। तेजी से बढ़ रही आर्थिक गैर-बराबरी का भी उन्होंने जिक्र किया। कांग्रेस ने दावा किया है कि ये बयान उसकी भारत जोड़ो यात्रा का परिणाम हैं। यात्रा ने ऐसे बुनियादी सवालों को राष्ट्रीय एजेंडे पर सर्वप्रमुख बना दिया है। बहरहाल, यह भारत जोड़ो यात्रा का परिणाम हो या नहीं, इससे यह तो जरूर जाहिर हुआ है कि सत्ता के बेहद करीब मौजूद व्यक्ति भी देश की असलियत को समझ रहे हैँ। समझ वे पहले भी रहे होंगे, लेकिन अब उन्होंने चाहे वजह जो हो, लेकिन अब सार्वजनिक रूप से उसे कहने की जरूरत महसूस की है। ये वो बातें हैं, जो वर्तमान सरकार के नैरेटिव में छेद करती हैं।

वर्तमान सरकार की सारी राजनीतिक पूंजी ही ही आपदा में अवसर दिखा पाने की उसकी क्षमता पर निर्भर है। ऐसे में अगर सत्ता के करीबी लोग ही आपदा से हुए विनाश पर ध्यान खींचने लगें, तो यह बड़े बदलाव का कारण बन सकता है। वर्तमान सरकार ने हेडलाइन मैनेजमेंट की क्षमता के जरिए अब अपने समर्थकों के बीच खुशफहमी बनाए रखी है। गड़करी और होसबोले के बयान उस गुब्बारे में छेद करने वाले हैँ। संभवतः इसीलिए गड़करी पर स्पष्टीकरण जारी करने का दबाव बना होगा, वरना, वे वीडियो क्लिप में जो बोलते सुने गए, उसमें किसी गलतफहमी की गुंजाइश नहीं थी। वैसे राहुल गांधी को इस बात का श्रेय जरूर दिया जाना चाहिए कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान मूलभूत मुद्दों को उन्होंने विमर्श के केंद्र में रखा है। उनके पास इन समस्याओं का कोई समाधान है, यह सामने नहीं आया है। इसके बावजूद ऐसे मुद्दों को चर्चा में लाने में उनकी एक भूमिका है, इसे स्वीकार किया जाना चाहिए।

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