2023 के विधानसभा चुनाव की शतरंजी चाल चलेंगे अशोक गहलोत और सतीश पूनियां
दीपेन्द्र सिंह नरूका
14 मई 2022 शनिवार का दिन, राजनीति की क़िताब के पन्नों पर कुछ ऐसा दर्ज़ करा गया, जिसके मायने निकाले जाएं तो 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तस्वीर साफ़ देखी जा सकती है। इस दिन की बड़ी घटनाओं ने, ना सिर्फ चुनावी तस्वीर पर जमी धूल को हटा दिया है, बल्कि राजनीति के दिग्गज़ों के माथे पर बल भी ला दिया है। पहली घटना का साक्षी बना झीलों की नगरी वाला शहर उदयपुर, तो दूसरी घटना को देश की राजधानी दिल्ली ने अपने में समेटा।
पहले बात करेंगे सूबे के मुखिया और कांग्रेस आलाकमान के सबसे विश्वसनीय और ख़ास नेताओं में शुमार अशोक गहलोत की। लेक सिटी उदयपुर में कांग्रेस का तीन दिवसीय नव संकल्प चिंतन शिविर चल रहा है। चिंतन शिविर में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की मौजूदगी तो है ही, साथ ही कांग्रेसी नेताओं का जमावड़ा लगा है। पार्टी को नई दिशा देने से लेकर कैसे इसमें मज़बूती लाई जाए, इन सब विषयों पर विचार रखे जा रहे हैं। चिंतन शिविर में यह सब होना तो आम बात है लेकिन जो बात आम नहीं है, उस पर ग़ौर फ़रमाना तो बनता है।
देश की सबसे पुरानी पार्टी का चिंतन शिविर उदयपुर में आयोजित करवाकर, अशोक गहलोत ने एक तीर से ना सिर्फ कई निशाने साधे, बल्कि यह भी साबित करवा दिया कि चाहे कोई दिल्ली के कितने भी चक्कर लगा ले, यहाँ की राजनीति के असली बादशाह वे ही हैं। कांग्रेस के चिंतन शिविर के लिए, और राज्यों के मुकाबले राजस्थान का चुना जाना, साफ़ दर्शा रहा है कि यहाँ पार्टी की कमान भले ही किसी के भी हाथ में हो, उसे चलाने का रिमोट सिर्फ़ और सिर्फ़ गहलोत के हाथों में ही है। दूसरे शब्दों में कहें तो 2023 के विधानसभा चुनाव में, कांग्रेस पार्टी की पतंग की डोर गहलोत के हाथों में ही रहेगी। यानि किस पतंग को ढील देना है, किसे काटना और किसे उतारना, ये सब गहलोत ही तय करेंगे।
अब बात राजस्थान में विपक्ष की ज़िम्मेदारी संभाल रही भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां की। जनता से जुड़े मुद्दे उठाने की बात हो या सरकार की गलत नीतियों का विरोध करना, विपक्ष समय-समय पर उपस्थिति दर्ज़ करवाकर अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने का दायित्व पूरा करने में जी-जान से जुटा है। और होना भी यही चाहिए। आख़िर, विपक्ष शायद इसीलिए ही होता है।
राजस्थान में विपक्षी दल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां, अपनी ज़िम्मेदारी को संभालने के साथ-साथ और भी बहुत कुछ, संभाल भी रहे हैं और देख भी। तीर इनका भी एक ही है लेकिन निशाने कई। और शायद, आज की घटना के बाद, उनके तीर ने एक निशाना तो साध ही लिया।
14 मई 2022, शनिवार को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ प्रधानमंत्री आवास पर मुलाकात की। पूनियां, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं। केन्द्र में उनकी पार्टी की ही सरकार है, लिहाज़ा प्रधानमंत्री से मिलना कौन सी बड़ी बात हो गई।
दरअसल बात सिर्फ़ बड़ी ही नहीं, महत्वपूर्ण भी है। क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी को जानने वाले, यह अच्छी तरह से जानते होंगे कि वे बिना बात, बिना मतलब और बिना कारण के किसी से नहीं मिलते। प्रधानमंत्री आवास पर हुई इस मुलाकात में प्रधानमंत्री मोदी ने पूनियां से राजस्थान के संगठनात्मक, जनहित के विषयों और राजनैतिक हालात पर ना सिर्फ़ चर्चा की, बल्कि उन्हें मार्गदर्शन भी दिया।
राजनीति के माहिर खिलाड़ियों के लिए, इस मुलाकात के मायने समझना कोई टेढ़ी खीर नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पूनियां को मार्गदर्शन प्राप्त करने का अर्थ निकाला जाए तो यही समझ आता है कि 2023 के चुनावी रथ के सारथी, भाजपा के लिए डॉ. सतीश पूनियां ही होंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो किसे रथ पर बिठाना है, किसे उतारना और किसे मंज़िल तक पहुँचाना, ये सब पूनियां ही तय करेंगे।
कांग्रेस में अशोक गहलोत और भाजपा में सतीश पूनियां, दोनों दिग्गजों ने यह दर्शा दिया है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में, अपनी-अपनी पार्टी के लिए उनकी भूमिका, ना सिर्फ़ बड़ी होगी, बल्कि महत्वपूर्ण भी होगी। कहते हैं, समय बड़ा बलवान होता है और फ़िलहाल, समय गहलोत और पूनियां के पक्ष में चल रहा है। लिहाज़ा, यह कहा जा सकता है कि 2023 के विधानसभा चुनावी शतरंज के खेल में, अशोक गहलोत और सतीश पूनियां अपनी चालें चलते नज़र आएंगे।