सैन्य सुधार में कारगर अग्निपथ?
सेना में जवानों की बहाली के लिए बनाई गई अग्निपथ योजना पर दो अतिरेक वाले विचार हैं। जैसा इस सरकार की हर योजना के मामले में होता है- एक पक्ष इसका खुल कर समर्थन कर रहा है तो दूसरा पक्ष इसे पूरी तरह से खारिज कर रहा है। कोई मिडिल ग्राउंड नहीं दिख रहा है। लेकिन इसका समर्थन करने या इसे खारिज करने से पहले इस बात की प्रतीक्षा की जानी चाहिए कि यह योजना किस तरह से लागू होती है, देश का नौजवान इस पर कैसी प्रतिक्रिया देता है, सेना में पहले बैच की बहाली के बाद क्या माहौल होता है, इससे देश की सामरिक स्थिति कैसे प्रभावित होती है और सबसे ऊपर यह कि इससे सेना का बजट कैसे प्रभावित होता है।
हालांकि इस योजना की घोषणा करते हुए एक सवाल के जवाब में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि उनकी सरकार सेना के मामले में पैसे का ध्यान नहीं रखती है। उनके कहने का मतलब यह था कि इस योजना का मकसद सैनिकों के वेतन, भत्ते और पेंशन में होने वाले खर्च को कम करना नहीं है। हालांकि इस योजना का सैनिकों के वेतन, भत्ते और पेंशन पर बड़ा असर होगा। सरकार को इस मद में बड़ी बचत होगी, जिसका इस्तेमाल सेना के आधुनिकीकरण में किया जा सकेगा। ध्यान रहे सेना के लिए आवंटित कुल बजट में आधे से ज्यादा हिस्सा सैनिकों के वेतन, भत्ते और पेंशन पर खर्च होता है। पिछले वित्त वर्ष के चार लाख 78 हजार करोड़ रुपए के रक्षा बजट में 2.55 लाख करोड़ रुपए वेतन, भत्ते और पेंशन के मद में खर्च हो गए, जबकि सैन्य तैयारियों और आधुनिकीकरण के लिए 2.38 लाख करोड़ रुपए बचे।
एक आकलन के मुताबिक अगर अग्निपथ योजना सही तरीके से लागू होती है और सेना में नियुक्ति का स्थायी तरीका बनती है तो एक सैनिक के पूरे कार्यकाल और उसके जीवन पर होने वाले सरकारी खर्च में साढ़े 11 करोड़ रुपए की बचत होगी। यह आकलन 17 साल तक सेवा की मौजूदा व्यवस्था बनाम चार साल की अग्निपथ योजना के आधार पर किया गया है। जाहिर है एक सैनिक पर साढ़े 11 करोड़ रुपए की बचत बहुत बड़ी है। ध्यान रहे भारत की तीनों सेनाओं को मिला कर 13 लाख सैनिक हैं। सो, भले सरकार और रक्षा मंत्री कुछ भी कहें लेकिन अग्निपथ योजना लागू होने का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि स्थापना पर खर्च होने वाली रकम में बड़ी कमी आएगी। इसका इस्तेमाल सेना के लिए आधुनिक तकनीक, हथियार, युद्धपोत, लड़ाकू विमान आदि खरीदने में होगा।
अग्निपथ योजना के तहत बहाली के लिए न्यूनतम उम्र सीमा साढ़े 17 साल तय की गई है। इसके बाद सैनिक का कार्यकाल चार साल का होगा, जिसमें छह महीने की प्रशिक्षण अवधि भी शामिल है। इस चार साल की अवधि में सैनिकों को 12 लाख रुपए के करीब वेतन के मद में मिलेंगे। इसमें से 30 फीसदी हिस्सा सेवा निधि में डाला जाएगा और उतने ही रुपए सरकार भी उस निधि में डालेगी। इससे चार साल बाद रिटायर होने पर हर जवान को करीब 12 लाख रुपए मिलेंगे। सोचें, जिस उम्र में आजकल युवाओं की पढ़ाई पूरी होती है और वे नौकरी की तलाश में निकलते हैं, उस उम्र में अगर वे सेना में चार साल प्रशिक्षण और सैन्य ड्यूटी निभा कर रिटायर हो रहे हैं और उनके हाथ में अच्छी खासी रकम होती है तो वह उनके लिए कितनी उपयोगी हो सकती है! उनके सामने पूरा जीवन होगा, जिसे वे अपनी पसंद से दिशा दे सकते हैं। चार साल की नौकरी के दौरान सरकार उनका 48 लाख रुपए का जीवन बीमा भी कराएगी और सेवा के दौरान शहीद होने पर 44 लाख रुपए की अनुग्रह राशि अलग से मिलेगी। सौ फीसदी विकलांगता के लिए भी 44 लाख रुपए की अनुग्रह राशि तय की गई है।
