हर शिविर में एक ही चिंतन

कांग्रेस पार्टी एक और चिंतन शिविर के लिए तैयार है। राजस्थान के उदयपुर में 13 से 15 मई तक तीन दिन कांग्रेस पार्टी के नेता चिंतन करेंगे। सोनिया गांधी की बनाई छह इम्पावर्ड कमेटियों ने अपनी तरफ से चिंतन का एजेंडा तैयार कर लिया है। इस एजेंडे को देख कर लगता है कि सोनिया गांधी की कमान में कांग्रेस पार्टी पिछले 24 साल से एक ही जगह पर खड़ी होकर कदमताल कर रही है। आगे ही नहीं बढ़ रही है। 24 साल पहले भी कांग्रेस पार्टी इस बात पर चिंतन कर रही थी कि दूसरी पार्टियों से गठबंधन किया जाए या नहीं किया जाए और किया जाए तो कैसे किया जाए और आज भी इसी पर चिंतन हो रहा है।

पचमढ़ी से लेकर शिमला और फिर जयपुर से लेकर उदयपुर के बीच क्या बदला है? सितंबर 1998 में हुए पचमढ़ी सम्मेलन में सोनिया गांधी ने कहा था देश में गठबंधन की राजनीति का दौर चल रहा है और कांग्रेस में कई तरह से गिरावट नजर आ रही है। सोचें, इसके लिए चिंतन शिविर की क्या जरूरत थी? उस समय तक केंद्र में लगातार पांचवीं गठबंधन की सरकार बन चुकी थी। 1989 से 1998 के बीच पांच सरकारें बनीं थीं और छह प्रधानमंत्री बने थे। बहरहाल, पचमढ़ी के बाद 2003 में कांग्रेस ने शिमला सम्मेलन में भी गठंबधन को लेकर चिंतन किया। कई ‘जानकार’ बताते हैं कि उस समय गठबंधन का फैसला हुआ और कांग्रेस 2004 में चुनाव जीत गई।

हकीकत यह है कि 2004 में एकाध राज्यों के गठबंधन को छोड़ दें तो कांग्रेस लगभग अकेले ही लड़ी थी और चुनाव के बाद भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस की कमान में यूपीए का गठन हुआ था। इसके बाद 2013 में जयपुर में भी गठबंधन पर चर्चा हुई और अब फिर उदयपुर में भी इस पर चर्चा होगी। सोचें, इससे पहले बिना चिंतन किए ही कांग्रेस गठबंधन की राजनीति करती थी। कांग्रेस ने पहला गठबंधन साठ के दशक में केरल में किया था, जिसका नाम था यूनाइटेड फ्रंट। बाद में अस्सी के दशक के शुरू में इसका नाम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी यूडीएफ रखा गया। कांग्रेस ने केरल में एक दर्जन चुनाव गठबंधन करके लड़ा है और अनेक बार सरकार भी बना चुकी है।

अगर कांग्रेस के अपने अनुभव की बात न करें तब भी कांग्रेस गवाह रही है कि उसे हराने के लिए देश में कितनी बार गैर कांग्रेसी मोर्चा बना है और कितनी बार अलग अलग पार्टियों ने इकट्ठा होकर उसके खिलाफ चुनाव लड़ा है और जीते भी हैं। यानी देश में गठबंधन की राजनीति का दौर शुरू होने से काफी पहले राज्यों में यह सफल प्रयोग होता रहा है। इसलिए कांग्रेस को इस पर चिंतन करने की जरूरत नहीं है। जरूरत एक अच्छे और मजबूत गठबंधन की है, जो तभी होगा, जब कांग्रेस अपनी कमजोरी को समझेगी और दूसरी पार्टियों के हितों को भी महत्व देगी।

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