दूसरी ओर इस योजना से सेना में सैनिकों की औसत आयु मौजूदा 32 साल से घट कर अगले छह-सात साल में 26 साल तक आ जाएगी। यानी भारतीय सेना का स्वरूप पूरी तरह से बदल जाएगा। वह युवाओं की फौज होगी, जिसको आधुनिक प्रशिक्षण मिला होगा। वे आधुनिक तकनीक और हथियारों से लैस होंगे। ध्यान रहे दुनिया भर के देशों में इन दिनों सैन्य सुधार चल रहे हैं। सैन्य सुधार में मुख्य रूप से इस बात पर जोर है कि सैनिकों की संख्या कम की जाए और उसे आधुनिक तकनीक व हथियारों से लैस किया जाए। सबको पता है कि भविष्य की लड़ाई आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से लड़ी जाएगी, साइबर स्पेस में लड़ी जाएगी, रोबोटिक सैनिकों और स्वचालित हथियारों से लड़ी जाएगी। निगरानी और पेट्रोलिंग का काम स्पेस बेस्ड इंटेलीजेंस सर्विलांस सिस्टम से किया जाएगा। इस हकीकत को समझते हुए चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी चीनी सेना ने सैनिकों की संख्या 45 लाख से घटा कर 20 लाख कर दी है और दूसरी ओर आधुनिक उपकरणों पर खर्च बढ़ा दिया है। दुनिया भर की बड़ी सैन्य ताकतें अपने यहां इस तरह के बदलाव कर रही हैं।
इस योजना के तहत हर बैच के 25 फीसदी सैनिकों को सेना में स्थायी जगह मिलेगी। इसका मतलब है कि चार साल के प्रशिक्षण और सैन्य सेवा में जो सबसे अच्छे होंगे उन्हें सेना में ही रखा जाएगा। इससे अंततः सेना की ताकत बढ़ेगी। इसलिए यह आलोचना बहुत दमदार नहीं है कि चार-चार साल की सेवा के लिए बहाली से सेना कमजोर होगी। अब रही बात इस योजना पर उठाए जा रहे सवालों की तो दो-तीन सवाल मुख्य हैं। जैसे पहला सवाल है कि चार साल की सेवा के बाद 22-23 साल के जो युवा बेरोजगार होंगे वे क्या करेंगे? वे कुछ भी कर सकते हैं। बेरोजगार होने से पहले उनके पास चार साल का अनुभव होगा, सेना का प्रशिक्षण होगा और एक निश्चित रकम भी हाथ में होगी। वे स्वरोजगार कर सकते हैं या आगे की पढ़ाई कर सकते हैं या दूसरी नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं। ध्यान रहे इन दिनों सुरक्षा का काम धीरे धीरे निजी हाथों में जा रहा है। वहां उनके लिए बेहतर अवसर होंगे। बिना सोचे-विचारे यह आलोचना की जा रही है कि सैन्य प्रशिक्षण के बाद क्या रिटायर युवा निजी मिलिशिया में जाएंगे। यह बेसिर-पैर की बात है। सेना का प्रशिक्षण और अनुशासन उन्हें बेहतर नागरिक बना सकता है।
इस योजना में ‘ऑल इंडिया ऑल क्लास’ की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है। कुछ सैन्य अधिकारियों ने इसकी आलोचना की है। लेकिन वह भी बहुत मजबूत आलोचना नहीं है। भारत में रेजिमेंट आदि का गठन अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिहाज से किया था, जिसे जारी रखा गया। इसका यह मतलब नहीं है कि कोई नई व्यवस्था कारगर नहीं होगी। ध्यान रहे राष्ट्रीय राइफल्स में पहले से ‘ऑल इंडिया ऑल क्लास’ का नियम लागू है और वहां यह व्यवस्था बहुत सही तरीके से काम कर रही है। इस योजना का विरोध करने वाले कुछ लोग सेवा अवधि को चार से बढ़ा कर सात साल करने की जरूरत बता रहे हैं। इसका मतलब है कि उन्हें बुनियादी सिद्धांत से दिक्कत नहीं है, सिर्फ सेवा अवधि से दिक्कत है। इसके बारे में आगे चल कर फैसला हो सकता है। अगर सरकार को लगता है कि चार साल की अवधि कम है तो वह उसे बढ़ा सकती है। इसमें ज्यादा दिक्कत नहीं होगी। ध्यान रहे अमेरिका सहित दुनिया भर के देशों में इस तरह की योजना लागू है। सैनिक थोड़े समय के प्रशिक्षण के बाद सेना में काम करते हैं और रिटायर होकर दूसरी नौकरी करते हैं।